सिविल सेवा रिजल्ट्स के बीच जानें कैसे 167 साल पहले हुई यूपीएससी की शुरुआत

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हाइलाइट्स

सिविल सेवा की नींव ईस्ट इंडिया कंपनी ने डाली लेकिन तब इसका सारा सेलेक्शन और कामकाज लंदन से होता था
1922 में पहली बार सिविल सर्वेंट्स के सेलेक्शन के लिए भारत में ही सिविल सर्विस कमीशन ने एग्जाम लेने शुरू किए

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सिविल सेवा 2022 परीक्षा के रिजल्ट आ गए हैं. इसमें शीर्ष 04 स्थानों पर लड़कियों ने कब्जा किया. महिलाओं के लिए इस एग्जाम के दरवाजे आजादी के बाद 1951 में खुले थे. वैसे भारत में आला अफसर बनाने वाला संघ लोकसेवा आयोग 167 साल पुराना है. अंग्रेजों के जमाने का. ये ऐसी सेवा है जिसे इसके गठन के बाद से भारत की सबसे बेहतरीन नौकरियों में शुमार किया जाता रहा है.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) देश की विश्वसनीय संस्थाओं में एक है. जिसने अब अपनी विश्वसनीयता और उत्कृष्टता बनाकर रखी हुई है. यूपीएससी की उत्पत्ति भारत में 1857 की क्रांति के पहले ही हो गई थी. 1854 में ब्रिटिश सरकार ने सिविल सेवा आयोग के तौर पर इसे गठित किया था. तब देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थी सिविल सेवा आयोग की शुरुआत
तब बड़े व्यापारिक फर्म के तौर पर भारत में आकर देश के अधिकांश हिस्सों पर राज करने लग गई ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में सिविल सर्विसेस के लिए जिन लोगों को चुनती थी, उन्हें फिर लंदन के हैलेबरी कॉलेज में प्रशिक्षित किया था.

मैकाले की रिपोर्ट के बाद एग्जाम शुरू हुआ
शुरू में भारत में सिविल सर्वेंट्स को चुनने के लिए कोई तय पैमाना नहीं था, लिहाजा जान पहचान, घराना के साथ पढाई इसका मापदंड होती थी. लेकिन जो सिविल सर्वेंट नामित होकर आते थे, उनमें बहुत सी कमियां नजर आती थीं. बाद में जब लॉर्ड मैकाले को लगा कि इस सेवा में बेहतर लोग ही चुने जाने चाहिए तो उन्होंने इस बारे में एक रिपोर्ट तैयार की.

सत्येंद्र नाथ टैगोर पहले भारतीय आईसीएस अफसर थे
लॉर्ड थॉमस मैकाले की रिपोर्ट के बाद फैसला लिया गया कि अब सिविल सेवा आयोग प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से सिविल सेवकों का चयन करेगा. इस तरह सिविल सेवा आयोग की स्थापना हुई. इसकी परीक्षाएं शुरू में केवल लंदन में ही होती थीं. एक दशक बाद 1864 में,गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर इस परीक्षा को पास करने वाले पहले भारतीय बने.

नेताजी सुभाष भी आईसीएस का एग्जाम देने लंदन गए थे
नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी 1919 में ये परीक्षा देने के लिए लंदन ही जाना पड़ा था. जहां उन्होंने इस परीक्षा की मैरिट लिस्ट में स्थान हासिल किया, चुने गए लेकिन फिर इस सेवा से अलग हटने के लिए लंदन में इस्तीफा दे दिया. पहले विश्व युद्ध के बाद 1922 से ये परीक्षा भारत में होने लगी.

भारत में ये आयोग 1919 में बना
यूपीएससी की वेबसाइट के अनुसार, “भारत में लोक सेवा आयोग की उत्पत्ति 5 मार्च, 1919 को भारतीय संवैधानिक सुधारों के बाद हुई. इसका नाम सिविल सेवा आयोग से लोक सेवा आयोग कर दिया गया. इसके लिए एक स्थायी कार्यालय बनाया गया.अधिनियम की धारा 96 (सी) भारत में लोक सेवा की स्थापना को मंजूरी दी गई. ताकि इससे ऐसे आईसीएस यानि इंडियन सिविल सर्विसेस के अफसर निकलें जो भारत को बेहतर तरीके से समझते हों.

