भारत ही बनेगा शांतिदूत! विदेश मंत्री जयशंकर बोले- …तो हम रूस-यूक्रेन जंग में मध्यस्थता करने को तैयार

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नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संकेत दिया है कि अगर भारत से संपर्क किया जाता है तो वह रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने पर विचार करने के लिए तैयार है, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि नई दिल्ली का यह मानना नहीं है कि उसे इस मामले पर स्वयं कोई भी पहल करनी चाहिए. जयशंकर ने जर्मन आर्थिक समाचार पत्र ‘हैंडेल्सब्लैट’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि पश्चिम एशिया में भारत के ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं ने यूक्रेन युद्ध के बाद अधिक कीमत देने वाले यूरोप को पेट्रोलियम उत्पाद उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दी और नयी दिल्ली के पास रूसी कच्चे तेल की खरीद के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.

उन्होंने कहा कि जिस तरह भारत, यूरोप से यह उम्मीद नहीं करता कि वह चीन के बारे में नयी दिल्ली जैसा दृष्टिकोण रखेगा, उसी तरह यूरोप को भी यह समझना चाहिए कि भारत का रूस के बारे में नजरिया यूरोपीय दृष्टिकोण के समान नहीं हो सकता. विदेश मंत्री ने कहा कि भारत का रूस के साथ ‘स्थिर’ और ‘बहुत मैत्रीपूर्ण’ संबंध रहा है और मॉस्को ने नई दिल्ली के हितों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया. उन्होंने कहा, ‘दूसरी ओर, उदाहरण के तौर पर, चीन के साथ हमारे राजनीतिक और सैन्य संबंध बहुत जटिल हैं.’

यूक्रेन में युद्ध के बावजूद रूस के साथ भारत के निरंतर सैन्य सहयोग पर जयशंकर ने कहा कि यह इसलिए जारी है ‘क्योंकि कई पश्चिमी देशों ने लंबे समय से भारत को नहीं, बल्कि पाकिस्तान को आपूर्ति करने का विकल्प चुना है.’ जयशंकर ने रूस-यूक्रेन संघर्ष पर कहा कि भारत ‘संघर्ष को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक रूप से प्रतिबद्ध है.’ यह पूछे जाने पर कि क्या यही कारण है कि भारत मध्यस्थ बन सकता है, जयशंकर ने कहा, ‘सैद्धांतिक रूप से, हां. हम पहले ही बहुत विशिष्ट मुद्दों पर मदद कर चुके हैं.’ उन्होंने कहा, ‘हम जहां भी मदद कर सकते हैं, हमें ऐसा करने में खुशी होगी. जब भी हमसे संपर्क किया जाता है, हम खुले दिल से मदद करते हैं. हालांकि, हम नहीं मानते कि हमें इस दिशा में खुद से कुछ भी शुरू करना चाहिए.’

जयशंकर ने भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल की खरीद को पूरी तरह उचित ठहराते हुए कहा, ‘जब यूक्रेन में लड़ाई शुरू हुई, तो यूरोप ने अपनी ऊर्जा खरीद का एक बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया से लेना शुरू कर दिया जो तब तक भारत और अन्य देशों के लिए मुख्य आपूर्तिकर्ता था.’ उन्होंने कहा, ‘हमें क्या करना चाहिए था? कई मामलों में, हमारे पश्चिम एशियाई आपूर्तिकर्ताओं ने यूरोप को प्राथमिकता दी क्योंकि यूरोप ने अधिक कीमत दी थी. अब या तो हमारे पास ऊर्जा नहीं होती क्योंकि सब कुछ उनके पास चला जाता या हमें बहुत अधिक भुगतान करना पड़ता.’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने एक तरीके से ऊर्जा बाजार को स्थिर किया.’’

यूरोप यह कहकर भारत की आलोचना कर रहा है कि रूसी कच्चे तेल की खरीद से यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर मॉस्को पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों की प्रभावकारिता को नुकसान पहुंच रहा है. इस संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में जयशंकर ने यह टिप्पणी की. उन्होंने तर्क दिया कि यदि किसी ने रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदा होता और सभी ने इसे दूसरे देशों से खरीदा होता, तो ऊर्जा बाजार में कीमतें और भी बढ़ जातीं. उन्होंने कहा, ‘वैश्विक मुद्रास्फीति बहुत अधिक होती और कम आय वाले देशों में यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन जाता.’

