बच्चे की मेंटल हेल्थ पर माता-पिता के व्यवहार का होता है गहरा असर ! जानें पेरैंटिंग का सही तरीका

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हाइलाइट्स

अथॉरिटेटिव पेरैंटिंग में आप अपने बच्चे के साथ पॉजिटिव रिश्ता बनाए रखने के लिए मेहनत करते हैं.
अगर आप बच्‍चों के प्रति बेपरवाह हैं तो आपके पालन-पोषण का बच्चों पर नेगेटिव प्रभाव पड़ सकता है.

How Parents Behavior Affect Child Mental Health: बच्‍चों को दुनिया में किस तरह रहना है या लोगों के साथ उनका व्‍यवहार किस तरह होना चाहिए, ऐसी जरूरी बातों को सिखाना माता पिता की ही जिम्‍मेदारी होती है. हालांकि पेरैंटिंग के दौरान यह भी समझना जरूरी है कि उनका एक अपना  नेचर भी है, जिसे ध्‍यान में रखना जरूरी होता है. यहीं पर कई माता पिता गलती कर बैठते हैं और खुद को बेहतर परवरिश ना कर पाने का दोषी मान लेते हैं. ये जानना जरूरी है कि बिना गिरे कोई चलना नहीं सीखता. अपने बच्चों को बहुत अधिक परेशान करने से हम जो हासिल करना चाहते हैं उसके ठीक विपरीत उनकी मानसिकता पर प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए माता-पिता को यह प्रयास करना चाहिए कि बच्‍चे को इस दुनिया में अपना स्थान बनाने का एक लक्ष्‍य मिल जाए और यह लक्ष्‍य आपका थोपा हुआ ना हो, बल्कि वे खुद की इसे चुनें. इस तरह वे एक सही दिशा में आपके मोटिवेशन के साथ आगे बढ़ सकेंगे.

पेरैंटिंग के ये हैं 4 तरीके

अथॉरिटेटिव पेरैंटिंग- पेरेंटसर्कल के मुताबिक, अथॉरिटेटिव पेरैंटिंग में आप अपने बच्चे के साथ पॉजिटिव रिश्ता बनाए रखने के लिए मेहनत करते हैं और चाहते हैं कि आपके और उनके रिश्ते बेहतर हो. इसके लिए आप अपने बच्चे पर किसी तरह का नियम बनाने से पहले इसकी वजह खुलकर बता देते हैं. अगर बच्‍चा नियम तोड़ता है तो आप बच्चों को सबक भी देते हैं. लेकिन ऐसा करने के दौरान आप बच्चों की भावनाओं को ध्यान में रखते हैं. आप बच्चों को पॉजिटिव डिसिप्लिन सिखाने में भरोसा करते हैं. उनके अच्छे व्यवहार के लिए उन्हें इनाम देते हैं और बुरे व्‍यवहार के लिए उन्हें दंड भी देते हैं. कहा जाता है कि अथॉरिटेटिव पेरेंट्स के बच्चे बड़े होकर रिस्पांसिबल एडल्ट बनते हैं जो अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त कर पाते हैं.

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नेगलेक्‍टफुल पेरैंटिंग- अगर आप बच्‍चों के प्रति बेपरवाह हैं तो आपके पालन-पोषण का बच्चों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. ऐसे माता पिता बच्चे पर बिलकुल ध्‍यान नहीं देते, जिससे बच्चे को घर के बाहर की दुनिया के साथ किस तरह मिलना जुलना है इसमें परेशानी होती है. ऐसे माता पिता बच्‍चों के साथ घर पर भी उचित बात चीत नहीं करते और वे बच्‍चों की समस्‍याओं की परवाह नहीं करते. बच्‍चे को किसी तरह का मेंटल सर्पोट भी उनसे नहीं मिलता.

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परमिसिव पेरैंटिंग- आप अपने बच्चों के लिए नियम तो बनाते हैं लेकिन उन्हें कभी लागू नहीं करते. बच्चे की गलती करने पर भी आप उन्हें सबक नहीं सिखाते. ऐसे पेरैंट्स की ये सोच होती है कि बच्चा तभी बेहतर सीख सकेगा जब आप उसकी जिंदगी में ज्यादा दखल नहीं देंगे. परमिसिव पेरैंट अक्सर बहुत रिलैक्स होते हैं और चीजों में तभी इन्वॉल्व होते हैं जब कोई बड़ी समस्‍या हो जाती है. यही नहीं, वे बच्चों को अगर सजा देने की कोशिश करते भी हैं तो बच्चों के आहत होने या रोने पर उन्हें माफ कर देते हैं. पाया गया है कि परमिसिव पेरैंट्स के बच्चे एकेडमिक्‍स में पिछड़ जाते हैं और वे नियमों और अथॉरिटी के साथ काम करने में सहज महसूस नहीं करते हैं.

स्ट्रिक्‍ट पेरैंटिंग- इसे ऑथोरिटेनियन्‍ट पेरैंटिंग भी कहा जाता है. इसमें बच्‍चों को सोचने तक की आजादी नहीं होती. रूल्स के मामले में आपका कहा ही ब्रह्म वाक्य होता है. आप बच्चे के लिए कोई फैसला लेने से पहले उसकी फीलिंग और भावनाओं को ध्यान में नहीं रखते हैं और आप चाहते हैं कि बच्चे हर नियम और कायदा बिना किसी सवाल के मानें. ऐसे पेरेंट्स बच्चों से बातचीत करने और उनके मन की बात जानने में भी इंटरेस्ट नहीं दिखाते हैं और बच्‍चे का क्‍या ओपीनियन है ये भी जानने का प्रयास नहीं करते. ये बच्चे या तो बहुत अधिक नियम कानून मे चलते हैं या हर तरह के नियम कानून से बगावत कर बैठते हैं. ऐसे बच्चों में सेल्फ एस्टीम से जुड़ी बहुत सी समस्याएं पैदा होने लगती हैं. उनमें कॉन्फिडेंस की कमी भी हो जाती है और कई बार वे बहुत गुस्सैल और लड़ाकू स्वभाव के हो जाते हैं.

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