1935 में इसका नाम बदला
हालांकि लोक सेवा आयोग के कामों भारत सरकार अधिनियम, 1919 में तय नहीं किया गया था. इसे समय के साथ जरूरत समझते हुए तय किया गया. सरकार की धारा 96 (सी) की उप-धारा (2) के तहत लोक सेवा आयोग (कार्य) नियम, 1926 के नियम कायदे और शक्तियों को उल्लेखित किया गया.
फिर भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक प्रांत या प्रांतों के समूह के लिए एक प्रांतीय लोक सेवा आयोग की परिकल्पना की. भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल 1937 को लोक सेवा आयोग संघीय लोक सेवा आयोग बन गया.

आजादी के बाद ये बना संघ लोक सेवा आयोग
जब भारत आजाद हो गया तो 26 जनवरी, 1950 को इसके द्वारा अपना संविधान अपनाए जाने के बाद संघीय लोक सेवा आयोग संविधान के अनुच्छेद 378 के खंड (1) के तहत संघ लोक सेवा आयोग बन गया.

मोटे तौर पर ये समझ सकते हैं कि संघ लोक सेवा आयोग भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार के लोकसेवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का संचालन करता है

संवैधानिक प्रावधानों के तहत 26 अक्तूबर 1950 को लोक आयोग की स्थापना हुई. इसे संवैधानिक दर्जा देने के साथ-साथ स्वायत्तता भी प्रदान की गयी, ताकि यह बिना किसी दबाव के योग्य अधिकारियों की भर्ती क़र सके.

ये क्या काम करता है और कैसे चलता है
यूपीएससी के सभी खर्चों का भुगतान भारत सरकार करती है, इसका अलग फंड बनाया गया है. संघ लोक सेवा आयोग की वेबसाइट कहती है कि इसके कामों में संघ की सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित करना; साक्षात्कार के जरिए सलेक्शन द्वारा सीधी भर्ती करना शामिल है. इसके अलावा ये संस्था पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति, अधिकारियों की नियुक्ति; सरकार के अधीन विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए भर्ती आदि के लिए भी काम करती है और सरकार को सलाह देती है.

आयोग की संरचना क्या होती है
इसमें एक अध्यक्ष व 10 सदस्य होते हैं, लेकिन संविधान में इसके सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई है, बल्कि इसके सदस्यों की संख्या के निर्धारण की शक्ति राष्ट्रपति में निहित की गई है. संघ लोक सेवा आयोग के कुल सदस्यों में से आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें भारत सरकार या राज्य सरकारों में कम से कम 10 वर्षों तक काम करने का अनुभव प्राप्त हो.

इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले आए) तक का होगा. ये कभी भी अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को दे सकते हैं.

क्या है संघ लोक सेवा आयोग का काम 
इसका प्रमुख कार्य केन्द्र तथा राज्यों की लोकसेवा के लिए सदस्यों का चयन करना है. इसके लिए यह विभिन्न परीक्षाएं संचालित करती है.

  • सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा (मई में)
  • सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा (अक्टूबर/नवम्बर में)
  • भारतीय वन सेवा परीक्षा (जुलाई में)
  • भारतीय इंजीनियरी सेवा परीक्षा (जुलाई में)
  • भू-विज्ञानी परीक्षा (दिसम्बर में)
  • स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिसेज़ परीक्षा (अगस्त में)
  • राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा (अप्रैल और सितम्बर में)
  • सम्मिलित रक्षा सेवा परीक्षा (मई और अक्टूबर में)
  • सम्मिलित चिकित्सा सेवा परीक्षा (फरवरी में)
  • भारतीय अर्थ सेवा/भारतीय सांख्यिकी सेवा परीक्षा (सितम्बर में)
  • अनुभाग अधिकारी/आशुलिपिक (ग्रेड ख/ग्रेड 1) सीमित विभागीय प्रतियोगिता परीक्षा (दिसम्बर में)

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