Explainer : क्या है पॉक्सो एक्ट, तुरंत होती है गिरफ्तारी तो ब्रजभूषण मामले में विलंब क्यों

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हाइलाइट्स

ये कानून भारत सरकार द्वारा 2012 में बनाया गया और उसके बाद उसमें बदलाव करके इसे कड़ा भी किया गया
पॉस्को एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान लेकिन कई बार कानून को तोड़ने मरोड़ने से ऐसा नहीं हो पाता
पॉस्को एक्ट में पीड़ित अल्प वयस्क है तो कई बार प्रमाणों का अभाव और मेडिकल रिपोर्ट खिलाफ भी जाते हैं

पॉक्सो एक्ट आजकल चर्चा में है. भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह पर ये एक्ट लगाया गया है. इसके अलावा महिला पहलवानों ने उनके ऊपर यौन शोषण औऱ यौन दुर्व्यवहार से संबंधित एफआईआर भी लिखाई है. जानते हैं क्या होता है पॉक्सो कानून. ये कितना गंभीर है. जब पुलिस किसी भी इस एक्ट को लगाती है तो क्या करती है.

देश में बच्चों और नाबालिगों के यौन-शोषण के बढ़ते मामलों के मद्देनजर सरकार द्वारा पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) लागू किया गया था, जिससे बाल यौन-शोषण की घटनाओ पर अंकुश लगाया जा सके. ये एक्ट या अधिनियम महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2012 में बनाकर लागू किया गया था.

सवाल – क्या है ये एक्ट और क्यों बनाया गया है?
– ये भारत सरकार द्वारा बनाया गया कानून है, जिसमें बच्चों और नाबालिगों के साथ यौन-शोषण पर प्रभावी अंकुश लगाने एवं बच्चों को यौन-शोषण, यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफी के खिलाफ असरदार तरीके से बचाव करने के प्रावधान किए गए हैं. इसमें बाल यौन-शोषण के वर्गीकरण के साथ आरोपितों को सजा के कड़े प्रावधानों की व्यवस्था है.
पॉक्सो एक्ट का फुल फॉर्म है – Protection of Children Against Sexual Offence (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस). जिसे यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों की सुरक्षा संबंधी कानून के तौर पर भी जाना जाता है.

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महिला पहलवानों समेत कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान लंबे समय से धरने पर थे लेकिन सांसद ब्रजभूषण सिंह के मामले में अब तक कुछ उल्लेखनीय नहीं हुआ है. (फाइल फोटो PTI और ANI)

सवाल – पॉक्सो एक्ट बच्चों और नाबालिगों के प्रति किन अनुचित बातों को यौन अपराध मानता है?
– POCSO Act में बच्चो के साथ यौन अपराधों में उनका यौन-शोषण, यौन उत्पीड़न एवं पोर्नोग्राफी को शामिल किया गया है. इस कानून के तहत बच्चों और नाबालिगों के साथ अश्लील हरकत करना, उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूना या अपने प्राइवेट पार्ट को टच करवाना, बच्चों को अश्लील फिल्म या पोर्नोग्राफिक कंटेंट दिखाना आता है. अगर किसी पर ये आरोप हों तो उस पर पॉक्सो एक्ट लागू होता है.

बच्चों के शरीर को गलत इरादे से छूना या बच्चों के साथ गलत भावना से की गयी सभी हरकतें इस एक्ट में रेप की श्रेणी में रखी गई हैं. इन सभी को अपराधों में कड़ी सजा का प्रावधान भी है.

सवाल – क्यों ये कानून बहुत जरूरी है और इसे असरदार तरीके से लागू होना चाहिए?
– बच्चे भगवान का रूप माने जाते है. वयस्क होने तक उनका बाल मन शारीरिक एवं मानसिक रूप से अपरिपक्व होता है. कई बार वो अपने साथ होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं को बेहतर तरीके से जाहिर नहीं कर पाते. खेल जगत में भी आमतौर पर हर उम्र के बच्चे हिस्सा लेते हैं. उनकी अलग अलग कैटेगरी होती है. खेलों में लंबे समय से ये शिकायतें रही हैं कि कोच से लेकर पदाधिकारी तक उनका यौन शोषण करते हैं. इस तरह बहुत सी शिकायतें अतीत में हुई भी हैं. इसे रोकने के लिए कानून का अच्छी तरह लागू होना जरूरी है.

