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हाइलाइट्स
मेडिकल डिवाइस के क्षेत्र में भारत का मार्केट बढ़ रहा है.
भारत में 37 मेडिकल डिवाइसों की मैन्यूफैक्चरिंग चल रही है.
National medical device policy 2023: केंद्र सरकार ने हाल ही में नेशनल मेडिकल डिवाइस पॉलिसी 2023 लागू की है. साल 2014 से मेडिकल डिवाइस क्षेत्र में पॉलिसी का इंतजार किया जा रहा था हालांकि अब जाकर यह खत्म हुआ है. केंद्र सरकार का कहना है कि यह पॉलिसी हेल्थकेयर सेक्टर सहित मेडिकल इंडस्ट्री के क्षेत्र में जबर्दस्त क्रांति ला सकती है. एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में 11 बिलियन डॉलर का मार्केट 2030 तक 50 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. अभी जो विदेशी उपकरण मंगाते हैं, वे काफी महंगे होते हैं, वहीं अगर इनका उत्पादन घर में होगा तो वे काफी सस्ते हो जाएंगे और मरीजों को बड़ा फायदा होगा. हालांकि केंद्र की इस नीति को लेकर इस इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञ क्या कहते हैं, आइए जानते हैं.
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के फोरम कॉर्डिनेटर राजीव नाथ News18Hindi से बातचीत में कहते हैं कि इस उद्योग से जुडे सभी को खुशी है कि मेडिकल उपकरणों को लेकर राष्ट्रीय पॉलिसी लागू हुई है. इस पॉलिसी के तहत निश्चित रूप से ये इंडस्ट्री आगे बढ़ेगी. इसके लिए जो भी मांगें हैं, अलग कानून, अलग विभाग, टैरिफ करेक्शन और प्राइस कंट्रोल की वे पूरी होंगी और इसका सीधा-सीधा फायदा कंज्यूमर और इंडस्ट्री की ग्रोथ के लिए मिलेगा. अगर सरकार डॉक्टर की तरह काम करेगी तो मरीज आईसीयू तक नहीं पहुंचेगा बल्कि वॉर्ड से ही हंसता हुआ बाहर निकलेगा.
पॉलिसी में सरकार की सिफारिशों पर ये है इंडस्ट्री की मांग
. रेगुलेशंस को स्ट्रीमलाइन किया जाए. इसके लिए अलग से कानून आए, ये मांग भारत में की जा रही है.
. दूसरी सिफारिश है निवेश बढ़ाने की लेकिन सवाल ये है कि निवेश कैसा होगा? इसमें टैरिफ करेक्शन की मांग की जा रही है.
. निवेश के साथ-साथ आरएंडी-इनोवेशन हो. एआईएमडी की मांग है कि मैन्यूफैक्चरर को अपराधी की तरह बर्ताव करने वाले कानून से निजात मिले. इनोवेटिव प्रोडक्ट बनाने की आजादी मिले.
. स्केलिंग और अपस्केलिंग हो. एकेडमिक कोर्सेज में सुधार हो.
. अगली सिफारिश में बताया गया है कि ब्रांड इंडिया के लिए एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल का उपयोग होगा. यह उपयोगी है.
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अभी क्या है समस्या?
राजीव नाथ कहते हैं, ‘जैसा कि हमें लगता है, इस पॉलिसी से कंज्यूमर को फायदा होगा. अभी तक सरकार की तरफ से मेडिकल डिवाइसेज की कीमतों पर कोई रोक टोक या कैपिंग नहीं है. खासतौर पर कुछ निजी अस्पताल जो ब्रांड चाहते हैं वह अपनी मर्जी से कंज्यूमर को देते हैं. इसमें वे मरीज की जरूरत कम अपना मुनाफ ज्यादा देखते हैं. वे कम लागत कम कीमत वाले माल के बजाय ज्यादा कीमत या एमआरपी वाले माल की खपत करते हैं. इसकी वजह से भारत के मैन्यूफैक्चरर या इम्पोर्टर बंधे हुए हैं. उपकरणों में व्यापार के चलते इम्पोर्टर्स को एमआरपी आर्टिफिशियल रूप से ज्यादा रखनी पड़ती है.’
कंज्यूमर को होगा ये फायदा
नाथ कहते हैं कि इस पॉलिसी के आने से कीमतों की मॉनिटरिंग होगी और इन चीजों पर पर लगाम लगेगी. इससे किसी भी डिवाइस का मैक्सिमम रिटेल प्राइस कम होगा और कंज्यूमर को कम कीमतों में सामान मिल सकेगा. दूसरा मैन्यूफैक्चरर को भी फायदा होगा. जैसा कि स्टेंट के प्राइस की कैपिंग करने के बाद हुआ था. स्टेंट्स में मेकिंग इंडिया ने काफी ग्रो किया है. इम्पोर्ट भी कम हुआ है और मरीजों को भी लाभ हुआ है.
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Tags: Medical, Medical Devices, Modi government
FIRST PUBLISHED : April 30, 2023, 21:14 IST
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