जयशंकर ने कहा, ‘अगर यूरोप उस समय (रूस को) अधिकतम नुकसान पहुंचाना चाहता था, तो रूस के साथ सभी आर्थिक संबंधों को पूरी तरह से बंद कर दिया जाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’ उन्होंने कहा कि अगर यूरोप के लिए सिद्धांत इतने ही महत्वपूर्ण थे, तो उसने संबंधों को ‘‘नरमी से’’ खत्म करने का विकल्प क्यों चुना? उन्होंने कहा, ‘पाइपलाइन गैस कुछ देशों के लिए अपवाद क्यों थी और इसी तरह की गई अन्य बातें हैं? सरकारें यही करती हैं, वे अपने लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए राजनीति का प्रबंधन करती हैं.’ यह पूछे जाने पर कि क्या भारत 2020 में चीन के साथ सीमा संघर्ष को लेकर यूरोप से समर्थन चाहता था, उन्होंने कहा, ‘मेरा कहना यह है: जैसे मैं यह उम्मीद नहीं करता कि यूरोप चीन के बारे में मेरे जैसा दृष्टिकोण रखेगा, उसी तरह यूरोप को यह समझना चाहिए कि मेरा रूस के बारे में नजरिया यूरोप के दृष्टिकोण की तरह नहीं हो सकता.’ उन्होंने कहा, ‘‘आइए, इसे स्वीकार करते हैं कि रिश्तों में स्वाभाविक अंतर हैं.’’

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत और रूस के संबंध, भारत एवं यूरोप के संबंधों पर बोझ है, जयशंकर ने कहा कि हर कोई अपने पिछले अनुभवों के आधार पर संबंध स्थापित करता है. उन्होंने कहा, ‘अगर मैं आजादी के बाद भारत के इतिहास पर नजर डालूं तो रूस ने हमारे हितों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया. रूस के साथ यूरोप, अमेरिका, चीन या जापान जैसी शक्तियों के संबंधों में… सभी ने उतार-चढ़ाव देखे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘रूस के साथ हमारा रिश्ता स्थिर और हमेशा से बहुत मित्रवत रहा है तथा रूस के साथ आज हमारा रिश्ता इसी अनुभव पर आधारित है. दूसरों के लिए चीजें अलग थीं और संघर्षों ने उन संबंधों को आकार दिया होगा.’

यह पूछे जाने पर कि भारत हाल में हथियार के मामलों में रूस के साथ अधिक सहयोग करने पर सहमत हुआ है और क्या रूस अब भी नयी दिल्ली के लिए सबसे महत्वपूर्ण हथियार आपूर्तिकर्ता है, जयशंकर ने कहा, ‘ ‘इन्वेंट्री’ (भंडार) के संदर्भ में ‘हां’, ऐसा है क्योंकि कई पश्चिमी देश लंबे समय से भारत को नहीं बल्कि पाकिस्तान को आपूर्ति करना पसंद करते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन पिछले 10 या 15 वर्षों में यह बदल गया है. उदाहरण के लिए, अमेरिका के साथ हमारी नयी खरीदारी में विविधता आई है और अमेरिका, रूस, फ्रांस एवं इजराइल मुख्य आपूर्तिकर्ता हैं.’’

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इस बीच, जयशंकर ने सीआईआई द्वारा ‘भारत और यूरोप: विकास और स्थिरता में भागीदार’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में कहा कि लाल सागर में हालिया घटनाक्रम मौजूदा संपर्क सुविधा की नाजुकता को दर्शाता है और इसने अंतर्निहित लचीलेपन के साथ कई परिवहन गलियारे बनाने की आवश्यकता को प्रबल किया है. उन्होंने यूरोप के साथ भारत के गहरे होते संबंधों पर प्रकाश डाला और कहा कि महत्वाकांक्षी भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) वैश्विक आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण अवसर पैदा करेगा.

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