Kabirdas Jayanti: ‘कबीर ग्रंथावली’ के परिमार्जित पाठ का लोकार्पण, पुरुषोत्तम अग्रवाल ने किया संपादन

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कबीर जयंती के अवसर पर ‘कबीर ग्रंथावली’ के परिमार्जित पाठ का लोकार्पण हुआ. लगभग एक सदी पूर्व श्यामसुंदर दास द्वारा संपादित की गई ‘कबीर ग्रंथावली’ का परिमार्जन पाठ प्रतिष्ठित आलोचक और भक्ति-साहित्य के विशेषज्ञ प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने किया है. ‘कबीर ग्रंथावली’ का यह परिमार्जित और संशोधित रूप राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है.

कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा कि यह कबीर सजगता का समय है. उन्होंने कहा कि ग्रंथावली का परिमार्जित संस्करण एक ऐतिहासिक कबीर ग्रंथ है. अब हमें कबीर का अबतक का सबसे प्रामाणिक पाठ उपलब्ध हो गया है. एक लंबी शोधपरक और बेहद रोचक भूमिका में पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कबीर के 600 वर्षों की यात्रा की अद्भुत कथा कही है.

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में एशियाई अध्ययन विभाग के प्राध्यापक दलपत सिंह राजपुरोहित और सुधा रंजनी से बातचीत के दौरान प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा, “पिछले 45 वर्षों से मेरा कबीर से रिश्ता रहा है. कबीर का व्यवस्थित अध्ययन शुरू करते ही मुझे भी ‘कबीर ग्रंथावली’ के पाठ की समस्याओं से जूझना पड़ा था. खीझ होती रही कि इस पाठ का संशोधन या परिमार्जन करने की ओर किसी अध्येता ने ध्यान क्यों नहीं दिया. लेकिन, सहज बोध के सहारे किसी तरह प्रकाशित-अप्रकाशित पांडुलिपियों से तुलना करके काम चलता रहा. पिछले कुछ बरसों में यह मेरी व्यक्तिगत समस्या तो नहीं रही, लेकिन हर पाठक के लिए पांडुलिपियों से मिलान करना सम्भव नहीं है. सो, खीझ तो बनी ही रही. इसे सुनते हुए मेरी संगिनी सुमन केशरी ने दो-एक बार अपने स्वभाव के अनुसार दो टूक कह भी दिया, “खुद क्यों नहीं करते यह काम?” कोई तीन बरस पहले, इसी खीझ को सुनते हुए राजकमल प्रकाशन के अशोक महेश्वरी ने भी यही बात कही. इस तरह आखिरकार, सारी व्यस्तताओं के बावजूद मैंने इस काम को शुरू कर दिया. अब नतीजा पाठकों के सामने है.”

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दलपत सिंह राजपुरोहित ने कबीर ग्रंथावली की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह ग्रंथावली कबीर की प्राचीनतम पांडुलिपियों पर आधारित संकलन है, जिसे 16वीं-17वीं सदियों की पांडुलिपियों से मिलान करके परिमार्जित किया गया है. इस महत्वपूर्ण ग्रंथावली का परिमार्जन करके प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने हिंदी में अपनी तरह का पहला और अनोखा काम किया है. परिमार्जित ग्रंथावली की विस्तृत भूमिका में कबीर के गुरु रामानंद से जुड़े नए तथ्यों को सामने लाया गया है. इसके परिमार्जन के लिए कबीर के गुरु, उनके जीवन और मृत्यु से सम्बन्धित वैष्णवेत्तर फ़ारसी ग्रन्थों का प्रभावशाली अध्ययन किया गया है.

उन्होंने कहा कि यह ग्रंथावली भक्ति के लोकवृत्त निर्माण में व्यापार की भूमिका और यूरोप-केंद्रित आधुनिकता के संपर्क में आने से पहले भक्ति आन्दोलन के समय की देशज आधुनिकता को जानने-समझने के लिए बेहद उपयोगी ग्रन्थ है.

प्रसिद्ध गायिका शुभा मुद्गल ने कहा कि पुरुषोत्तम अग्रवाल के व्याख्यान, लेख, पुस्तक आदि किसी खजाने से कम नहीं हैं. इसी खजाने में ‘कबीर ग्रंथावली’ का नवीन व परिमार्जित संस्करण जोड़ कर पुरुषोत्तम अग्रवाल हम जैसे विद्यार्थियों को उदारतापूर्वक अवसर दे रहे हैं कि लो, कबीर के शब्दों को ठीक से पढ़ो और सुरों में ढालो.

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उन्होंने कहा कि कबीर गायन में बहुत समय से उनकी रुचि रही है और गायन व साहित्य, दोनों ही के अध्ययन में इस ग्रंथावली से उन्हें अपूर्व लाभ मिलेगा.

गौरतलब है कि श्यामसुंदर दास द्वारा सम्पादित ‘कबीर ग्रंथावली’ पहली बार सन 1928 में प्रकाशित हुई थी. यह संकलन श्यामसुंदर दास ने कबीर की रचनाओं की सदियों पुरानी हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर तैयार किया था. कबीर पंथियों में जो स्थान ‘बीजक’ का है, अकादमिक हलक़ों में वही स्थान श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित ‘कबीर ग्रंथावली’ का है. त‍माम विवादों और असहमतियों के बावजूद आज भी कबीर की रचनाओं के प्रामाणिक पाठ के लिए अध्येता ‘कबीर ग्रंथावली’ का ही सहारा लेते हैं. प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने इस ग्रंथावली को संशोधित और परिमार्जित करके इसे और प्रामाणिक और उपयोगी बना दिया है.

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