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मां पर कुछ भी लिख देना, कितना भी लिख देना, हमेशा कम ही होता है. मां का होना किसे कहते हैं, ये उस बच्चे से पूछें जिसके पास मां नहीं होती है. इस दुनिया में नजाने ऐसे कितने बच्चे हैं, जिनके पास मां नहीं है. ऐसे में अगर मां का साया जिन बच्चों के सिरों पर है, वे बच्चे दुनिया के सबसे खुशनसीब बच्चों में गिने जाने चाहिए. बच्चा कितना भी बड़ा हो जाए, मां का दुलार उसके लिए कभी नहीं बदलता. मां को किसी बात की चिंता सताए न सताए, बच्चे की भूख उसे सबसे ज्यादा सताती है. बच्चे को अच्छी नींद आ रही है और उसका पेट भरा हुआ है, फिर वो दुनिया के किसी भी कोने में हो, मां से कितनी भी दूर, मां इतने में ही तसल्ली कर लेती है. मां पर कुछ कहना या फिर बहुत कुछ भी कहना बेमानी है, लेकिन फिर भी हमारे कवियों और शायरों ने जिस खूबसूरती से मां के स्पर्श को अपनी कविता-गज़लों और शायरियों में छूने की कोशिश की है, वो यकीनन आंखें नम कर देती हैं.
ऐसा कोई शायर, कोई कवि नहीं हुआ जिसने अपने जीवनकाल में कोई रचना अपनी मां के लिए न लिखी हो. सभी ने लिखा है, जिसने मां का सुख देखा है उसने भी और जिसने मां का सुख नहीं देखा उसने भी. हमारे समय के शायरों के बारे में बात की जाए तो मुनव्वर राना ने मां पर बेहतरीन शेर और गज़लें लिखी हैं, जिनकी दो-दो पंक्तियां ही भावनाओं को आंसुओं में तब्दील कर देने की कूवत रखती हैं. ऐसा क्या है इस एहसास में जिसे न बताने की ज़रूरत पड़ती है, न जताने की… बस जो सिर्फ महसूस होता है. एक ऐसा रिश्ता जो न असुरक्षित होने देता है और न ही उदास. मां कहीं भी हो, नजाने कैसे जान जाती है कि बच्चा किस हाल में है. यकीनन मां के पास एक खुदाई ताकत होती है, जो बच्चे का हाल उसके बिना कहे बिना सुने मां तक पहुंच जाता है.
मां जैसी पाकीज़गी किसी और एहसास में नहीं. दुनिया का हर शख़्स अपनी पहली मोहब्बत मां से ही करता है, उसके बाद जैसे-जैसे जीवन आगे बढ़ता है रिश्तों का दायरा बढ़ता जाता है, लेकिन मां का दामन कभी नहीं छूटता और उसकी मोहब्बत बरकरार रहती है. कई शायरों ने तो अपनी गज़लों में मां को महबूब की तरह भी रचने की कोशिश की है और ये कोशिश भी नहीं अपने आप ही निकले हुए भाव हैं, जिन्हें शब्दों की दुनिया में आने के बाद कविता, गज़ल या शायरी का नाम दे दिया जाता है. मां को हमारे हिंदी-उर्दू शायरों ने जिस खूबसूरती से अपनी गज़लों में रखा है, वो बात किसी और भाव के शेरों में पढ़ने को नहीं मिलती.
यहां कुछ ऐसे चुनिंदा शेरों को आपके साथ साझा किया जा रहा है, जो मां होने का सही मतलब समझाते हैं. मां की मौज़ूदगी को और ताकत देते हैं और उसके और करीब ले जाकर खड़ा कर देते हैं. मां अपने बच्चों के लिए किस कदर प्यार लुटाती है, वो इन शेरों में देखते बनता है. इन शेरों को जिस शिद्दत और जिस गहराई से कहा गया है, खुद से उसको अलग किया जा ही नहीं सकता. इन शेरों को पढ़िए और उन सबको पढ़ाइए जिनके जीवन में मां की एहमियत खुदा से भी ऊपर की है और जो मां से ख़फा या नाराज़ हैं, वे भी इन्हे पढ़कर सब भूल जाएंगे, क्योंकि मां है ही वो रिश्ता जिससे दुनिया का कोई भी शख़्स नफरत नहीं कर सकता… न ही मां के बिना अपना जीवन सोच सकता और न ही उसे पल भर के लिए भूल सकता है. आइए पढ़ते हैं मां पर लिखे गए कुछ बेहतरीन शेर, जिनका अब तक कोई तोड़ नहीं मिला, लेकिन उससे पहले पढ़ेंगे निदा फाज़ली साहब की मां पर लिखी गई बेहतरीन गज़ल-
मां पर गज़ल…
“बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां
बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे,
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी मां
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-अली,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंडी जैसी मां
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गई,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां”
–निदा फ़ाज़ली
मां पर खूबसूरत शायरियां…
“किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में मां आई”
“अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है”
“चलती फिरती हुई आंखों से अज़ां देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है”
-मुनव्वर राना
“मुद्दतों ब’अद मयस्सर हुआ मां का आंचल
मुद्दतों ब’अद हमें नींद सुहानी आई”
-इक़बाल अशहर
“किताबों से निकल कर तितलियां ग़ज़लें सुनाती हैं
टिफ़िन रखती है मेरी मां तो बस्ता मुस्कुराता है”
-सिराज फ़ैसल ख़ान
“भूके बच्चों की तसल्ली के लिए
मां ने फिर पानी पकाया देर तक”
-नवाज़ देवबंदी
“मां की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले”
-कैफ़ भोपाली
“सुरूर-ए-जां-फ़ज़ा देती है आग़ोश-ए-वतन सब को
कि जैसे भी हों बच्चे मां को प्यारे एक जैसे हैं”
-सरफ़राज़ शाहिद
“कहो क्या मेहरबां ना-मेहरबां तक़दीर होती है
कहा मां की दुआओं में बड़ी तासीर होती है”
-अंजुम ख़लीक़
“इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मेरी शह-रग पे मिरी मां की दुआ रक्खी थी”
-नज़ीर बाक़री
“सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
मां ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था”
-अहमद सलमान
“सामने मां के जो होता हूं तो अल्लाह अल्लाह
मुझ को महसूस ये होता है कि बच्चा हूं अभी”
-महफूजुर्रहमान आदिल
“बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊंचाई तक
मां दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है”
-सरफ़राज़ नवाज़
“मैं ने मां का लिबास जब पहना
मुझ को तितली ने अपने रंग दिए”
-फ़ातिमा हसन
“एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे”
-इरफ़ान सिद्दीक़ी
“वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने मां पुकारा मुझे
मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई”
-हुमैरा रहमान
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Tags: Books, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : June 20, 2023, 22:01 IST
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