कैसे सोचते और काम करते हैं अरबपति, कैसे और किन चीजों से होते हैं खुश

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Thought Process of billionaires: स्‍पेस-एक्‍स और टेस्‍ला के संस्‍थापक एलन मस्‍क हों या अमेजन के संस्‍थापक जेफ बोजोस, हमें उनकी जिंदगी जितनी आरामदायक या आसान नजर आती है, उतनी है नहीं. इसी वजह से अमीर और ताकतवर लोग हमेशा से मनोवैज्ञानिकों के अध्‍ययन का विषय रहे हैं. शोधकर्ता ये समझने की कोशिश करते रहे हैं कि बेहद अमीर लोगों का मनोविज्ञान और मानसिकता कैसी होती है? बार-बार ये समझने के लिए अध्‍ययन किए गए कि उन्‍होंने अपने विशाल साम्राज्यों का निर्माण कैसे किया?

शोधकर्ताओं ने हमेशा ये जानने की कोशिश की है कि क्या अरबपति बनने के लिए क्रूर मानसिकता होनी चाहिए? या क्या अमीर बनना हर दिन सुबह 4 बजे उठने के बराबर आसान है. मनोवैज्ञानिकों ने अति-अमीरों के आंतरिक कामकाज की जांच भी की. मनोविज्ञानियों के मुताबिक, दुनिया के सबसे अमीर लोगों के वित्तीय साधनों के अलावा उनका खास व्‍यक्तित्‍व भी उन्‍हें सबसे अलग बनाता है. इसी खास व्‍यक्तित्‍व और वित्‍तीय साधनों के जरिये वे अपने मुकाम तक पहुंचते हैं.

हर तरह की भावनाओं को काबू करने में माहिर
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक डॉ. स्टीव लॉफमैन ने बीबीसी साइंस को बताया कि अमीर लोग अपनी सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं को काबू करने में माहिर होते हैं. वे अपने आसपास की दुनिया के सामने अपनी भावनाओं को दिखाने से बचते हैं. वे ज्यादातर आम लोगों की तरह प्रतिक्रिया नहीं करते हैं. वे एक्‍सट्रोवर्ट, आउटगोइंग और नए अनुभवों के लिए खुले रहते हैं. ये निष्‍कर्ष लोगों के मन में अमीरों को लेकर बनी एकांतप्रिय और इंट्रोवर्ट वाली छवि को खारिज करता है. अमूमन लोग यही सोचते हैं कि अति-अमीर लोग ज्‍यादातर वक्‍त अकेला रहना पसंद करते हैं. उन्‍हें किसी से ज्‍यादा बातचीत करना पसंद नहीं होता है.

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इनोवेशन पर जोर देते हैं ज्‍यादातर अति-अमीर
दुनिया के सबसे अमीर लोगों के भावनाओं पर काबू रहने और एक्‍सट्रोवर्ट होने को लेकर बहुत बार अध्‍ययन किए गए हैं. लेकिन, बीते साल सामाजिक आर्थिक पैनल के अध्‍ययन में खास बातें समाने आई थीं, जिन पर ध्‍यान देना जरूरी है. शोधकर्ताओं ने 20,000 से ज्‍यदा लोगों के मान्य व्यक्तित्व परीक्षणों के डाटा का अध्ययन किया. इस समूह में 1,000 से ज्‍यादा लोग कम से कम करोड़पति थे. इनमें से जिसकी संपत्ति जितनी अधिक थी, उसके व्यक्तित्व में एक जैसे खास लक्षण थे. उनमें से बमुश्किल कुछ लोग ही परंपरावादी होते हैं. वे इनोवेशन पर जोर देते हैं. इसके साथ ही उनमें से ज्‍यादातर में उच्‍च स्‍तर की कर्तव्‍यनिष्‍ठा थी.

