जीरा बिना अधूरा है भारतीय खाने का ‘तड़का’, औषधीय गुणों से भरपूर है ये मसाला

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भारत के अनेक व्यंजन ऐसे हैं कि उसमें तड़का (बघार) लगाने के बाद ही स्वाद उभरता है. बड़ी बात यह है कि तड़के में प्याज, लहसुन आदि डाला जाए या नहीं, लेकिन जीरा जरूर होगा. जीरे का स्वाद और उसकी गंध भोजन को स्वादिष्ट तो बनाती ही है, साथ ही उसमें खुशबू भी डालती है. जीरे को मसाले की श्रेणी में रखा जा सकता है, लेकिन इसमें शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इतने गुण हैं कि आयुर्वेद में इसे औषधि भी कहा जाता है. भारत की रसोई जीरे के बिना अधूरी है, इसीलिए हजारों सालों से भोजन में इसका प्रयोग हो रहा है. लेकिन आप हैरान होंगे कि जीरा भारत का मसाला नहीं है.

मध्य-पूर्व की उपजाऊ जमीन में यह पैदा हुआ

ऐसा नहीं है कि जीरे ने भारत को ही लुभाया है. हजारों सालों से इसका उपयोग मिस्र, अफ्रीका, सीरिया, तुर्की, मेक्सिको, चीन में भी हो रहा है. जीरे की मूल उत्पत्ति को लेकर पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन यह सत्य है  कि इसकी खेती की शुरूआत फर्टाइल क्रिसेंट (Fertile Crescent, मध्य-पूर्व भूभाग की उपजाऊ धरती, जिसमें इजराइल, सीरिया, जॉर्डन, लेबनान, ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान व एशिया के कुछ क्षेत्र) में हुई.

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जीरे के प्रयोग की जानकारी 3000 साल ईसा पूर्व स्थित मिस्र में मिलती है

वैसे सबसे पहले जीरे के प्रयोग की जानकारी 3000 साल ईसा पूर्व स्थित मिस्र में मिलती है, जहां ममियों को सुरक्षित करने के लिए बनाए जाने वाले मसालों में इसका भी प्रयोग होता था. यह सीरिया में 2000 साल ईसा पूर्व पुरानी खुदाई में भी पाया गया है. जहां इसका इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जा रहा था. विशेष बात यह है कि ईसाइयों के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ बाइबिल में विशेष संदर्भ में जीरे का वर्णन किया गया है.

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भारत में 2000 साल से हो रहा इसका प्रयोग

यह माना जाता है कि भारत में जीरे की खेती और उसका उपयोग पहली शताब्दी से शुरू हो गया था. इस काल से पूर्व लिखे गए भारत के प्राचीन धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसकी कोई जानकारी नहीं है. भारत के ज्ञानियों ने जब यह पाया कि जीरे में अनेक विशेषताएं हैं और मसाले के साथ-साथ इसमें औषधीय विशेषता भी है तो इसका प्रयोग भोजन से लेकर आयुर्वेदिक दवाओं में भी शुरू हो गया. प्राचीन काल से ही जीरा भारतीय पाक संस्कृति का प्रभावी हिस्सा तो बना ही शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भी इसका उपयोग होने लगा. इसकी तीखी गंध और अलग प्रकार के स्वाद ने भी मसालों में इसे इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

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भारत में जीरे की खेती और उसका उपयोग पहली शताब्दी से शुरू हो गया था.

जीरे के बारे में कुछ मजेदार बातें भी प्रचलन में रही हैं

जिस भू-भाग में जीरे की उत्पत्ति हुई, वहां की लोककथाओें में जीरे को लेकर कुछ मजेदार ‘गल्प’हैं. इन्हें अंधविश्वास भी कहा जा सकता है. जैसे की विवाह समारोह में अगल दूल्हा और दुल्हन अपने पास जीरे को रखेंगे तो उनका जीवन सुखी रहेगा. जिस घर में जीरा होगा, वहां पलने वाले मुर्गे-मुर्गियां भटकते नहीं है और घर के आसपास ही रहते हैं. यह भी कहा जाता है कि जीरे वाले घर से प्रेमी या प्रेमिका घर छोड़कर भागेंगे नहीं. पुराने वक्त में यूनान में खाने की मेज पर जीरे को रखने की परंपरा थी. जीरे को वफादारी के रूप में भी देखा जाता था.

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भारत में इसकी खपत, उपज की 70 फीसदी

जीरे को लेकर भारतवासियों की ‘लत’ का आलम यह है कि यहां जितना भी जीरा पैदा किया जाता है, उसका 70 प्रतिशत तो देश में ही खप जाता है. बाकी बचे 30 प्रतिशत जीरे का निर्यात किया जाता है.
निर्यात किए जाने वाले देशों में अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरीका और मध्यपूर्व के कई देश शामिल हैं. भारत में जीरे का सबसे अधिक प्रयोग सब्जी में तड़के के रूप में होता है. इसके अलावा सब्जियों या नॉनवेज के लिए तैयार किए जाने वाले मसाले में भी इसकी उचित मात्रा डाली जाती है. आयुर्वेद की दवाओं में भी अब इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है.

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भारत में जीरे का सबसे अधिक प्रयोग सब्जी में तड़के के रूप में होता है.

विटामिन व मिनरल्स से भरा है यह छोटा सा जीरा

भोजन के साथ-साथ जीरा शरीर के लिए भी जबर्दस्त लाभकारी है. अगर यह कहा जाए कि यह गुणों से भरा हुआ है तो अतिशयक्ति नहीं होगी. इस छोटे से मसाले में विटामिन ए, सी, ई व बी 6 तो पाए ही जाते हैं, खनिज जैसे लोहा, मैंगनीज, तांबा, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम भी मौजूद हैं. इसके साथ-साथ जीरे के सेवन से प्रोटीन, अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और वसा व फैटी एसिड की उचित मात्रा भी मिल जाती है. जीरे में पचाने का प्रमुख गुण होता है. इसके साथ-साथ यह भूख भी बढ़ाता है.

पाचन व स्किन के लिए सबसे अधिक लाभकारी

जानी-मानी आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. वीना शर्मा के अनुसार जीरे की बड़ी विशेषता यह है कि वह शरीर को डिटॉक्सिफिकेशन में भी मदद करता है, साथ ही मेटाबॉलिज्म की क्रिया को बढ़ाता है. यह आयरन का अच्छा स्रोत है. शरीर में खून की कमी झेल रहे लोगों को जीरे का सेवन जरूर करना चाहिए. गर्म तासीर होने की वजह से यह सर्दी-जुकाम व कफ को दूर करने में मददगार होता है. पेट व त्वचा संबंधी आयुर्वेद की दवाओं में जीरे का विभिन्न प्रकार से उपयोग हो रहा है. जीरे का पानी त्वचा के लिए बहुत लाभदायक होता है.
इसमें एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल गुण हैं जो संक्रमण को कंट्रोल करते हैं. जीरे को भूनकर उसका पाउडर दही में मिलाकर खाने से वजन कम हो सकता है. पेट तो दुरुस्त रहेगा ही. उन्होंने बताया कि कुछ शोध बताते हैं कि जीरा डायबिटीज के रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में भी सहायक है. अन्य मसालों की तरह जीरे का भी अधिक सेवन नुकसानदायक है. इससे पाचन संबंधी परेशानी खड़ी हो सकती है. शरीर में एसिडिटी बढ़ सकती है और इसका अधिक सेवन डकार पैदा करने लगता है.

Tags: Food, Lifestyle

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