mughal emperor aurangzeb’s soul trembled after seeing this dance of rajasthan – News18 हिंदी

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रिपोर्ट- मनमोहन सेजू
बाड़मेर. राजस्थान की अपनी समृद्ध परंपराएं हैं. ऐसी ही एक अद्बुत रीत है पश्चिम राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले में. यहां के जसनाथी सम्प्रदाय के लोग अग्नि के दहकते अंगारों पर खेलते हैं. अठखेलियां करने हैं. दहकते अंगारों पर ऐसे चलते हैं जैसे फूलों पर चल रहे हों. खिलौनों की तरह अंगारों को हाथों में ले लेते हैं. मुंह में लौ और अंगारा भर कर उसकी फुहार छोड़ते हैं. यह नृत्य केवल पुरुष करते हैं. इसे देखकर हर कोई सन्न रह जाता है.

भारी भरकम साफा, बदन पर श्वेत कपड़े पहने जसनाथी गायबियों (कीर्तनकारों और वादकों) के दल विशाल नगाड़ों की थाप पर मंगलाचरण और स्तवन करते हैं. इसकी अपनी अलग पहचान है. खास बात यह है कि यह नृत्य पूरी वेशभूषा के साथ किया जाता है. पुरुष सिर पर पगड़ी, धोती-कुर्ता और पांव में कड़ा पहनकर अग्निनृत्य करते हैं. लीलसर धाम के महंत मोटनाथ महाराज बताते हैं अग्निनृत्य करीब 500 साल से अधिक समय से पुराना है.

राग अलापते ही शांत हुए अग्निकुंड
इस खेल के बारे में एक किस्सा काफी मशहूर है. भारत में जब औरंगजेब का शासन था तब जसनाथ महाराज की तीसरी पीढ़ी संत रुस्तम महाराज हुए. उन्होंने लिखमादेसर धाम पर एक फरमान जारी किया कि जो भी नगाड़े बजाता हो तो उसे लेकर दिल्ली आओ. इसके बाद दिल्ली में औरंगजेब ने बड़ा कुंड बनाकर उसमें लकड़ियां जलाकर अग्निनृत्य करने को कहा. जसनाथ महाराज प्रकट हुए और रुस्तम महाराज को वचन दिया कि पीढ़ी दर पीढ़ी मल्लार राग पर जसनाथ के 36 नियमों का पालन करने वाले सिद्ध हैं. वह ओंकार राग में शब्द गाएंगे और उस समय अग्नि ठंडी हो जाएगी.

मुंह में अंगारे, पैरों तले अंगार
अग्नि नृत्य से एक-डेढ घण्टे पहले बड़े-बड़े लकड़े करीने से जमाए जाते हैं. मन्त्रोचारण के साथ हवन कुंड में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है. ज्वाला उठने के साथ ही दर्शक धूणें के चारों ओर अपना स्थान बना लेते हैं. सामने दूसरे सिरे पर ‘गायक’ और ‘कीर्तनकार’ जसनाथजी की प्रतिमा और उनके ध्वज के पास ऊंचे तख्तों पर चन्द्राकार बैठ जाते हैं. लकड़ी के धूणें और नृत्य सीमा में किसी अन्य को आने की अनुमति नहीं रहती. नृतक धधकती आग पर नृत्य करने के साथ अंगारे मुंह में भी लेते हैं.

जब औरंगजेब भी रह गया था सन्न
अग्नि नृत्य के प्रति लोगों की आस्था ऐसी है कि इसे देखने बाड़मेर सहित प्रदेश भर से लोग पहुंचते हैं. कहते हैं जसनाथ सम्प्रदाय की सिद्धि देखकर मुगलिया सल्तनत के बादशाह औरंगजेब की आत्मा कांप गई थी.

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