Gangaur: बूंदी में नहीं निकाली जाती गणगौर की सवारी, छलक उठता है 300 साल पुराना दर्द, जानें क्या हुआ था

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हाइलाइट्स

बूंदी की गणगौर की कहानी
बूंदीवासी 300 बरसों से निभा रहे हैं परंपरा
बूंदी में गणगौर पर्व से जुड़ा है एक बड़ा हादसा

बूंदी. त्योहारों से रची बसी भारतीय संस्कृति में राजस्थान में खासतौर पर महिलाओं द्वारा मनाये जाने वाले गणगौर (Gangaur) के पर्व का बड़ा महत्व हैं. लेकिन राजस्थान की तत्कालीन बूंदी रियासत (Princely State of Bundi) में करीब तीन सौ साल पहले गणगौर समारोह के दौरान हुए हादसे के बाद यहां गणगौर पूजा केवल घरों तक ही सीमित रह गई है. उस हादसे के बाद बूंदी में आज तक गणगौर की सावर्जनिक रूप से सवारी नहीं निकाली जाती है. बूंदी के वाशिंदे आज भी उस हादसे को याद करके गणगौर की सार्वजनिक सवारी नहीं निकालते.

अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसी छोटी काशी के नाम मशहूर बूंदी में रियासतकाल में गणगौर का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था. इतिहासकारों के अनुसार 17वीं शताब्दी में तत्कालीन महाराज बुद्धसिंह के समय जैतसागर झील में गणगौर समारोह आयोजित किया जा रहा था. इसी दौरान एक मदमस्त हाथी ने गणगौर की सवारी वाली नाव को उलट दिया. इस घटना के दौरान महाराज बुद्ध सिंह के भाई जोधसिंह सहित राजपरिवार के कई अन्य सदस्यों की मौत हो गई थी. उसके बाद से बूंदी रियासत में गणगौर पर्व की आंट (बाधा) पड़ गई और यह सीमित दायरे में ही मनाया जाने लगा.

एक और किंवदंती जुड़ी है गणगौर के समारोह के साथ
उस आंट का आज तक भी यहां निर्वहन किया जाता है. यहां आज भी सार्वजनितक तौर पर गणगौर पर्व नहीं मनाया जाता. कुंवारी कन्याएं और सुहागिन महिलाएं प्रति वर्ष अपने अपने घरों में मिट्टी के ईसर और गणगौर बनाकर उनकी 16 दिनों तक पूजा करती हैं. बाद में गणगौर पर रात के समय उन्हें तालाब में विसर्जित कर देंती है. बूंदी की गणगौर के विषय में एक दूसरी किवदंती भी है. उसके अनुसार 13वीं सदी में बूंदी के राव राजा नापा को परास्त कर शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह ने गणगौर को छीन लिया था. उसे कुछ वर्षो बाद नापा के पुत्र हम्माजी शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह को युद्ध में परास्त कर गणगौर को वापिस ले आए.

समारोह फिर कब से शुरू होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है
इतिहासकार राजकुमार दाधीच के अनुसार इसके साथ ही वे उनकी रानी को भी छीन कर ले आए. उसके बाद गणगौर पर्व पर शुरू हुई उत्सव मनाने की परंपरा 17वीं शताब्दी तक जैतसागर झील में हुए हादसा होने तक जारी रही. दाधीच बताते हैं कुंवारी कन्याएं और सुहागिन महिलाएं अपने अपने घरों में मिट्टी के ईशर और गणगौर बना कर उनकी 16 दिनों तक पूजा करती हैं. इस दौरान कुंवारी कन्याएं जहां ईशर गणगौर रूपी शिव पार्वती से अच्छे वर की प्राप्ति की कामना करती है वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु होने की प्रार्थना करती हैं. बहरहाल 17वीं सदी में गणगौर समारोह के दौरान हुये हादसे के बाद बूंदी में गणगौर की सावर्जनिक रूप से सवारी नहीं निकाली जाती है. यह समारोह फिर कब से शुरू होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

Tags: Bundi, Festival, Rajasthan news, Religion

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