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Lord Shiva Ardhnarishwar Avatar and Gender Equality: इंटरनेशनल वुमेन्स डे पर हर साल एक थी तय की जाती है. इस साल की थीम है ‘इंस्पायर इंक्लूसिव’ यानी समावेश को प्रेरित करना. दरअसल पिछले कई सालों से दुनियाभर में नारीवाद पर अलग-अलग चर्चाएं हो रही हैं. सालों से ये बहस चल रही है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाना चाहिए. अब इसमें आर्थिक बराबरी से लेकर काम करने का हक और वर्कलोड शेयर करने की बात तक, कई बहस शामिल हैं. इत्तेफाक है कि इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महाशिवरात्रि भी है. महिला दिवस भले ही साल 1975 से मनाना शुरू किया गया है. लेकिन सदियों से शिव के एक ऐसे स्वरूप को हम पूजते आ रहे हैं, जो हमें बताता है कि नारीत्व और महिला-पुरुष के बीच चल रही ‘बराबरी’ की ये बहस हमारी समझ की नादानी है. प्रसिद्ध ज्योतिष, श्रुति खरबंदा से जानते हैं कौनसा है वह भगवान शिव का स्वरूप और ये हमें क्या बताता है.
एक दूसरे के पूरक हैं शिव और शक्ति
दरअसल जब भी हम ‘बराबरी’ की बात करते हैं तो इसके पीछे भाव आता है ‘तुलना’ का. आप किसी के बाराबर हैं, ये बात आप तभी सिद्ध कर सकते हैं जब आप गणना के आधार पर तय करेंगे कि 2 चीजों में कौनसी चीज बेहतर है. ये बहस ‘बराबरी’ से ‘बेहतर’ होने की तरफ कब बढ़ जाती है, ये भनक तक नहीं लगती. ज्योतिष, श्रुति खरबंदा बताती हैं, ‘शिव का अर्धनारीश्वर रूप अपने आप में इस बहस को समाप्त करने और समाज में नारी व पुरुष के स्थान को दर्शने के लिए काफी है. जब बराबरी की बात होती है तो कंपेरिसन होता है, लेकिन अगर आप शिव के स्वरूप को समझें तो शिव और शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं. शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप इस बात को खूबसूरती से समझाता है.
शिव परिवार को घरों में पूजा जाता है.
महिला-पुरुष ‘कंप्लीट’ करते हैं, ‘कंपीट’ नहीं
हमाने दर्शन में कहा गया है, पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं. यहां पुरुष शिव को माना गया है और प्रकृति पार्वती हैं. एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव ही नहीं है. शिव स्थिरता है, जो सृष्टि के सृजन के लिए जरूरी है, वहीं प्रकृति रचनात्मक होती है, वही रचना करती है. इसे ऐसे समझें, जैसे एक पौधा होता है, जिसे उगने के लिए जमीन चाहिए. धरती की स्थिरता के बिना पौधा विकसित नहीं हो सकता, वहीं इसके विपरीत पौधा जन्म है, रचना है. यदि पौधे की रचना नहीं है यानी जमीन बंजर है तो वह धरती भी अधूरी है. यानी पौधा और धरती एक-दूसरे के पूरक हैं. बस यही धरती की स्थिरता शिव हैं यानी पुरुष है और पौधे की रचना पार्वती हैं, यानी नारी हैं. शिव उच्चता का भाव नहीं देते, वह शक्ति के साथ संपूर्णता का भाव देते हैं. शक्ति के बिना शिव भी उतने ही अधूरे हैं, जितना शक्ति, शिव के बिना. अर्द्धनारीश्वर का ये रूप ही हमें समझाता है कैसे नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, प्रतियोगी नहीं. महिला और पुरुष एक दूसरे को ‘कंप्लीट’ करते हैं, एक-दूसरे से ‘कंपीट’ नहीं.
शिव स्थिरता हैं और पार्वती रचना. ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं.
अर्धनारीश्वर रूप से समझाई ब्रह्मा को सृष्टि की रचना
इसे आगे समझाते हुए प्रसिद्ध ज्योतिष, श्रुति खरबंदा बताती हैं, ‘अगर दर्शन के नजरिए से समझें तो सांख्य दर्शन में भी पुरुष को नित्य, अविनाशी कहा गया है. पुरुष यानी शिव. वहीं प्रकृति, जो पार्वती हैं, उन्हें गुण कहा गया है. ये दोनों अपनी-अपनी जगह सृष्टि की संरचना के लिए जरूरी हैं और इसलिए यहां तुलना नहीं बल्कि पूरकता का गुण आता है. जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो हर दिन निमार्ण कराना उनके लिए भी असंभव था. प्रतिदित जीवों का निर्माण करना था. ऐसे में सवाल उठा कि सृष्टि को सुचारू रूप से कैसे चलाया जाए. तब शिव ने अपने इसी अर्धनारीश्वर रूप के जरिए उन्हें सृष्टि के निर्माण की बात की. यानी पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हो जाएं तो सृष्टि के सृजन की प्रक्रिया अपने आप होती चली जाए.
आप इसे ऐसे समझें कि शिव ने कभी पार्वती की खुद से तुलना नहीं की. बल्कि उन्होंने पार्वती को हमेशा आगे बढ़ने के लिए, गलत पर खुद जय पाने के लिए प्रेरित किया. शिव ने हमेशा उनके शक्ति स्वरूप का सम्मान किया. बल्कि शिव ही वो हैं, जिन्होंने उन्हें महाकाली बनने के लिए प्रेरित किया और जब उनका क्रोध किसी से नहीं रुका तो शिव ने बिना अहंकार के खुद महाकाली के पैर के नीचे आए.
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Tags: Dharma Aastha, Indian women, International Women Day, Lord Shiva, Mahashivratri
FIRST PUBLISHED : March 8, 2024, 17:05 IST
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