Letters From A Father To His Daughter : वो किताब जिसमें वो सारी चिट्ठियां हैं, जो जवाहरलाल नेहरू ने इंदिरा गांधी के लिए लिखीं

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पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद के एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था. नेहरू की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई घर पर ही हुई और 15 साल की उम्र में वे वकालत की पढ़ाई करने लंदन चले गए. 1912 में भारत वापिस लौटे और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए. नेहरू को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ, जिस पद का दायित्व उन्होंने 17 सालों तक निभाया. जवाहरलाल नेहरू की रुचि लेखन में शुरू से ही थी, जिसके चलते उन्होंने ‘एन ऑटोबायोग्राफी’, ‘ग्लिम्पसेज़ ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ और ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ जैसी कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं.

पत्रों के माध्यम से जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘पिता के पत्र (Letters From A Father To His Daughter)’ में कही गई कहानियां शाश्वत हैं. किताब में जो पत्र हैं, वो लिखे तो इंदिरा गांधी के लिए गए थे, लेकिन इसके माध्यम से नेहरू ने देश के हर बच्चे को वो जानकारी देने की कोशिश की, जिसमें वो जन्म लेता है और बड़ा होता है. इतिहास को लेकर नेहरू की समझ इतनी आधुनिक और उदारवादी थी, कि किताब कई सालों बाद आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. इस किताब को पढ़ने के बाद बाल मन में कई सवाल आ जाते हैं, जिनके जवाब वो अपने आसपास की दुनिया से ढूंढने की कोशिश करता है.

किताब के साल 2008 के संस्करण में प्रियंका गांधी लिखती हैं, “मैंने इन पत्रों को पहली बार बोर्डिंग स्कूल में पढ़ा था, जब मैं ग्यारह साल की थी. यानि इन्हें लिखे हुए पचपन बरस बीत चुके थे, लेकिन किताब ने मुझे मुग्ध कर दिया. मैं घर लौटी तो दादी से पूछने के लिए मेरे दिमाग में सौकड़ों प्रश्न घुमड़ रहे थे. अधिकांश लोगों को इंदिरा गांधी एक गंभीर और सख्तमिजाज़ महिला लगती थीं, लेकिन वास्तव में वे बेहद स्नेही और ममतामयी थीं. ये मेरा और मेरे भाई का सौभाग्य था कि हम उनके घर में बड़े हुए. लॉन में उनके साथ टहलना अपने आप में एक एडवेंचर और खोज हुआ करती थी. वो हमें नन्हें पत्थर में भी उसके चक्र और टेक्सचर देखना, तितली के पंखों के इंद्रधनुषी रंगों को सराहना और आसमान में सितारों को पहचानना सिखातीं.”

इंदिरा ऐसी थीं, शायद इसमें बहुत बड़ा योगदान जवाहरलाल नेहरू के उन पत्रों का रहा होगा, जो उन्होंने उनके बचपन में लिखे. इतिहास और प्रकृति के प्रति इंदिरा का प्रेम नेहरू की ही देन था, जिसमें इस किताब के पत्रों का बड़ा योगदान रहा.

Jawaharlal Nehru

पंडित जवाहर लाल नेहरू का वो पत्र-संग्रह जिसका अनुवाद मुंशी प्रेमचंद ने किया.

ये ख़त इंदिरा गांधी के लिए ही लिखे गए थे, इस खयाल से परे कि इन्हें कभी किताब का भी रूप दिया जाएगा. लेकिन दोस्तों के कहने पर नेहरू ने इसे किताब का रूप दिया ताकि देश-दुनिया के तमाम बच्चे भी इसे पढ़ और समझ सकें. पत्र अंग्रेज़ी भाषा में लिखे गए थे, लेकिन नेहरू चाहते थे कि ये हिंदी में भी छपें, जिसका अनुवाद आधुनिक हिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी में किया. प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई थी, इसलिए उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी, साथ ही वे अनुवाद कार्य में भी समान रूप से सक्रिय रहे.

इसमें कोई संदेह नहीं, कि ‘पिता के पत्र’ मासूम बाल मन के लिए प्रकृति, दुनिया और समाज को समझने में एक मददगार किताब है, जो आश्चर्यजनक कहानियों से भरी पड़ी है. किताब को पढ़ते हुए आप जवाहरलाल नेहरू के उन विचारों को बेहतर तरीके समझ पाएंगे, जो किसी देश या वहां के देशवासियों को महान बनाती है. किताब में आसान भाषा में लयबद्ध तरीके से बताया गया है, कि पृथ्वी की शुरुआत कैसे हुई और मनुष्य ने स्वयं को कैसे पहचाना. हर किसी को ये किताब पसंद आए ऐसा ज़रूरी नहीं, लेकिन किताब को पढ़ने के बाद नेहरू के इन पत्रों से दुनिया और दुनिया में रहने वालों के विस्तृत कुटुंब को समझने की समझ विकसित होती है. आज जब समय इतना बदल चुका है, हर ओर युद्ध का शोर है ऐसे में किताब बहुत सहज, सरल और आसान लगती है, क्योंकि दुनिया अब वैसी रही नहीं, लेकिन किताब में शामिल की गई चिट्ठियां हर इंसान को एक नई दृष्टि प्रदान करने की क्षमता रखती हैं और लोगों के बारे में सोचने-विचारे की भावना पैदा करती हैं. किताब को पढ़ने के बाद अपने आप ही आपको विश्व को जानने की चेतना पैदा होती है.

किताब का प्रकाश पेंगुइन बुक्स ने किया है. किताब के बारे में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था, “मुझे मालूम है कि इन छोटे-छोटे ख़तों में बहुत थोड़ी सी बातें ही बतला सकता हूं. लेकिन मुझे आशा है कि इन थोड़ी सी बातों को भी तुम शौक से पढ़ोगी और समझोगी कि दुनिया एक है और दूसरे लोग जो इसमें आबाद हैं, हमारे भाई-बहन हैं.”

यदि आप अपनी नन्ही बिटिया को इस फादर्स डे कोई अच्छा तोहफ़ा देना चाहते हैं और बिटिया किताबों की शौकीन है, तो ये किताब उसे को ज़रूर दें. हालांकि ये एक ऐसी किताब है जिसे गिफ्ट करने के लिए कोई एक ख़ास दिन नहीं बना, बल्कि पिता द्वारा बेटी को ये किताब कभी भी दी जा सकती है. किताब में शामिल की गई चिट्ठियां विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन इसका हिंदी और अंग्रेज़ी संस्करण सबसे ज्यादा बिका और ऐसे तमाम बच्चे हैं जो इसे पढ़ कर बड़े हुए. ये किताब बच्चों में चीज़ों को जानने और समझने की अभिरुचि पैदा करती है, जैसा कि मूल चिट्ठियों को पढ़ कर नन्हीं इंदिरा के साथ हुआ.

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