अति-अमीर आसानी से नहीं होते हैं सहमत
लॉफमैन के मुताबिक, अति-अमीरों में से ज्‍यादातर किसी चीज या बात पर आसानी से सहमत नहीं होते हैं. हालांकि, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वे असभ्य हैं. इसका मतलब सिर्फ इतना है कि वे संघर्ष के साथ सहज हैं. वे किसी भी चीज या बात पर सहमत होने से पहले उसे हर तरह से परखते हैं. वे इस बात की परवाह नहीं करते कि उनके फैसले या बात से बाकी लोग उन्‍हें पसंद या नापसंद करेंगे. वे बिना किसी की परवाह किए अपने आसपास के लोगों के सामने नई तरह की चुनौतियां पेश करते रहते हैं. ज्‍यादातर अपने दम पर करोड़पति लोगों में करीब करीब एक जैसी खूबियां होती हैं.

विरासत से करोड़पति बने लोगों के लक्षण
जिन करोड़पति लोगों को संपत्ति विरासत में मिली है, उनमें परिवार के कुछ लक्षण आ सकते हैं. लॉफमैन कहते हैं कि लोगों को व्यक्तित्व भी विरासत में मिलता है. ऐसे करोड़पतियों में भी कुछ लक्षण समान होते हैं. इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होते हैं, जो अक्सर विरासत के साथ आते हैं. लॉफमैन कहते हैं कि विरासत में अमीर बनना पार्क में घूमने जितना आसान भी नहीं होता है. इससे सडेन वेल्‍थ सिंड्रोम के तौर पर भी जाना जाता है. ये एक तरह का विकार है. बड़ी मात्रा में धन प्राप्त करने के साथ आने वाली उम्‍मीदों और अपेक्षाओं का भार लोगों के मनोविज्ञान को बदल सकता है. कुछ ऐसा ही विकार उन लोगों में भी आता है, जिनको लॉटरी में बड़ी रकम मिलती है. कुछ ऐसा ही हाल क्रिप्‍टोकरेंसी के जरिये अमीर बनने वालों का भी होता है.

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क्‍या हैं अमीरों से जुड़े एफ्सुलेंट शब्‍द के मायने
सडेन वेल्‍थ सिंड्रोम को कई मामलों में रिपोर्ट किया गया है. हालांकि, विरासत में अमीर बनने वालों में ये विकार कम ही पाया जाता है. लॉफमैन बताते हैं कि कुछ समय के लिए एक शब्‍द ‘अफ्लुएंजा’ काफी लोकप्रिय हुआ था. ये शब्‍द ‘एफ्युलेंट’ और ‘एंफ्लुएंजा’ को मिलाकर बनाया गया था. ये उन लोगों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता था, जो अपनी जबरदस्‍त समृद्धि के कारण सही और गलत की भावना खो देते हैं. उनमें प्रेरणा, अपराधबोध और अलगाव की भावना की कमी रहती है. हालांकि, इस शब्‍द पर कोई वास्‍तविक शोध नहीं किया है. यही नहीं, इस शब्‍द को किसी साइकियाट्रिक मैनुअल में भी दर्ज नहीं किया गया है. फिर भी मनोविज्ञानी इस विचार में कुछ हद तक सच्‍चाई की बात करते हैं.

कुछ अति-अमीर नहीं मानते कोई भी नियम
मनोचिकित्‍सक क्‍ले कॉकरेल के मुताबिक, अति-अमीर कुछ लोग सोचते हैं कि उन पर कोई नियम लागू नहीं होता है. वे अक्‍सर उन नियमों को नहीं मानते हैं, जिनका आम लोग बहुत ध्‍यान से पालन करते हैं. वह बताते हैं कि उनके कई अमीर क्‍लाइंट अंतरराष्‍ट्रीय यात्राओं पर पासपोर्ट कंट्रोल के बजाय प्राइवेट जेट रूट्स से जाते हैं. हालांकि, ये हर अमीर व्‍यक्ति की सोच नहीं है. ये अक्‍सर उन अमीरों में देखा जाता है, जिनको विरासत में बहुत ज्‍यादा संपत्ति मिलती है. वह कहते हैं कि बहुत से लोग अपने पैसे को बढ़ाने के लिए काम नहीं करते हैं. ऐसे लोग महात्‍वाकांक्षाएं खो सकते हैं. ऐसे अति-अमीर आखिर में किसी एक लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए काम करने की जरूरत महसूस करना बंद कर देते हैं.

