[ad_1]
Hemodialysis: क्या आपको पता है कि पेरिटोनियल-डायलिसिस और हेमोडायलिसिस का अंतर है और आपकी किडनी के लिए इसमें से कौन सभी सी डायलिसिस बेहतर है? शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए किडनी किस तरह काम करती है और किसी भी मरीज को डायलिसिस की जरूरत कब पड़ती है? इन तमाम सवालों का जवाब देने के लिए आज हमारे साथ हैं इंदौर स्थित कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल की नेफ्रोलॉजी एण्ड ट्रांसप्लांट फिजीशियन डॉ. रुबीना वोहरा.
डॉ. रुबीना वोहरा बताती हैं कि खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की बढ़ती मात्रा इस बात का इशारा है कि आपकी किडनी की बीमारी हो चली है. किडनी को सही समय पर सही इलाज नहीं मिला, तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब आपके शरीर में तरल पदार्थों का संतुलन बिगड़ जाएगा और शरीर में मौजूद अपशिष्ट पदार्थों का निवारण भी नहीं हो सकेगा. ऐसी स्थिति में, खुद को स्वस्थ्य रखने के लिए आपको किडनी डायलिसिस की जरूरत भी पड़ सकती है.
आपके शहर से (इंदौर)
यह है किडनी का काम
डॉ. रुबीना वोहरा के अनुसार, किडनी का काम शरीर में मौजूद तरल पदार्थ को संतुलित करते हुए अपशिष्ट पदार्थों को पेशाब के रास्ते बाहर निकालने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सोडियम, कैल्शियम, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे मिनिरल्स के साथ-साथ खून में पानी और नमक की मात्रा को संतुलित करने का काम भी करती है. मिनिरल्स, नमक और पानी का यही संतुलन हमारे शरीर की नसों, मांशपेशियां और टिश्यूज को सामान्य रूप से काम करने में मदद करता है.
इसके अलावा, आपकी किडनी खून में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को नियंत्रित करती है. किडनी हड्डियों को स्वस्थ्य रखने के लिए विमामिन और ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाए रखने के लिए हार्मोन भी बनाती है. एक साथ इतने काम करने वाली किडनी बीमारी की चपेट में आने के बाद धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती है, जिसका पता क्रिएटिनिन और यूरिया जैसे पदार्थों की बढ़ोत्तरी के साथ चलता है. ऐसी स्थिति में स्वस्थ्य रहने के लिए मरीज के बाद डायलिसिस का विकल्प ही बचता है.
कैसे काम करती है किडनी
हमारी किडनी में करीब एक लाख से अधिक नेफ्रॉन नाम की फिल्टरिंग यूनिट होती हैं. प्रत्येक नेफ्रॉन में एक ट्यूबल्स (नलिका) और एक फिल्टर होता है. फिल्टर को ग्लोमेरुलस कहा जाता है. ग्लोमेरुलस खून को फ़िल्टर करता है. ट्यूबल्स खून से आवश्यक मिनिरल्स, पोषक तत्वों और अपशिष्टों को अगल करती हैं. ट्यूबल्स में मौजूद नसों के जरिए मिनिरल्स और पोषक तत्व शरीर में वापस चले जाते हैं. वहीं, एसिड, अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त तरल पदार्थ पेशाब बनकर शरीर से बाहर निकल जाता है.
बीमारी की चपेट में आने के बाद किडनी के नेफ्रॉन में मौजूद ग्लोमेरुलस और ट्यूबल्स अपना काम धीरे-धीरे बंद करना शुरू कर देते हैं. जिसके फलस्वरूप मरीज का पेशाब कम बनता है. उसके चेहरे, टखनों और पैरों में सूजन आना शुरू हो जाती है. सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और उसे उबकाई आना शुरू हो जाती है. इसके अलावा, किडनी की बीमारी के बाद मरीजों को बहुत अधिक थकान भी महसूस होने लगती है. जब शरीर का जीएफआर (ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट) 15 एमएल से कम हो जाता है, तब ग्लोमेरुलस और ट्यूबल्स का काम डायलिसिस के जरिए पूरा किया जाता है.
क्या है हेमोडायलिसिस
डॉ. रुबीना वोहरा बताती है कि सामान्य डायलिसिस में सिर्फ डिफ्यूजन का प्रॉसेस पूरा किया जाता है, जिसके जरिए खून में मौजूद अपशिष्टों को अलग कर दिया जाता है. सामान्य डायलिसिस में सिर्फ डिफ्यूजन से जिंदगी अलग होती है. हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया में खून में अधिक अल्ट्राप्योर वॉटर डाला जाता है और उसे अधिक प्रेशर के साथ फिल्टर से निकाला जाता है. हेमोडालिसिस में फिल्टर भी अलग होते हैं, जिन्हें हम हाई फल्क्स फिल्टर कहते हैं.
हेमोडायलिसिस का फायदा यह भी है कि इसमें छोटे मॉलिक्यूल का क्लीयरेंस ज्यादा होता है, जिसे कन्वेक्टिव क्लीयरेंस भी कहा जाता है. हेमोडालिसिस के जरिए छोटे और बड़े सभी तरह के अपशिष्टों को खून से अलग किया जा सकता है. इसके साथ ही, ऐसे मरीज जिसकी पांच-छह साल से डायलिसिस चल रही होती है, उनकी न केवल कॉम्लीकेशन कम होती है, बल्कि उनका ब्लडप्रेशर पर कंट्रोल को बेहतर करते हुए हड्डियों की बीमारी से बचा जा सकता है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Indore news, Kidney disease, Kidney transplant, Sehat ki baat
FIRST PUBLISHED : March 11, 2023, 04:28 IST
[ad_2]
Source link