क्योंकि मासूम बच्चों और नाबालिगों पर इन बातों का असर बहुत गहरे तक पड़ता है, जो उनकी जिंदगी को आगे तक प्रभावित करता है. कई बार वो इससे इतने सदमे में आ जाते हैं या मनोविज्ञान के स्तर पर घाव फील करने लगते हैं कि जीवन भर इससे बाहर नहीं आ पाते. लिहाजा बच्चों और नाबालिगों के साथ ऐसे अपराध करने वालों को ना केवल कड़ी सजा जरूरी है बल्कि इस तरह की प्रवृत्तियों पर अंकुश भी.

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जो पॉक्सो एक्ट भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लगा है, वो बहुत गंभीर है. उसमें तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान हैं.

सवाल – पॉक्सो एक्ट के दायरे और प्रावधान क्या हैं और इसमें क्या सजा होती है?
– पॉक्सो एक्ट 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के प्रति यौन-अपराधों के प्रति बच्चों को संरक्षण प्रदान करता है.
– 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के प्रति सभी यौन-अपराध पॉक्सो अधिनियम के तहत हैंडल किए जाते हैं. पोक्सो एक्ट के तहत बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों को मुख्यत दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है.
– 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चो के प्रति यौन अपराध – 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चो के प्रति रेप का आरोप सिद्ध होने पर पोक्सो एक्ट के तहत आजीवन कारावास एवं मृत्युदंड का प्रावधान है.
– 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के प्रति यौन अपराध – 16 वर्ष तक के नाबालिक बच्चो के प्रति यौन आरोप सिद्ध होने पर न्यूनतम 10 वर्ष एवं अधिकतम 20 वर्ष की कड़ी कैद का प्रावधान है.

सवाल – क्या पॉक्सो अधिनियम केवल लड़कियों पर ही लागू होता है?
– नए बदलावों के जरिए इस और कड़ा बनाया गया है. अब केवल नाबालिग लड़कियां ही नहीं बल्कि नाबालिग लड़के (Minor Boy) भी इसके दायरे में लाए गए हैं. पहले नाबालिग लड़कों के प्रति होने वाले यौन-अपराधों के लिए प्रभावी कानून नहीं था.

सवाल – बृजभूषण सिंह के खिलाफ जो केस दर्ज हुए हैं, उसमें गिरफ्तारी के क्या नियम हैं?
– चूंकि ये कानून बहुत गंभीर है. इसमें एक्ट के तहत एफआईआऱ दर्ज होते ही गिरफ्तारी हो जाती है. पुलिस तुरंत आरोपी को गिरफ्तार करती है और इशके बाद जांच को आगे बढ़ाती है. जमानत नहीं मिलती.

हालांकि पुलिस का कहना है कि कई बार पुलिस गिरफ्तारी से पहले आरोपों की सत्यता की जांच कर सकती है. हां अगर प्राथमिक जांच में पुलिस को आरोप सही लगता है तो आरोपी को गिरफ्तार होने से कोई नहीं रोक सकता.

सवाल – इस एक्ट में जिस तरह के प्रावधान हैं उसके तहत क्या कहा जाना चाहिए कि ब्रजभूषण के मामले में उसका पालन नहीं हुआ?
– ये कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में अरनेश कुमार और बिहार सरकार के मामले में जो गाइडलाइन बनाई थीं, उसमें बृजभूषण शरण सिंह को तुरंत गिरफ्तार होना चाहिए था, प्रावधान का पालन नहीं हुआ. पहले तो पुलिस मामले की एफआईआर ही दर्ज नहीं कर रही थी जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो दिल्ली पुलिस ने FIR दर्ज की. भारतीय दंड संहित की धारा-41 और 42 के तहत पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है.

