Opinion : पीएम मोदी की गवर्नेंस बालासोर रेल हादसे के बाद खासी मददगार साबित हुई

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बालासोर में हुए रेल हादसे के ठीक अगले दिन दोपहर को पीएम नरेंद्र मोदी दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए थे. वहां से उनकी एक तस्वीर सामने आयी थी, जिसमें वे किसी से फोन पर बातें करते दिखायी दे रहे थे. दरअसल, दुर्घटना स्थल पर पहुंचने के बाद पीएम मोदी ने जो विकट परिस्थिति देखी तो समझ में आ गया था कि शवों को उनके परिजनों तक पहुंचाना और घायलों को तुरंत और सही इलाज मुहैया कराना सबसे बड़ी चुनौती है. इस हादसे में लगभग 288 यात्रियों की मौत हुई थी और 1100 से अधिक लोग घायल हो गए थे. इसलिए पीएम मोदी ने सबके सामने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को फोन कर निर्देश दिया कि वो घटनास्थल पर पहुंचें. साथ ही ये सुनिश्चित करें कि मृतकों के शव उनके परिजनों तक जल्द से जल्द पहुंचे और घायलों को सही इलाज मिले. शवों को सही तरीके से सुरक्षित करने की चुनौती थी, क्योंकि उन्हें अलग-अलग राज्यों में भेजा जाना था.

2 जून की शाम को रेल एक्सीडेंट हुआ, रातभर डिजास्टर मैनेजमेंट की टीम दुर्घटना स्थल पर पहुंची और रेस्क्यू ऑपरेशन चालू किया. हादसा बहुत गंभीर था. 1000 मेट्रीक टन लोड के साथ खड़ी मालगाड़ी के साथ कोरोमंडल एक्सप्रेस का टकराना और उसके कई डब्बों का दूसरी पटरी से जा रही एक अन्य ट्रेन से टकराने से भयानक हादसा हुआ. पहली रात इसमें बचाव और राहत का काम करना खासा मुश्किल था. 3 जून की सुबह से पहले ही रेस्क्यू ऑपरेशन तेज़ गति से चालू हो गया था. पीएम की कॉल के बाद 3 जून की रात स्वास्थ्य मंत्री मनसुख भाई मंडाविया बालासोर पहुंचे. उन्होंने रेल मंत्रालय, राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन के साथ एक लंबी चर्चा कर एक्शन प्लान बना लिया. उसके दो हिस्से थे. एक्शन प्लान का पहला हिस्सा था- 1 हज़ार से अधिक घायलों का ट्रीटमेंट करना और दूसरा हिस्सा था- 288 मृतकों का पोस्टमॉर्टेम करना, उनकी तस्वीरें लेना, उनकी रिपॉजिटरी तैयार करना, डीप फ्रीजिंग में रखने की व्यवस्था, एम्बालमिंग करना और उसके लिए एक्सपर्ट बुलाना.

पीडितों के लिए बना एक्शन प्लान
मनसुखभाई को पीएम ने जिम्मेदारी सौंपी थी. वो जानते थे कि दोनो काम जरूरी हैं और ये भी सुनिश्चित करन था कि दोनों एक्शन प्लान साथ-साथ चलें. इसलिए उन्होंने ट्रीटमेंट को तीन पार्ट में बांट दिया- प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्सियरी.  उन्होंने तय किया कि जिन घायलों को प्राइमरी लेवल के ट्रीटमेंट की आवश्यकता थी उनको तुरंत 50,000 रुपए मुआवजा मिल जाएगा. उनका ट्रीटमेंट करके सही सलामत ट्रैन में बैठा दिया और उनके परिजनों को सूचित कर दिया गया. ये काम 4 तारीख को शुरू कर दिया गया था.

