झरने के नीचे, सफेद साड़ी में दिखी थी जो पहाड़न, वह मंदाकिनी अब है कहां?

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कपूर खानदान का एक चिराग फिल्मों में आने की कोशिश कर रहा था. पिता ‘शोमैन’ राजकपूर थे. वे भी चाहते थे कि बेटे को ऐसी फिल्म से लॉन्च किया जाए, जिसमें दर्शकों के लिए मसाला हो, लेकिन फिल्म राजकपूर की ही लगे. नाम और विषय राज साहब ने तय किया था, ‘राम तेरी गंगा मैली‘. हीरो तो बेटा राजीव तय था ही, हीरोइन की तलाश शुरू हुई. ‘बॉबी’ वाली डिंपल का नाम पहली नजर में दिया गया, मगर शोमैन को नया चेहरा चाहिए था. जो दिखने में मासूम लगे और आरके फिल्म्स की अदाकारा भी हो. तलाश जारी रही.

मायानगरी में किस्मत आजमाने आए चेहरों की कमी कभी नहीं होती. नजर ठहरने की देर है. इन्हीं चेहरों में से एक थी यास्मीन जोसेफ. काफी अर्से से मुंबई में फिल्मी सितारा बनने की जद्दोजहद में लगी हुई. स्टूडियो दर स्टूडियो घूम-घूमकर थक चुकी यास्मीन अब वापसी की राह पकड़ने का मन बना चुकी थी. उसे यकीन हो चला था कि फिल्मों में आने का सपना पूरा न हो पाएगा. इसलिए अपने शहर मेरठ लौटने का ख्याल बार-बार जहन में आने लगा था. लेकिन वक्त अभी लौटने का हुआ ही नहीं था, सो कैसे लौट जाती. उसे तो इतिहास में दर्ज होना था.

… तो एक दिन यास्मीन के बारे में राजकपूर साहब को जानकारी मिली. एकदम पहाड़न सी मासूमियत पहली ही नजर में राजकपूर को पसंद आ गई. और ‘राम तेरी गंगा मैली’ को हीरोइन मिल गई. साथ ही यास्मीन को मिला नया नाम, मंदाकिनी. लंबे इंतजार के बाद पहली फिल्म मिली, वह भी आरके बैनर की, मंदाकिनी को मानो पर लग गए.

गंगा नदी के बहाने नारी व्यथा
‘राम तेरी गंगा मैली’ बनकर रिलीज होती, उसके पहले सेंसर ने रोड़ा अटकाया. वजह, फिल्म के चंद ऐसे सीन थे, जिन्हें पर्दे पर दिखाया जाना सेंसर को गंवारा न था. खैर, मशक्कतों के बाद आखिरकार फिल्म सिनेमाघरों तक पहुंची. गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक गंगा के सफर को राज साहब ने अपने कैमरे के पीछे से जैसा देखा, दर्शकों तक वैसे ही पहुंचाया. कथानक इतना मानवीय कि नदी के बहाने नारी, या कहें कि दोनों के दर्द को उकेर कर रख दिया. फिल्म के जिन दृश्यों पर कैंची चलाने की जरूरत बताई जा रही थी, वह उत्तेजना नहीं फैलाती, बल्कि दर्शकों के सामने से ऐसे गुजरती जैसे कि गंगा किनारे के ही दृश्य हों. झरने के नीचे जब फिल्म की ‘गंगा’ कहती है-

तुझे बुलाए ये मेरी बाहें
ना ऐसी गंगा कहीं मिलेगी,
मैं तेरा जीवन मैं तेरी किस्मत
के तुझको मुक्ति यहीं मिलेगी…

तो जैसे लगता है कि सदानीरा भागीरथी, भारतवासियों को अपनी ओर खींच रही है. ये अलग बात है कि रवींद्र जैन का लिखा और उन्हीं के संगीत में पिरोया हुआ ये गीत फिल्म में नायिका के जरिये कहाया गया है. इसी तरह ट्रेन में बच्चे को स्तनपान कराती मां की छाती घूरने वालों की बेशर्मी को फिल्मकार ने जब पर्दे पर उधेड़ कर रख दिया, तो हॉल में बैठा दर्शक भी उसके साथ शर्मसार हुआ. खैर कहने वाले फिर भी कहते रहे, लेकिन न तो फिल्मकार और न ही दर्शकों को इससे फर्क पड़ा. फिल्म सुपरहिट रही. मंदाकिनी हिट हो गईं.

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मंदाकिनी का फिल्मी सफर चल निकला
‘राम तेरी गंगा मैली’ ने मंदाकिनी को 80 के दौर की बेहतरीन कलाकारों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया था. इससे आगे की राह मंदाकिनी को खुद ही तय करनी थी. सो फिल्मों की लाइन लग गई. मंदाकिनी ने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक के बाद एक, फिल्म दर फिल्म मंदाकिनी सफलता की राह पर चल पड़ी. ‘राम तेरी गंगा मैली’ के बाद उन्होंने ‘तेजाब’, ‘लड़ाई’ और ‘प्यार के नाम कुर्बान’ जैसी फिल्में की. उनके काम को सराहा भी गया. इस फिल्मी रास्ते में दोस्त मिले. कुछ नए बने भी. जैसा कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री का दस्तूर है. सफल हुए लोगों के साथ हर कोई जल्द से जल्द जुड़ जाना चाहता है. मंदाकिनी भी इससे अछूती नहीं थी. फिल्म इंडस्ट्री की सीढ़ियां चढ़कर उन्होंने कुछ ऐसे दोस्त बनाए, जिनका दामन दागदार था. फिल्म लाइन वाले विदेशों की सैर करते रहते हैं. इस दौरान चाहने वालों से मुलाकात भी होती है. मंदाकिनी का भी ऐसा ही एक चाहनेवाला निकला अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम.

दाऊद और मंदाकिनी कनेक्शन
मंदाकिनी और दाऊद की तस्वीरें मीडिया की सुर्खियां बनीं. उनके रिश्ते जांच एजेंसियों के निशाने पर थे. मंदाकिनी ने आखिर आखिर तक नहीं माना कि वह और दाऊद कभी करीबी रहे, लेकिन फिल्मों की दुनिया बड़ी बेरहम है. दाऊद इब्राहिम के साथ रिश्ते ने मंदाकिनी का फिल्मी करियर तबाह कर दिया. मंदाकिनी को लंबे समय तक अपने इस रिश्ते की वजह से मुसीबत झेलनी पड़ी. जब तक जांच पूरी हुई, तब तक फिल्मी सफर खत्म हो चुका था. इन सबसे उबर कर मंदाकिनी ने फिर से करियर को पटरी पर लाने की कोशिश भी की, लेकिन दर्शक उन्हें स्वीकार नहीं कर सके. अंततः मंदाकिनी ने फिल्मी दुनिया को छोड़ दिया. उन्होंने एक बौद्ध भिक्षु से विवाह कर लिया. इन दिनों वह मुंबई में अपने परिवार के साथ रह रही हैं. मायानगरी की चकाचौंध से दूर, अपनी यादों के साथ.

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