सवाल – जब तुरंत गिरफ्तारी के नियम हैं फिर बृजभूषण सिंह को 30 दिनों से भी अधिक समय बाद गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया?
– पुलिस के सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह को गिरफ्तार नहीं करने की वजह भी सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है. जब देश की शीर्ष कोर्ट में सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो का मामला आया, तब सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि संज्ञेय अपराध में भी गिरफ्तारी तब तक अनिवार्य नहीं जब तक केस के जांच अधिकारी को ऐसा नहीं लगता हो. ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी को बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी जरूरी नहीं लग रही.

सवाल – क्या ऐसा करके पुलिस खुद कानून में अपने अधिकारों का सही पालन नहीं कर रही?
वैसे ये सही है कि ऐसे ही अन्य मामलों में आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार किया गया. दरअसल हमारे देश में कानून को तोड़ने मरोड़ने का जो चलन है,उससे कई कानूनों में खुद पुलिस आरोपियों के साथ खड़ी दिखती है और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करती है. इस बात पर अक्सर कई मामलों में कानून विशेषज्ञों ने भी चिंता जाहिर की है.
– अगर अपराध संगीन है तो तुरंत गिरफ्तारी होनी चाहिए
– आरोपी असरदार है तो उससे सबूतों और गवाहों को खतरा रहता है

सवाल – बृजभूषण का क्या कोई आपराधिक इतिहास है?
– 06 बार के सांसद ब्रजभूषण के खिलाफ 30 से ज्यादा केस दर्ज हैं. इनमें मर्डर, आर्म्स एक्ट जैसे अपराध शामिल हैं. इस आधार पर तो गिरफ्तारी होनी चाहिए.

सवाल – क्या किसी सांसद को गिरफ्तारी के मामले संवैधानिक कवच भी मिलता है?
– संसद सत्र के दौरान यदि किसी सांसद की गिरफ्तारी होती है तो स्पीकर को सूचित करने का नियम और प्रोटोकॉल है, लेकिन भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और सांसद होने के नाते बृजभूषण शरण को विशेष कानूनी कवच नहीं मिला है.

सवाल – क्या सेक्शुअल हैरेसमेंट और पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तारी के प्रावधान अलग हैं?
– हां, हालांकि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रजभूषण सिंह पर दोनों ही मामलों में कई एफआईआर दर्ज हैं. सेक्शुअल हैरेसमेंट के केस में भारतीय दंड संहिता के तहत 90 दिनों के अंदर जांच पूरी होनी चाहिए. गिरफ्तारी के लिए कोई तय समय नहीं होती. हालांकि पॉक्सो में अरेस्ट का ही नियम है और जमानत का कोई प्रावधान नहीं.

सवाल – इसमें आयु का मसला कई बार ऐसा क्यों होता है कि नाबालिग को वयस्क साबित कर दिया जाता है?
– जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 2013) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रदत्त वैधानिक प्रावधान को अपराध के शिकार हुए किसी बच्चे के लिये उसकी आयु निर्धारित करने में भी सहयोगी आधार होना चाहिए. कानून में किसी भी बदलाव या तय निर्देशों के अभाव में जांच अधिकारी अब भी स्कूल एडमिशन या टीसी में दर्ज जन्मतिथि पर ही भरोसा बनाए हुए हैं.
अधिकांश मामलों में माता-पिता (अस्पताल के या किसी अन्य प्रामाणिक रिकॉर्ड के अभाव में) न्यायालय में आयु का बचाव करने में सक्षम नहीं हो पाते. चिकित्सकीय मत के आधार पर आयु का अनुमान आम तौर पर इतना व्यापक होता है कि अधिकांश मामलों में अल्प-वयस्कों को वयस्क साबित कर दिया जाता है.

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