दूसरा अब जिसको सेकेंडरी लेवल के ट्रीटमेंट की जरूरत थी, उन्हें जहां और जिस भी अस्पताल में ले जाया जाए, वहां उन्हें अच्छी सुविधा मिल जाए और ये भी सुनिश्चित किया गया उन्हें कहीं शिफ्ट करने की जरूरत पड़े तो उसे प्राथमिकता के आधार पर किया जाए. मनसुख मंडाविया के एक्शन प्लान इस हिस्से में ऐसे 100 से अधिक केस थे जो ज्यादा घायल थे किसी को ब्रेन में दिक्कत हो गयी थी. किसी को न्यूरोलॉजिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता थी, इसलिए  ये भी सुनिश्चित किया गया तुरंत ही AIIMS की टीम वहां पहुंचे. AIIMS में भी 100 को अलग करके क्रिटिकल केयर के लिए व्यस्वस्था सुनिश्चित किया गया. तुरंत ही सुबह-सुबह, AIIMS, RML, Lady Harding अस्पताल के डॉक्टरों को स्पेशल एयरफोर्स के प्लेन के द्वारा बालासोर पहुंचाया गया. इसके अलावा डेड बॉडी को एबेल्मिंग करने के लिए कई मेटेरियल और एक्सपर्ट की आवश्यकता थी क्योकि वो डिकंपोज होना शुरु हो जाती है. ये था एक्शन प्लान का पहला हिस्सा.

शवों को सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती
एक्शन प्लान का दूसरा  पार्ट था डेडबॉडीज़ को कैसे मैनेज करना है क्योंकि सारी अलग अलग जगह थी. बालासोर, भद्रक, सोरो, भुवनेश्वर, कटक में डेडबॉडीज़ को रखने की व्यवस्था नहीं थी. जैसे कि रिश्तेदारों को ढूंढने में मुश्किलें बहुत बड़ा चैलेंज था. मनसुख भाई ने 4 जून से मिशन मोड में काम करना शुरु किया. एक तो सभी शव जहां भी है उसकी तस्वीर खींची जाए और उसकी रिपॉजिटरी तैयार की जाए और इसकी फ़ोटोज़ स्थानीय गवर्नमेंट, रेलवे वेबसाइट, पुलिस स्टेशन, AIIMS भुवनेश्वर की वेबसाइट पर डाला जाए. जो भी कॉल्स आती थी कॉल सेंटर पर उसको कहा जाता था की वेबसाइट पर जा के देख लें.

एक ही जगह पर रिपॉजिटरी हुई और शुरुआत में अलग अलग जगह पर शव पडे थे, उनकी तस्वीर ली गयी और उन्हें शिफ्ट किया गया जो दूर थी. उन्हें AIIMS भुवनेश्वर में शिफ्ट किया गया. AIIMS भुवनेश्वर की डीप फ्रीजिंग की कैपेसिटी 34 से ज्यादा नहीं थी तो मिशन मोड में 150 डेडबॉडीज़ रखी जाने की फैसिलिटी क्रिएट करनी पडी. इसके लिए मनसुख भाई मंडाविया ने तुरंत ही पारादीप पोर्ट, धामरा पोर्ट से संपर्क किया और वहां से रेफ्रिजरेटेड कंटेनर्स को लाया गया. ऐसे 5 कंटेनर लाये गए AIIMS भुवनेश्वर में और बाकी डेडबॉडीज़ को डीप फ्रीजिंग में रखने की व्यस्वस्था की गई.  डेड बॉडीज़ को दूर ले जाने के लिए एम्बलामिंग की जरुरी होती है. इसके लिए दिल्ली से टीम आयी 4 जून को. शाम 5 बजे तक एमबामिंग करना आवश्यक था.  रायपुर और नागपुर से भी टीम आई और इन टीमों ने मिल कर मिशन मोड में काम किया. सभी बॉडीज को AIIMS भुवनेश्वर में लाया गया और मिशन मोड में एमबामिंग का काम शुरु हुआ.
शवों की पहचान करना मुश्किलें बढ़ा रहा था
तीसरी चुनौती थी कि सब प्रोसेस होने के बाद भी, कुछ शव ऐसे थे जो इतने जल  गए थे कि जिनका चेहरा तक नहीं पहचान में आ रहा था. अब मुश्किल ये कि ऐसी डेडबॉडीज़ का क्या करे? 4 तारीख तक दिन में कॉल सेंटर पे कॉल्स आना भी कम हो गए थे और पूरे दिन में केवल 24 लोग AIIMS भुवनेश्वर में आए डेडबॉडीज़ को पहचान के लिए. हमें डेडबॉडीज़ लम्बे समय तक रखनी थी और इसी हिसाब से सबकी व्यस्वस्था की गयी. सभी शवों  को AIIMS भुवनेश्वर लाया गया और उसकी आस पास के प्राइवेट हॉस्पिटल, स्टेट गवर्नमेंट के मेडिकल कॉलेजों में शवों  को रखा गया जहाँ डीप फ्रीज़िंग की सुविधा थी. ऐसे 35 से अधिक डेडबॉडीज़ थी जिनका फेस भी पहचान नहीं आरहा था, तो उसके फैमिली मेंबर्स को कैसे दे तो उसका DNA लेने की आवश्यकता थी. एक स्पेशल टीम AIIMS भुबनेश्वर में बनाई गई, ताकि सभी डेडबॉडी का DNA लिया जाये और उसकी रिपॉजिटरी बनाई जाए. कई इंश्योरेंस क्लेम और मुआवजे के लिए पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट आवश्यक होती है.

