Opinion: अमेरिका के साथ प्रीडेटर ड्रोन डील में विन विन सिचुएशन में भारत

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पीएम मोदी का अमेरिका दौरा खासा सफल साबित रहा है. भविष्य की टेक्नोलॉजी के मामले जैसे आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्युटिंग और सुपर कंप्यूटर की दिशा में महत्वपूर्ण समझौते हुए. तो साथ ही भारत के पुराने होते लड़ाकू विमान, रडार सिस्टम और प्रीडेटर ड्रोन की खरीद को हरी झंडी मिल गयी है. इसमें न सिर्फ इनकी खरीद बल्कि उनकी टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर करने को भी अमेरिका तैयार हो गया. MQ9B HALE नाम के इस प्रीडेटर ड्रोन के लिए अमेरिकी सरकार ने इसके लिए एक सांकेतिक कीमत भारत सरकार को बतायी थी. लेकिन कांग्रेस ने इसी इंडिकेटिव कीमत को आधार बनाते हुए मोदी सरकार पर सवाल उठाने शुरु कर दिए.

सरकार के शीर्ष सूत्रों का मानना है कि विपक्षी दल का आरोप निराधार है क्योंकि उन्होंने गलत सूचनाओं और बिना सच्चाई जाने ही प्रीडेटर की खरीद पर सवाल उठा दिए हैं. शीर्ष सूत्रों के मुताबिक भारत ने अभी तक इसकी कीमतें फाइनल नहीं की हैं. सूत्रों के मुताबिक वस्तुस्थिति ये है कि अभी यूएस कांग्रेस ने इसे मंजूरी देनी बाकी है. अंत में पीएम मोदी कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति इसे मंजूरी देगी; इसलिए कीमतों को लेकर लगाए गए आरोप देशहित में नहीं हैं.

अमेरिका इसका पुराना मॉडल भारत को नहीं सौंप रहा
दूसरी महत्वपूर्ण बात जो विपक्षी कांग्रेस नजरअंदाज कर रही है वो है प्रीडेटर ड्रोन का लेटेस्ट सिस्टम. आला सूत्रों के मुताबिक अमेरिका इसका पुराना मॉडल भारत को नहीं सौंप रहा है. बल्कि ये लेटेस्ट टेक्नोलॉजी सिर्फ अमेरिका के पास है और भारत को मिलने जा रहा है. इसकी मारक क्षमता इतनी है कि दुश्मन की सीमा में जाए बिना ही सीमा पार की गतिविधियों को पकड़ लेगा और साथ ही सीमा पार हथियार भी गिरा सकता है. भारतीय नौसेना, वायु सेना, थल सेना ने संयुक्त बैठक कर साइंटिफिक तरीके से इसका अध्ययन किया था. फिर इस अत्याधुनिक प्रीडेटर की मांग सरकार के सामने रखी थी.

भारत- अमेरिका डील से दुश्‍मनों में फैला डर
सूत्रों के मुताबिक सेना के तीनों अंगों की इस मामले पर दो बार संयुक्त बैठक हुई थी. जाहिर है जब ये 31 ड्रोन भारत पहुंचेगें तो सीमा पार बैठे दुश्मनों को पहले से ही डर पैदा हो गया है. आला सूत्रों के मुताबिक उन देशों का यही डर है जो सोशल मीडिया से लेकर हर डिजिटल प्लेटफार्म पर भारत- अमेरिका डील पर गलत बातें फैला रहा है ताकि इसे रोका जा सके.

सिर्फ अपने मित्र देशों के साथ ही ऐसे रक्षा समझौते करता है अमेरिका
अमेरिकी सरकार ऐसी रक्षा खरीद को सिर्फ अपने मित्र देशों को बेचता है और वो भी नो प्रोफिट और नो लॉस के आधार पर ऐसे हथियारों की डील होती है. भारत सरकार अमेरिकी सरकार के साथ सीधा ये समझौता कर रही है. बीच में न कोई कंपनी है और न ही कोई बिचौलिए. सूत्रों के मुताबिक इतनी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी किसी और देश के पास नहीं है और साथ ही भारत को जिस कीमत में मिल रही है तो अमेरिका के दूसरे मित्र देशों को मिली कीमतों से काफी सस्ती है.

पॉलिसी मंजूरी के बाद कीमतों पर होगा मोल-तोल
भारत में डीआरडीओ ने तो तापस बनाया है और उससे तकनीकी रूप से कहीं आगे है अमेरिकी ड्रोन की टेक्नोलॉजी. साथ ही इसे भारत द्वारा खरीदने में कोई गलत काम नहीं हो रहा है क्योंकि पूरी प्रक्रिया अमेरिकी सरकार के फेडेरल एक्वीजिशन रेगुलेशन से संचालित होते हैं. एक बार अमेरिका से भारत को बेचने की पॉलिसी मंजूर हो गयी फिर भारत कीमतों पर मोल तोल करने की शुरुआत करेगा.

