नई संसद में सेंगोल- पीएम मोदी की एक और ऐतिहासिक पहल – News18 हिंदी

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ज्यों ही गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में सेंगोल शब्द का इस्तेमाल किया और बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नए संसद भवन में इस ऐतिहासिक और पवित्र सेंगोल की संसद में स्थापना करेंगे, पूरे देश की जिज्ञासा बढ़ गई कि आखिरकार इस पिटारे से क्या निकाल कर लाए हैं. शाह ने बताया कि आजादी के बाद ब्रिटिश सम्राज्य से भारत को हुए सत्ता हस्तांतरण में इस सेंगोल की सांकेतिक भूमिका रही है. अमृत काल में जब भारत दुनिया भर में अपनी सही जगह बना रहा है, तब इस सांकेतिक और ऐतिहासिक धरोहर का महत्व और बढ़ जाता है. इसलिए ये तय हुआ है कि इसे नई संसद में ही लगाया जाए. दरअसल ‘सेंगोल’ शब्द तमिल शब्द “सेम्मई” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नीति परायणता”. इस चांदी के सेंगोल पर सोने की परत है. ऊपर नंदी विराजमान है. यह पांच फीट लंबा है.

सेंगोल का ऐतिहासिक सफर
इतिहास, परंपरा, धर्म, सत्य,और न्याय के इस प्रतीक सेंगोल को कई नेताओं की मौजुदगी में 1947 में 14 अगस्त की रात पंडित नेहरू को भी दिया गया था. तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई मठ के अधिनाम पुजारियों ने ये सेंगोल पंडित जवाहर लाल नेहरू को दिया था. ये पुजारी इसी विशेष मौके के लिए दिल्ली पहुंचे थे. आजादी के 75 साल बाद भी देश मेें कम ही लोग जानते हैं कि ये अंग्रेजों द्वारा भारत को सत्ता हस्तातंतरण करने के समय का एक बड़ा प्रतिक था. 14 अगस्त 1947 को नेहरू जी को सेंगोल मिलने के बाद इसे प्रयागराज में आनंद भवन में रख दिया गया था. यह नेहरू ख़ानदान का पैतृक निवास है. 1960 के दशक में इसे वहीं के संग्रहालय में शिफ़्ट कर दिया गया. 1975 में शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया था.

पीएम मोदी के संज्ञान में आया
सूत्रों के मुताबिक, पीएम नरेंद्र मोदी को करीब डेढ़ साल पहले सेंगोल के बारे में 1947 की इस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताया गया था. उसके बाद 3 महीने तक इसकी खोजबीन होती रही. देश के हर संग्रहालय में इसे ढूंढा गया. फिर प्रयागराज के संग्रहालय में इसका पता चला. पंडित नेहरू के बाद की सरकारों ने भी भारतीय संस्कृति और परंपरा के गौरवशाली इस प्रतीक की कोई पूछ नहीं की और इस बीच करीब 75 सालों से सेंगोल इलाहाबाद के एक संग्रहालय में गुमनाम पड़ा रहा. 1947 में जिन्होंने इसे बनाया था उन्होंने इसकी सत्यता की पुष्टि भी की.

कांग्रेस ने की सेंगोल की उपेक्षा
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत की संस्कृति के प्रतीकों विरासत और परंपराओं से नेहरू-गांधी कांग्रेस इतना उदासीन क्यों था? इन 75 सालों में किसी ने कोई खोज खबर क्यों नहीं ली कि सेंगोल कहां है. इसलिए इस ऐतिहासिक सेंगोल की नए संसद भवन में स्थापना कर पीएम मोदी यही संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस ने अपनी ऐतिहासिक धरोहरों का ध्यान नहीं रखा और वे पहले पीएम पंडित नेहरू की विरासत को एक महत्वपूर्ण स्थान देकर आजादी के अमृत काल में अपनी मूल परंपराओं के आधार पर ही देश को आगे ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.

दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियों की 75 सालों की उदासीनता पर सवाल
महान चोल वंश के राज धर्म परंपरा का प्रतीक है- सेंगोल. इसलिए इस सेंगोल के माध्यम से ही दक्षिण भारत की पार्टियों पर भी निशाना साधा गया है कि आखिर इस गौरवशाली इतिहास की अनदेखी के बाद भी ऐसी उदासीनता क्यों दिखाई गई? सूत्रों के मुताबिक, सवाल यह भी उठता है कि दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दल भी इस गौरवशाली ऐतिहासिक परंपरा के धर्म ,न्याय के प्रतीक की बीते 75 सालों से जारी उपेक्षा और अनदेखी पर चुप्पी क्यों साधे रखा? तभी तो सरकार बार-बार यही सवाल कर रही है कि अब जब राष्ट्रीय संस्कृति के प्रतीक सेंगोल को फिर से उसका गौरव और सम्मान स्थापित किया जा रहा है और उसे नए संसद भवन में स्पीकर के आसन के साथ स्थान देकर भारत के लोकतंत्र और धर्म न्याय के परंपरा के साथ सत्ता स्थानांतरण के प्रतीक को स्थापित किया जा रहा है तो कांग्रेस समेत दक्षिण भारत के कई दल इस ऐतिहासिक अवसर का बहिष्कार करने का ऐलान कर फिर से वही ऐतिहासिक गलती को दोहराने के काम क्यों करने जा रहे हैं?

Tags: New Parliament Building, PM Modi

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