Karnataka Election: क्या सिर्फ सत्ता विरोधी लहर में हारी BJP? कर्नाटक में हार की कई और भी हैं वजहें

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बेंगलुरु. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 1985 से सत्ता विरोधी लहर हावी रही है. उसके बाद के चुनाव में किसी भी सरकार और मुख्यमंत्री ने लगातार पद बरकरार नहीं रखा है. इस प्रकार, भारतीय जनता पार्टी पहले से ही कमजोर स्थिति में थी. कई आलोचकों के अनुसार, स्पष्ट निर्देश की कमी, पार्टी गुट के झगड़े और बसवराज बोम्मई के रूप में एक कथित कमजोर मुख्यमंत्री को सत्ता सौंपने के कारण इसमें और बाधा आई. 2021 में बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के पीछे उम्र और खराब स्वास्थ्य को मुख्य कारण बताया गया था, लेकिन तत्कालीन सीएम पर भी उनकी कार्यशैली के लिए सवाल उठाए गए थे.

येदियुरप्पा के कुर्सी छोड़ने के पीछे मुख्य कारणों में से एक यह तथ्य था कि उनके कार्यकाल में पार्टी की अंदरूनी कलह अपने चरम पर थी. वहीं उनकी जगह सीएम बनाए गए बोम्मई को उनके की खेमे का आदमी माना जाता था, जो उनकी छत्रछाया के नीचे काम करते थे. वह भाजपा कर्नाटक के सामने आने वाली समस्याओं को नियंत्रित नहीं कर सके. भ्रष्टाचार, अंदरूनी कलह और प्रतिष्ठा प्रबंधन ऐसे मुद्दे बने रहे जो अंततः विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन में परिलक्षित हुए.

कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को बनाया बड़ा हथियार
कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के अपने आरोपों को उजागर करने के लिए एक ठोस अभियान चलाया. रैलियों और रोड शो के साथ, इसने बोम्मई की सरकार के कथित भ्रष्ट आचरण पर एक वेबसाइट शुरू की, जो जमीन पर अच्छी तरह से मैसेज पहुंचाती दिखी. वेबसाइट https://www.40percentsarkara.com का कहना है कि अब तक 5,34,642 आवाजें भाजपा सरकार के भ्रष्ट आचरण के खिलाफ उठा चुकी है. सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और जी परमेश्वर के प्रयासों को राहुल गांधी की 24 दिनों में 500 किलोमीटर की सड़क यात्रा में समर्थन मिला, जो उनकी भारत जोड़ो यात्रा के तहत सितंबर-अक्टूबर 2022 में आठ जिलों से होकर गुजरी थी.

पूर्व सीएम येदियुरप्पा से उम्मीदें धराशाई
भाजपा ने पूर्व सीएम येदियुरप्पा से अपनी वापसी की उम्मीदें लगा रखी थीं, लेकिन कांग्रेस के आरोपों और अपनी सरकार के खिलाफ चार साल की सत्ता विरोधी लहर के खिलाफ वह जवाबी माहौल बनाने में विफल रही. भाजपा ने राज्य में हमेशा लिंगायत वोटों पर भरोसा किया है. इस बार, उसने वोक्कालिगा समर्थन को भी अपने वोट आधार में जोड़ने की कोशिश की.

वोक्कालिगा समुदाय का नहीं मिला साथ
बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार ने उनके लिए जाति-आधारित आरक्षण बढ़ा दिया और पार्टी ने वोक्कालिगा समुदाय के प्रभुत्व वाले पुराने मैसूर क्षेत्र में काफी प्रचार किया. परिणाम बताते हैं कि इस चुनाव में किसी भी समुदाय ने भाजपा का समर्थन नहीं किया. लिंगायत पारंपरिक रूप से भाजपा के समर्थक रहे हैं, जबकि वोक्कालिगा वोट कांग्रेस और जद (एस) के बीच बंटे हुए हैं.

Tags: Assembly elections, Karnataka Assembly Elections 2023, Karnataka BJP, Narendra modi

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