वो कौन लोग हैं जो इस बार राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल रहे

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देश में 16वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है. इसमें लोकसभा, राज्यसभा और देश में केंद्रशासित प्रदेशों सहित 28 राज्यों के विधायक हिस्सा ले रहे हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस चुनाव में वोट दे सकते थे लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाएंगे.

राष्ट्रपति पद का ये चुनाव एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मु और विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशंवत सिन्हा के बीच है. हालांकि अगर वोट वैल्यू के हिसाब से देखा जाए तो एनडीए प्रत्याशी मुर्मु के जीतने की काफी उम्मीद है, क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन के अलावा कई विपक्षी सियासी दल भी उन्हें अपना समर्थन दे रहे हैं.

इस चुनाव में 776 सांसदों के साथ देशभर के 4033 विधायक अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें सांसदों और विधायकों की वोट वैल्यू अलग होती है और अलग अलग राज्यों के विधायकों की वोट वैल्यू भी अलग होती है. कुल मिलाकर इलेक्टोरल कॉलेज के कुल वोटों की वैल्यू 1086431 है. इसमें जो भी प्रत्याशी 543,216 वोट हासिल कर लेगा वो जीत जाएगा.

ऐसे निकलती है सांसदों के वोट की वैल्यू

सांसदों के वोट की कीमत विधायकों की वोट वैल्यू से निकाली जाती है. सभी विधायकों के वोट की कीमत को सासंदों (लोकसभा और राज्यसभा दोनों) की संख्या से भाग दिया जाता है. भाग देने पर जो अंक आता है वह एक सांसद के वोट की कीमत होती है.देश में विधानसभा क्षेत्रों की कुल संख्या 4120 है. 2017 में इनके वोट की कीमत 5,49,495 थी. इसे सांसदों की कुल संख्या 776 (राज्यसभा के 233 और लोकसभा के 543) से भाग देने पर 708 आता है. इस तरह 2017 के चुनाव में एक सांसद के वोट की कीमत 708 थी।

2022 के चुनाव में स्थिति बदल गई. जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग होने से कुल विधायकों की संख्या घटकर 4033 रह गई है. इसके साथ ही इनके वोट की वैल्यू भी घटकर 5,43,231 रह गई है. अब 5,43,231 को सांसदों की संख्या 776 से भाग दें तो 700 आता है. इस प्रकार इस बार के चुनाव में एक सांसद के वोट की कीमत 700 है.

जम्मू – कश्मीर के विधायक नहीं दे सकेंगे वोट

2019 से पहले, जम्मू और कश्मीर राज्य में एक द्विसदनीय विधायिका थी जो विधान सभा (निचला सदन) और विधान परिषद (उच्च सदन) से मिलकर बनी थी. जम्मू और कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष (अब 5 वर्ष) का होता था. अगस्त 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 ने इसे एकसदनी विधायिका में बदल दिया गया.साथ ही इसे एक केन्द्र-शासित प्रदेश बना दिया गया.

21 नवंबर 2018 को राज्यपाल द्वारा जम्मू और कश्मीर की विधानसभा भंग कर दी गई. यहां अभी तक चुनाव नहीं हुआ है, लिहाजा यहां के 90 विधायकों की सीट खाली ही है. वो इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले पाएंगे.

राज्यसभा में 04 सीटें खालीं

राज्यसभा हालांकि 245 सदस्यीय होती है लेकिन उसमें केवल 233 सदस्य ही निर्वाचित होकर इसमें पहुंचते हैं. 12 सीटें राष्ट्रपति के मनोनयन से भरी जाती है. फिलहाल राज्यसभा में 04 सीटें खाली हैं, इस खाली सीट पर अगर कोई चुन लिया जाता तो जरूर वोट देता है लेकिन ऐसा नहीं हो सका. वहीं राज्यसभा के 12 मनोनीत सदस्य भी इसमें शिरकत नहीं कर सकते. अलबत्ता वो उप राष्ट्रपति के चुनाव में जरूर हिस्सा ले सकते हैं.

विधानसभा में भी 07 सीटें अभी खालीं

राज्य विधानसभाओं में अगर जम्मू – कश्मीर को छोड़ दें तो कई राज्यों में विधानसभा की कुल मिलाकर 07 सीटें खाली हैं. इसमें सबसे ज्यादा 04 सीटें तो गुजरात से ही हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल से एक एक सीटें खाली हैं. इन खाली सीटों पर अगर विधायक चुनकर आ जाते तो वो जरूर वोट देते लेकिन चुनाव नहीं होने से यहां भी जनप्रतिनिधि वोट डालने के अधिकारी नहीं रह गए.

पांडिचेरी के ये 03 सदस्य भी नहीं डाल सकते वोट

पांडिचेरी में विधानसभा में तीन सीटों पर राज्यपाल सदस्यों को मनोनीत करते हैं. वो भी इन चुनावों में हिस्सा नहीं ले सकते हैं.

राज्य की विधान परिषद के सदस्य भी

देश के कई राज्यों में विधानपरिषद हैं. ऐसे राज्यों की संख्या 06 है, जिसमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आते हैं. लेकिन इन विधान परिषद के सदस्यों को भी राष्ट्रपति चुनाव में शिरकत करने की अनुमति नहीं होती.

Tags: President of India, Rashtrapati bhawan, Rashtrapati Chunav

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