भारत को बेस्ट कीमतें और बेस्ट इक्वीपमेंट मिलेंगे
सूत्रों की माने तो MQ9B HALE की संभावित कीमत इस टेक्नोलॉजी को खरीदने वाले उन चंद देशों द्वारा दी गयी कीमतों से 27 फीसदी कम है जिसमें संयुक्त अरब अमीरात, बेल्जियम, ताइवान, मोरक्को, युनाईटेड किंगडम शामिल हैं. सूत्रों का दावा है कि MQ9B HALE संयुक्त अरब अमीरात को दिए गए टेक्नोलॉजी से भी बेहतर तकनीक भारत को मुहैया करा रहा है. इसलिए भारत को बेस्ट कीमतें और बेस्ट इक्वीपमेंट मिलेंगे. MQ9B HALE को भारत में जोड़ने की संभावित लागत भी दुनिया के दूसरे देशों से कम आएगी. सूत्रों ने कांग्रेस के उन आरोपों को भी नकार दिया जिसमें उन्होंने कहा था अमेरिकी वायुसेना को 56.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर ही लगे थे. सूत्रों के मुताबिक ये 2011 की खरीद थी और ये टेक्नोलाजी MQ9A थी जो MQ9B HALE से थोड़ी कमतर तकनीक है.

भारत को लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर करेगा अमेरिका  
इस डील की सबसे खास बात है कि अमेरिका डीआरडीओ को तकनीक का ट्रांसफर करेगा. ये अत्याधुनिक तकनीक भारत में ही रक्षा और असैनिक कार्यों के लिए मानवरहित विमान बनाने में मदद करेगा. इस उच्च तकनीक के ट्रांसफर का ही कमाल होगा कि 31 में से 21 HALE RAPS को भारत में जोड़ा जाएगा. साथ ही इसके कई महत्वपूर्ण हिस्सों का निर्माण भारत में भी होने लगेगा. अमेरिका ने भारत में ही एक ग्लोबल सस्टेनेबल हब बनाने का फैसला लिया है. सरकारी सूत्रों का दावा है कि भारतीय कंपनियों को भी अमे‍रिकी कंपनियों से अच्छी डील मिलेगी और सरकार भी सभी कंपनियों से संपर्क में है. जाहिर है ये ड्रोन सर्विलांस की क्षमता और बढ़ाएंगे और हम पहले से जानने में सक्षम होंगे कि दुश्मन सीमा पार क्या गतिविधि कर रहा है?

अमेरिकी MQ9B HALE कहीं ज्यादा सुपीरियर
भारत मे बने तापस से ये अमेरिकी MQ9B HALE कहीं ज्यादा सुपीरियर है. इसकी रेंज 10 गुना ज्यादा है तो ये 1.8 गुना ज्यादा ऊंचाई तक जा सकता है. इसकि गति भी भारतीय ड्रोन के मुकाबले 1.8 गुना ज्यदा है और पे लोड ले जाने में तापस से दो गुना ज्यादा वजन संभाल सकता है. भारत की जरुरतें बहुत ज्यादा हैं लेकिन बातचीत कुछ ऐसी चल रही है कि भारत को ज्यादा फायदा हो सके.

पारदर्शी है भारत और अमेरिका की फौरेन मिलिटरी सेल यानि एफएमएस
दोनों सरकारे एक समझौता करतीं हैं. इसे लेटर ऑफ ऑफर और एक्सेपटंस कहा जाता है. अमेरिकी एफएमएस अपने मित्र देशों को रक्षा और रक्षा सेवाओं की खरीद के लिए बिना नफे बिना नुकसान के समझौते करने की अनुमति देता है. ये किसी भी दलाली या गलत संभावनों को दूर कर देता है क्योंकि पूरी प्रक्रिया अमेरिकी सरकार की फेडेरल एक्वीजिशन रेगुलेशन की नीति पर चलना होता है. सूत्रों के मुताबिक अमेरिका की फॉरेन मिलिट्री सेल पूरी तरह पारदर्शी है. पहले भारत ने अमेरिका से कीमतों और रक्षा सामग्री की उपलब्धता को लेकर जानकारी मांगी है.

प्रीडेटर ड्रोन की खरीद की कीमत अभी तय नहीं
पहले भारत में डिफेंस एक्वीजिशन काउंसिल ने इसकी खरीद को मंजूरी दी थी. इसमें कीमतें तय नहीं की गयीं थी सिर्फ ये मंजूर हुआ था कि हमारी सेना की जरुरतें क्या हैं? फिर अमेरिकी सरकार ने लेटर ऑफ ऑफर और एक्सेपटेंस भेजा. अब कॉन्ट्रैक्ट निगोशिएशन कमिटि कीमतों को लेकर मोल तोल करेगी. सूत्रों के मुताबिक ये कीमतें भारत की जरुरतों के हिसाब से घट या बढ़ भी सकतीं हैं. सूत्रों ने बार- बार बताया कि भारत ने इसकी कीमत पर अंतिम फैसला नहीं लिया है. अभी किसी भी कंपनी और अमेरिकी सरकार के साथ कीमतों पर समझौता नहीं हुआ है. इसलिए शीर्ष सूत्र ने कांग्रेस के आरोपों को पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया.

कीमतों को लेकर कई राउंड की मोल- तोल चलेगी
आला सूत्रों के दो बातें साफ कर दी हैं. पहला कि अमेरिका भारतीय शर्तों पर पूरी डील को अंजाम दे रहा है जिसमें लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर भी होगा. दूसरा अमेरिका ने जो आंकड़े दिए थे वो इंडिकेटिव फिगर थे न कि ड्रोन की कीमत. सरकारी सूत्रों की मानें तो अभी कीमतों को लेकर कई राउंड की मोल- तोल चलेगी क्योंकि अभी कीमतों पर बातचीत शुरु भी नहीं हुई है. सरकार का मानना है कि दोनों देशों के सीधी और पारदर्शी डील सबूत है कि इसमें मीन मेख निकालना देशहित में नहीं होगा.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए sachhikhabarHindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Tags: America, Armed Predator Drones, PM Modi in America, Pm narendra modi, Prime Minister Narendra Modi

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