Jodhpur professor is on an amazing mission to save other lives cpr training was given to more than three lakh people

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हाइलाइट्स

जोधपुर के डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर रहे राजेंद्र तातेड़ खुद ही खर्च उठाकर देते हैं प्रशिक्षण
कार्डियक अरेस्ट के पांच मिनट बाद ही यदि पीड़ित को सीपीआर मिल जाए तो बच सकती है जान

एच. मलिक

जोधपुर. किसी भी पिता के लिए इससे बड़ा दुख कोई और नहीं हो सकता है कि उसे जवान बेटे की अर्थी को कंधा देना पड़े. साफ्टवेयर इंजीनियर (Software Engineer) बेटे की असमय मौत ने जोधपुर के पूर्व मेडिकल प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र तातेड़ (Dr. Rajendra Tated) को ऐसा सदमा दिया कि पांच महीने तक खाना-पीना सब कुछ छूट गया. इस बीच छोटे बेटे ने पिता को सदमे से उबरने के लिए आइडिया दिया कि क्यों न भाई की याद में सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रिसेसिटेशन) के जरिए लोगों की जान बचाने की मुहिम शुरू की जाए.

इस परोपकारी सोच से बेटे के जाने के गम के बीच पिता को जैसे जीने का सहारा मिल गया. उन्हें भी बार-बार लगता था कि यदि पुणे में बेटे को समय पर सीपीआर मिल जाती तो शायद अनहोनी को टाला जा सकता था.

आपके शहर से (जयपुर)

तीन लाख से ज्यादा लोगों को सीपीआर ट्रेनिंग
जोधपुर के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर रहे राजेंद्र तातेड़ करीब 9 साल से लोगों को सीपीआर यानि कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन देने का बीड़ा उठा रखा है. इस मिशन में जुड़कर वे 3 लाख से ज्यादा लोगों को अब तक सीपीआर की ट्रेनिंग दे चुके हैं. ज्यादा से ज्यादा लोगों को सीपीआर का प्रशिक्षण देना अपने जीवन का मिशन बना चुके प्रोफेसर तातेड़ जोधपुर के अलावा देश के कई शहरों में सीपीआर की ट्रेनिंग दे चुके हैं. अब लोग उनके बनाए वीडियो से भी प्रशिक्षण ले रहे हैं. उनका कहना है कि वह लोगों को ट्रेंड रेस्कूयर बनाना चाहते हैं, ताकि आपात स्थिति में लोगों का जीवन बच सके. उनकी इस मुहिम से 22 लोगों को दोबारा जीवन भी मिला है.

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बेटे को सीपीआर मिल जाती तो शायद बच जाता
इस अद्भुत मिशन की शुरुआत के बारे में डॉ तातेड़ बताते हैं कि करीब नौ साल पहले पुणे से रात में फोन आने पर पता चला कि बड़े बेटे शैलेष को अचानक हार्ट प्राब्लम हुई है. छोटा बेटा डॉ अभिषेक तातेड़ तत्काल पुणे के लिए निकल गया, लेकिन शैलेष को बचाया नहीं जा सका. जवान बेटे की पार्थिव देह को देख उन्हें गहरा आघात लगा. वह दिनभर बेटे की तस्वीरें देखकर रोते रहते. 5 महीने तक होश ही नहीं रहा कि कब खाया-पीया. धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने लगा. एक दिन छोटा बेटा मेरे पास आया और कहा- जैसे मैंने अपने भाई को खोया है, वैसे अब दुनिया से कोई नहीं जाना चाहिए. मैं जानता था कि यदि मेरे बेटे को सीपीआर मिल जाती तो शायद उस समय उसकी जान बच सकती थी.

कार्डिक अरेस्ट के बाद के पांच मिनट होते हैं अहम
इसके बाद सीपीआर को डॉ तातेड़ ने जीने का मकसद बना लिया. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजिन एंड पब्लिक हेल्थ के कोर्स के चलते उन्हें सीपीआर ट्रेनिंग की पूरी जानकारी थी. डॉ. राजेंद्र तातेड़ के मुताबिक कार्डिक अरेस्ट आने के बाद जान बचाने के लिए महज 5 मिनट होते हैं. जब इस ट्रेनिंग सेशन की शुरुआत की बात आई तो जोधपुर शहर की भीतरी गलियों को चुना. क्योंकि तंग गलियों की वजह से कई बार मरीज को हॉस्पिटल लाने में भी देरी हो जाती थी.पहले लोगों की समझ में भी नहीं आया तो वे सपोर्ट भी नहीं करते थे. लेकिन, जब लोग जागरूक हुए तो इस मिशन से जुड़ते गए.

पैसा कमाना नहीं, लोगों की जान बचाना ही मिशन
बेटे के इमोशन से जुड़ी पहल अब जोधपुर ही नहीं, बल्कि राजस्थान के कई शहरों में पहुंच चुकी है. डॉ तातेड़ के मुताबिक वे लाखों लोगों को सीपीआर की ट्रेनिंग दे चुके हैं. अब तक वे बीएसएफ, सीआईएसएफ जैसे सुरक्षा बल, कई स्कूल-कॉलेजों में बतौर ट्रेनर जा चुके हैं. इसमें खास बात यह है कि वे इस ट्रेनिंग के लिए एक भी पैसा नहीं लेते हैं. यहां तक कि ट्रेनिंग में आने-जाने से लेकर डमी बॉडी के लिए लगने वाले रुपये तक का खर्च भी वो खुद ही उठाते हैं. एक डमी का खर्च करीब 15 से 20 हजार होता है. वे भावुकता से कहते हैं, उनका मकसद पैसा कमाना नहीं, बल्कि उनका मिशन तो लोगों की जान बचाना है.

ऐसे देते हैं कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर)

  • सीपीआर में पीड़ित को किसी ठोस जगह पर लिटाया जाता है और सीपीआर देने वाला उसके पास घुटनों के बल बैठता है.
  • उसकी नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है.
    सीपीआर में मुख्य रूप से दो काम किए जाते हैं. पहला छाती को दबाना और दूसरा मुंह से सांस देना…जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं.
  • पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचोंबीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है. पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें.
  • इस प्रक्रिया में हाथ से इस तरह से छाती पर दबाव बनाया जाता है कि दिल सीने की हड्डियों और रीढ़ की हड्डी के बीच दबे.
  • अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है.
  • ऐसा करने के लिए हथेली से छाती को 1 -2 इंच दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें. सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है. 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम सांस दी जाती है.
  • कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से सांस दी जाती है. नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है.
  • सीपीआर के समय ये ध्यान रखना है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़ें. ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी. ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है, जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे.

Tags: Cardiac Arrest, Heart attack, Jodhpur News

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