पोस्ट मार्टम और डीएनए के लिए बनाई रिपॉजिटरी
सभी शवों का पोस्टमॉर्टेम और DNA लेकर उसकी रिपॉजिटरी बनाने की व्यवस्था की गयी ताकि कोई भी डेडबॉडी की विशेष पहचान जब चाहे तब कर सके.  बाहर से आने वाले लोग जिनके पास पैसे की व्यवस्था भी नहीं थी, उनके लिए AIIMS भुवनेश्वर में एक डेस्क तैयार किया गया. प्राथमिक पूछताछ के बाद उसे तुरंत रिपॉजिटरी कंप्यूटर दिखा देते थे और वो तुरंत ही उसे देख के पहचान लेते थे की वो उनके रिलेटिव है.

तुरंत ही स्थानीय प्रशासन तमाम फॉर्मेलिटी पूरी करके शवों  को उनको सौंप देते थे. शवों को परिवार तक पहुंचाने की भी व्यस्वस्था भी की गयी थी. 300 कॉफिन इतनी जल्दी तैयार ही नहीं होते है. लेकिन 3 तारीख रात को ही 300 कॉफिन बनवा के AIIMS भुवनेश्वर मंगवाया गया, ताकि जिसको डेडबॉडी कॉफिन सहित हैंडओवर करे ताकि उसे ले जाने में कोई दिक्कत नहो. यही नहीं पूरे कागजात के साथ शवों को सौंपा गया. ये सारी व्यवस्था 4  और 5 जून तारीख में पूरी हो गयी.

एक हफ्ते बाद भी धीरे-धीरे डेडबॉडी लेने और पहचान करने वाले आ रहे है तो प्रशासन उनको डेडबॉडी दे रहा है. ये बहुत चैलेंज होता है. मनसुख भाई मंडाविया के मुताबिक कई ऐसी घटना लोगों ने देखी है जिसमें डिजास्टर मैनेजमेंट तो हो जाता है लेकिन डेडबॉडी को निकालने और ट्रीटमेंट पर कोई ध्यान नहीं देता है और इससे नेगेटिव परसेप्शन बनता है. जाहिर है इस हादसे के बाद पीएम मोदी ने जो निर्देश दिये उसका नतीजा ही था कि 4 तारीख रात को ही रेलवे का आवागमन शुरु हो गया. 5 तारीख  शाम तक 100 से कम घायल उपचार करा रहे थे जिनकी ट्रीटमेंट थोड़ी लम्बी चलनी है.

स्वास्थ्य मंत्री का मानना है कि कुल मिला के एक मिशन मोड में काम करने से डिजास्टर मैनेजमेंट कैसे बेस्ट हो सकता है उसका एक अच्छा उदाहरण पीएम मोदी के गुड गवर्नेंस का यही हो सकता है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए sachhikhabarHindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Tags: Odisha Train Accident, PM Modi

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