Climate Change: क्‍या है मेघालय की जलवायु परिवर्तन से निपटने की पहल, जो पूरे देश को दिखा सकती है राह

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Climate Change: भारत के कई राज्‍यों में अब जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखना शुरू हो गया है. यूपी, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और पंजाब में बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि जलवायु परिवर्तन का ही असर हैं. इससे आम जनजीवन पर असर पड़ने के साथ ही किसानों को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा है. वहीं, पूर्वोत्‍तर के सभी राज्‍यों में बाकी देश के मुकाबले जलवायु परिवर्तन का बुरा असर कुछ ज्‍यादा ही नजर आ रहा है. पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में आने वाली भयंकर बाढ़, भूस्‍खलन इसी का नतीजा हैं.

पूर्वोत्‍तर के इलाकों में बेमौसम बारिश के कारण असम में चाय की गुणवत्‍ता और पैदावार दोनों पर बुरा असर पड़ा है. यही नहीं, कुछ इलाकों में पीने के साफ पानी का संकट भी बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा जैव विविधता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध पूर्वोत्‍तर भारत में कई दुर्लभ वनपस्तियां खत्‍म होती जा रही हैं. अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया तो इनका अस्तित्‍व पूरी तरह खत्‍म हो जाएगा. इसी से निपटने के लिए मेघालय समेत कुछ राज्‍यों ने जलवायु परिवर्तन के दुष्‍प्रभावों से निपटने के लिए पहल की है. उम्‍मीद की जा रही है कि इन राज्‍यों की पहल बाकी देश को भी जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने की राह दिखा सकती हैं.

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बजट का 15% इसी मद में आवंटित
मेघालय की सीएम कोनराड संगमा सरकार जलवायु परिवर्तन के बुरे असर से निपटने के लिए काफी गंभीर नजर आ रही है. दरअसल, संगमा सरकार ने राज्‍य के कुल बजट का 15 फीसदी हिस्‍सा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवंटित किया है. संगमा सरकार ने वित्‍त वर्ष 2023-24 के बजट में 3,412 करोड़ रुपये का प्रावधान जलवायु परिवर्तन से जुड़ी परियोजनाओं के लिए ही किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि पहली बार मेघालय की सरकार ने क्‍लाइमेट एक्‍शन बजट पेश किया है, जो इस दिशा में राज्‍य सरकार की गंभीरता को दिखाता है. मेघालय से पहले मणिपुर की सरकार ने जलवायु परिवर्तन के दुष्‍प्रभावों से निपटने के लिए स्‍टेट एक्‍शन प्‍लान पेश किया था.

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बेमौसम भारी बारिश के कारण पूर्वोत्‍तर के राज्‍त्‍यों में हर साल बाढ़ आती है.

मेघालय सरकार का क्‍या है प्‍लान?
मेघालय की पारिस्थितिकी काफी नाजुक है. अगर इस पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल असर पड़ता है तो राज्‍य के लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा. ऐसे में मेघालय सरकार पर्यावरणीय स्थिरता, वन प्रबंधन और जल संचयन से जुड़ी परियोजनाओं पर जोर दे रही है. मेघालय में इनसे जुड़ी 2,500 करोड़ रुपये की परियोजनाओं पर काम जारी है. वहीं, जल संचयन के लिए साल 2023-24 में राज्य की 300 जगहों पर 2.5 करोड़ की लागत से इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर तैयार किया जाएगा. संगमा सरकार राज्‍य का वन क्षेत्र बढ़ाने पर भी ध्यान दे रही है. बजट 2023-24 में कहा गया है कि पिछले पांच साल में 10,000 हेक्टेयर नए वन क्षेत्र के लिए 88 लाख पौधे लगाए गए हैं.

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क्‍या है ग्रीन मेघालय परियोजना?
ग्रीन मेघालय परियोजना के तहत वन संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नकदी समेत कई सुविधाएं दी जा रही हैं. चालू वित्त वर्ष के दौरान 16,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र के लिए 13 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया गया है. सरकार परियोजना के तहत 5 साल में 50,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र संरक्षित करना चाहती है. इस पर 250 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. आईआईटी गुवाहाटी के एक अध्ययन में इलाके के तीन राज्यों को जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील बताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के चाय बागान वाले इलाकों मे कुछ साल से बेमौसम भारी बरसात हो रही है. इससे चाय के पौधे पानी में डूब जाते हैं और उपजाऊ मिट्टी बह जाती है.

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असम पर क्‍यों पड़ रहा है असर?
रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण दो दशक में असम में अधिकतम तापमान में 0.049 डिग्री सेंटीग्रेड की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसी अवधि मेंऔसत बारिश 10.77 मिमी कम हुई है. इसका असर दुनिया भर में मशहूर असम चाय की पैदावार और गुणवत्ता पर नजर आने लगा है. वहीं, मणिपुर सरकार ने भी जलवायु परिवर्तन पर अपनी कार्ययोजना मणिपुर स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के दूसरे संस्करण का मसौदा तैयार कर लिया है. मसौदे में खेती, जल संसाधन, वन संसाधन और स्वास्थ्य को शामिल किया जाएगा. जगह बदल कर सीढ़ीदार खेती को जलवायु परिवर्तन का असर तेज करने के लिए जिम्‍मेदार माना जा रहा है.

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जलवायु परिवर्तन के कारण असम चाय की गुणवत्‍ता और पैदावार पर बुरा असर पड़ रहा है.

सीढ़ीदार खेती जिम्‍मेदार कैसे?
पूर्वोत्‍तर में मेघालय, असम, मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम में करीब पांच लाख लोग 5,298 वर्ग किमी में सीढ़ीदार खेती ही करते हैं. पर्यावरणविदों का कहना है सीढ़ीदार खेती के कारण ही पूर्वोत्‍तर जमीन धंसने की घटनाएं लगतार बढ़ रही हैं. डायचे वेले की रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर विश्‍वविद्यालय में मानव और पर्यावरण विज्ञान स्कूल के डीन प्रोफेसर ईबोतोम्बी सिंह कहते हैं कि सीढ़ीदार खेती को हाईवे और रेल लाइन के नजदीक इलाकों से दूसरी जगह स्‍थानांतरित करना चाहिए. मणिपुर के मौसम विज्ञानी डॉ. केडी सिंह कहते हैं कि अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग जिले में अब जाड़े के दिनों में भी आम फलने लगे हैं. वहीं, कई दुर्लभ वनस्पतियां खत्म होने के कगार पर पहुंच गई हैं.

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