क्‍या अति-अमीर हर समय रहते हैं खुश
अब सवाल ये उठता है कि क्‍या अति-अमीर लोग हर समय खुश रहते हैं. एक अध्‍ययन में खुशी और धन की कटऑफ लिमिट तय करने की कोशिश की गई. नोबेल पुरस्कार विजेता एंगस डिएटन के एक अध्ययन के मुताबिक, अगर आपकों हर साल 75,000 डॉलर दिए जाएं तो भी आपकी खुशी में बड़ी वृद्धि नहीं होती है. हालांकि, तब से हुए दूसरे शोधों में कुछ नई बातें भी सामने आई हैं. अर्थशास्‍त्री जस्टिन वोल्फर्स ने तर्क दिया है कि पैसे और खुशी के बीच केवल एक लंबा रैखिक संबंध होता है. वह कहते हैं कि अगर आप हर घंटे 5 पाउंड कमाते हैं और आपको अतिरिक्त 10 पाउंड प्रति घंटा दिए जाएं तो आपकी खुशी में इजाफा होगा. कॉकरेल कहते हैं कि वेतन में 10 हजार पाउंड की बढ़ोतरी के बजाय अगर आप इसे 10 फीसदी वृद्धि के तौर पर देखते हैं तो यह सामान्‍य बात होगी.

कैसे मिलती है अमीरों को खुशी
कॉकरेल कहते हैं कि अमीरों और अति-अमीरों को उनकी पूंजी में बड़ी बढ़ोतरी से खुशी मिलती है. हालांकि, उनके लिए कोई भी बढ़ोतरी पर्याप्त नहीं होने की भावना से जुड़ी होती है. ये भावना कई लोगों में अपराधबोध, अलगाव और आत्म-मूल्य के नुकसान की भावनाओं के साथ आती है. कॉकरेल बताते हैं कि मेरे ग्राहक अक्सर खुश नहीं होने पर दोषी ही महसूस करते हैं. इसका सीधा मतलब है कि पैसा आपकी सभी समस्याओं का समाधान नहीं करता है. ये केवल कुछ चीजों को आसान बनाता है. लॉफमैन कहते हैं कि धन किसी को खुश रख पाए या नहीं, लेकिन इसमें किसी की नैतिक दिशा को बनाने या बिगाड़ने की क्षमता होती है. आपके पास बहुत पैसा होने से आप बड़े दानकर्ता बन सकते हैं. हालांकि, जब धन और नैतिकता की बात आती है तो कोई भी शोध साफ निष्‍कर्ष नहीं दे पाता है.

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दूसरों की भावनाओं को समझने में दिक्‍कत
अध्ययनों से संकेत मिलता है कि अमीर लोगों को दूसरों की भावनाओं को समझने में कठिनाई होती है. उन्‍हें लोगों के प्रति सहानुभूति महसूस करने में संघर्ष करना पड़ता है. शायद यह पैसा नहीं है, जो अति-अमीरों की नैतिकता को बदल देता है. शायद यह ताकत है. जहां पैसा होता है, वहां आमतौर पर ताकत होती है. अब ये उनकी नैतिकता पर निर्भर करता है कि वे लोग इस ताकत का इस्‍तेमाल कैसे करते हैं. मूल तर्क यह है कि ताकत व्‍यक्ति को सक्षम बनाती है. हम सभी के व्यक्तित्व और स्वभाव हैं, लेकिन शक्ति के बिना आपको जीवन व समाज के तरीकों के मुताबिक होना होगा. फिर भी ताकत के साथ आप जीवन में कई चुनौतियों का सामना करते हैं. लॉफमैन कहते हैं कि ये चुनौतियां ही ताकतवर इंसान को नैतिक या अनैतिक बनाती हैं.

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