समलैंगिक शादी: केंद्र ने SC में देनी चाहीं अमेरिकी कोर्ट की दलीलें? CJI हुए नाराज

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नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि यह एक स्थापित सिद्धांत है कि ”न्यायाधीश कानून नहीं बनाते हैं’’ और केंद्र को अपनी दलीलों के समर्थन में अमेरिका की शीर्ष अदालत द्वारा गर्भपात का संवैधानिक अधिकार न दिये जाने का हवाला देने से मना कर दिया. केंद्र ने अपनी दलील के समर्थन में डॉब्स मामले में अमेरिकी शीर्ष अदालत के उस फैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि न्यायपालिका को विधायिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करना चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने अमेरिका के इस मामले का हवाला दिये जाने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की और कहा कि इस मामले को यहां संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए था, क्योंकि भारत महिलाओं के अधिकारों को पहचान दिलाने के मामले में बहुत आगे निकल गया है.

संसद पर छोड़ देना चाहिए समलैंगिक विवाह का मुद्दा
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह विदेशी निर्णयों का हवाला देने के पक्षधर नहीं थे और इस विवाद का समर्थन करने के लिए इसका उल्लेख किया कि समलैंगिक विवाह का मुद्दा संसद पर छोड़ देना चाहिए.

संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘डॉब्स मामले का हवाला न दें, क्योंकि हम यहां डॉब्स से बहुत आगे निकल चुके हैं. हम खुद को श्रेय दे सकते हैं कि हम पश्चिमी देशों से बहुत आगे हैं.’

पीठ ने कहा, ‘‘उदाहरण के तौर पर, हमारे कानून में केवल विवाहित महिलाओं को 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को नष्ट करने का अधिकार दिया गया था. हम इससे भी निपटे. अविवाहित महिलाएं हमारे पास आईं और कहा कि उन्हें भी यह अधिकार मिलना चाहिए. और हमने इस अधिकार को उनके लिए भी बरकरार रखा. हम बहुत आगे निकल चुके हैं….’’

Tags: Same Sex Marriage, Supreme Court

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