demand for phaganiya sarees increased in jodhpur markets – News18 हिंदी

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रिपोर्ट-कृष्णा कुमार गौड़
जोधपुर. होली का उल्लास और मस्ती हर तरफ छायी हुई है. रंग-गुलाल के साथ अब डिजाइनर के जमाने में होली पर भी नये कपड़े पहने जाने लगे हैं. रंग रंगीलो राजस्थान में फागण साड़ी पहनी जाती है. ये अपने प्रदेश की संस्कृति की तरह चटख रंगों की होती है. इस मौसम में इस साड़ी की काफी डिमांड रहती है.

फागुन मास की शुरूआत के साथ ही राजस्थान की महिलाओं में काफी उत्साह रहता है. होली के लिए यहां खास तैयारी की जाती है. रंग गुलाल और पकवान के साथ फाग गाने की परंपरा यहां है. महिलाओं की टोली घर घर घूमकर फागुन की बधाई देती हैं. फागुन के मौसम में वो खास साड़ी पहनना पसंद करती है जिसे फागण साड़ी कहा जाता है. पूरे राजस्थान सहित जोधपुर के त्रिपोलिया मार्केट में मिलन साड़ी से लेकर बी रोड स्थित शुभ साड़ी तक हर जगह ये साड़ियां उपलब्ध हैं. महिलाओं की भारी भीड़ यहां उमड़ रही है.

फागुणिया की 100 वैरायटी
इस बार बाजार में फागुणिया साड़ी की 100 से अधिक वैरायटी हैं. महिलाओं को काफी पसंद आ रही है. मारवाड़ की परंपरा के अनुसार फागुन में फागणिया पहनने का रिवाज है. महिलाएं सफेद-लाल और पीले रंग की साड़ी में नजर आने लगी हैं. शहर के बाजारों में विशेष रूप से सफेद, लाल, पीले रंग की साड़ी और राजपूती पोशाकें सज चुकी हैं.

300 से लेकर 3000 तक
मेवाड़ की परंपरा रही है कि महिलाएं होली के अवसर पर पीले, सफेद और लाल रंग की पीलिया और फागणिया ड्रेस पहनती हैं. बेटी के पहला बच्चा होने पर ढूंढ़ के मौके पर पीहर से ससुराल पीलिया या फागणिया साड़ी भेजी जाती है, जो माता-पिता की तरफ से शुभकामनाओं का प्रतीक होती है. इस बार त्रिपोलिया बाजार में मिलन साड़ी पर में कई तरह की नई डिजाइन की साड़ियां उपलब्ध हैं. इसमें गोटा पत्ती हैंड वर्क, सिल्क साटन के साथ ही 300 से लेकर 3,000 रुपए तक की आकर्षक डिजाइन की साड़ियां यहां मिल जाएंगी.

पीहर का पीला, बुआ की बुरलिया-ओढ़नी
राजस्थान में वस्त्र-प्रसंग में यह बात विशेष रूप से याद आती है कि यहां मौसम के मुताबिक वस्त्र पहने जाते हैं. दो सौ साल पहले लिखी “कपड़ कुतूहल” में इस मान्यता पर जोर है कि रुचि की अनुकूलता पर ऋतु का प्रभाव होता है. फागुन में फबते फागणिया परिधान को ओढ़ने की परंपरा है. ऐसा माना जाता ह जब तक बहू पर सासरे का रंग पूरा न चढ़ जाए, तब तक तरह-तरह के रंग चढ़ाए जाते हैं. पीहर का पीला, मामैरा का कोरजल्या, बुआ की बुरलिया-ओढ़नी, जेठाणी का जेठा वेश और ननद का ननदिया नांदना, भतीजा-भतीजी होने पर ढूंढ की रस्म का रुचिकर वेश भी यही है.

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