EXPLAINED : कर्नाटक में गोहत्या विरोधी कानून को लेकर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा, जानिए क्यों छिड़ा विवाद

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नई दिल्ली: कर्नाटक में पशुपालन मंत्री के गोहत्या कानून को वापस लेने वाले सुझाव ने राज्य के सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है. इस बयान से नाराज विपक्षी दल भाजपा पूरे राज्य में इसे लेकर विरोध करने की योजना बना रही है. पिछली भाजपा सरकार में गोहत्या विरोध को प्राथमिकता के तौर पर लिया था, क्योंकि यह उनकी विचारधारा के अनुरूप था. अब कांग्रेस मंत्री के इसे वापस लिए जाने की घोषणा ने भाजपा को नाराज कर दिया है. इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था.

भाजपा के राज्य महासचिव और एमएलसी एन. रविकुमार ने ‘द हिंदू’ से बातचीत में कहा कि हम कांग्रेस सरकार को गोहत्या विरोधी कानून वापस लेने की अनुमति नहीं देंगे. हम इस तरह के कदम के खिलाफ बेंगलुरु में और राज्य भर में विरोध प्रदर्शन करेंगे. उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार ने अपनी योजना नहीं बदली तो हम अपना आंदोलन तेज करेंगे.’

तमाम तरह के विवादों के बीच, आइए जानते हैं राज्य में गोहत्या विरोधी कानून और उसके विभिन्न पहलुओं के बारे में…

कर्नाटक में गोहत्या विरोधी कानून
कर्नाटक पशु संरक्षण और वध रोकथाम अधिनियम, 2020, फरवरी 2021 में कर्नाटक में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने पारित किया था, जिसके तहत बैल, सांड, भैंस और बछड़ों को शामिल करने के लिए गोहत्या पर मौजूदा प्रतिबंध को बढ़ा दिया गया था. वैसे इस तरह का कानून पारित करने वाला कर्नाटक पहला राज्य नहीं है. इससे पहले भी, संविधान के अनुच्छेद 48 के मुताबिक, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में गोहत्या प्रतिबंधित है.

केवल अरुणाचल प्रदेश, केरल, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और लक्षद्वीप ही ऐसे राज्य हैं जहां पर गोहत्या को लेकर कोई कानून नहीं है. इनके अलावा भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गोहत्या के संबंध में कानून हैं. इंडिया स्पेंड की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि कई राज्यों में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून लगभग 50 साल पुराने हैं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान बनाए गए थे.

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भाजपा नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने पहले 2010 और 2012 में दो विधेयक पारित किए थे जिसका मकसद 1964 के अधिनियम में संशोधन करना था. हालांकि राज्य सरकार में बदलाव के बाद 2014 में यह विधेयक वापस ले लिए थे. वर्तमान कानून 2021 में पारित किया गया, जिसमें पाबंदी को और व्यापक किया गया और कर्नाटक में 1964 अधिनियम के विपरीत गाय, बछड़े, बैल, सांड और भैंस जिनकी उम्र 13 से कम है उनके वध पर प्रतिबंध लगाया.

कांग्रेस ने क्यों की कानून वापस लेने की बात 
कर्नाटक के पशुपालन और पशु चिकित्सा विज्ञान मंत्री के वेंकटेश ने वृद्ध मवेशियों के प्रबंधन और मृत पशुओं के निपटान में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला. भैंसों और बैलों बनाम गायों के वध के बीच के अंतर पर उन्होंने सवाल उठाया कि यदि पहले इसकी अनुमति थी तो अब अलग व्यवहार क्यों किया जाना चाहिए. मंत्री ने जोर देते हुए कहा कि इस बिल के संशोधन से राज्य में किसानों को लाभ मिलेगा. कानून में जो बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं उनका मकसद किसानों का बूढ़े होते पशुओं की देखरेख और उनके शवों से निपटने में होनो वाली मुश्किलों का समाधान करना है. हालांकि भाजपा ने इसका पुरजोर विरोध किया है.

बाद में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि कैबिनेट में कानून पर चर्चा की जाएगी. उनके मुताबिक, राज्य में पहले से ही गोवध रोकथाम और पशु संरक्षण अधिनियम 1964 मौजूद है. लेकिन इसमें स्पष्टता की कमी थी, जिसमें संशोधन लाया गया था. हालांकि कांग्रेस ने वापस 1964 के कानून को ही रहने दिया, जिसे इन्होंने (भाजपा) ने फिर से संशोधित किया. हम इस बारे में केबिनेट में चर्चा करेंगे, अभी हम किसी फैसले पर नहीं पहुंचे हैं.

भाजपा क्यों कर रही विरोध 
भारतीय जनता पार्टी ने पशुपालन मंत्री के वेंकटेश के बयान, ‘अगर भैंसों को काटा जा सकता है तो गायों को क्यों नहीं ’ के खिलाफ भारी विरोध जताया. वेंकटेश ने मैसूरू में कर्नाटक गोवध निवारण और मवेशी संरक्षण अधिनियम, जिसे गोहत्या विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है, का हवाला देते हुए कहा था कि सरकार कानून पर फिर से विचार करेगी. उनका तर्क था कि भाजपा सरकार ने भैंसों के वध वाले कानून को लागू करने की अनुमति दी थी. किसानों को बूढ़ी होती गायों की देखरेख में आ रही मुश्किलों के सवाल के जवाब में उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा था कि उन्हें अपनी मृत गाय को दफनाने के लिए अर्थमूवर को मंगवाना पड़ा था.

इसके बाद राज्य के भिन्न क्षेत्रों जैसे बेंगलुरु, चिक्काबल्लापुरा, मैसूरू, दावनगेरे और कुछ अन्य जगहों पर विरोध हुए. मैसूरू भाजपा कार्यकर्ताओं ने गोवध विरोधी कानून पर फिर से विचार करने के कांग्रेस सरकार के फैसले के खिलाफ नारेबाजी की.

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वेंकटेश की टिप्पणी के जवाब में, पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक वी सुनील कुमार ने कहा कि कांग्रेस को देश और गाय दोनों से ही प्यार नहीं है. द हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुमार ने अपने विधानसभा क्षेत्र कारकला में कहा कि, लोग जिस लोकाचार का पालन करते हैं, कांग्रेस उनसे नफरत करती है, गोवध निवारण अधिनियम को रद्द करना इसी का एक ताजा उदाहरण है. उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने गोहत्या रोकने के लिए कानून बनाने से पहले बार बार लोगों से विचार-विमर्श किया था. उस दौरान भी जब भाजपा ने इसे पारित किया तब भी कांग्रेस ने आपत्ति जताई थी. कांग्रेस नेता और मंत्री बार-बार कह रहे हैं कि सरकार अधिनियम को वापस लेगी और पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करेगी. ये साफ करता है कि कांग्रेस सरकार का क्या मकसद है.’

भाजपा के पूर्व मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और अन्य कांग्रेस मंत्रियों से लोगों की भावनाओं के साथ सहानुभूति रखने का आग्रह करते हुए कहा, ‘लोगों ने आपको वोट दिया है और आप मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए हैं. लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि आपके पास ताकत आ गई है और जो आपकी मर्जी में आएगा आप वो करेंगे. अगर आप गोहत्या निषेध कानून में संशोधन और बदलाव लाते हैं, तो भाजपा के सदस्य इसका कड़ा विरोध करेंगे और किसी भी कदम के खिलाफ लड़ेंगे.’

Tags: BJP, Congress, Cow Slaughter, Karnataka

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