जयंती रंगनाथन की वो चुनिंदा कविताएं, जो सीधे दिल में उतरती हैं

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जयंती रंगनाथन की साहित्यिक यात्रा पत्रकारिता के साथ ही शुरु हो गई थी. लेखन में अद्वितीय प्रभाव डालने के साहसिक जुनून ने ही उन्हें पत्रकारिता की ओर प्रेरित किया, जहां उन्होंने अपने भावों को अपने शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने का निर्णय लिया और हिंदी साहित्य की दुनिया में अपना परचम लहराया. एक तमिल भाषी होने के बावजूद हिंदी भाषा पर उनकी गहरी पकड़ ने लेखन की दुनिया में वो नाम बनाया है, जो कभी-कभी नामुमकिन सा लगता है, लेकिन जयंती रंगनाथन हैं तो कुछ भी मुमकिन है. सोच कर देखिए तो ये बात अपने आप में ही कितनी कमाल की है, कि तमिल परिवार से आने वाली रंगनाथन हिंदी साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में भी इतना बेहतरीन काम कर रही हैं, वो भी बिना रुके… बिना थके… पूरी तरह से डूब कर. उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से जटिल भावनाओं और नाज़ुक दृष्टिकोणों को व्यक्त करने की अद्वितीय क्षमता दिखाई है.

मुंबई में धर्मयुग व सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविज़न में काम करने के बाद रंगनाथन जब दिल्ली आईं, तो वनिता पत्रिका की पहली संपादक बनीं और उसके बाद लंबे समय तक देश के लीडिंग न्यूज़ पेपर अमर उजाला में फीचर संपादक के तौर पर भी संस्थान को अपनी सेवाएं दीं. अब पिछले 12 सालों से हिंदुस्तान अख़बार में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर के पद पर कार्यरत हैं और साथ ही हिंदी साहित्य की दुनिया में भी महत्वूपर्ण भूमिका निभा रही हैं. आपको बता दें, रंगनाथन बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका नंदन की भी संपादक रह चुकी हैं. किसी महिला पत्रकार को इस पद पर देखना सचमुच बेहद सुखद अनुभव है, जो किसी भी औरत को गर्व की अनुभूति करवा सकता है, क्योंकि वे जहां पर हैं वहां तक बहुत कम महिलाएं हैं जो पहुंच पाती हैं. रंगनाथन पत्रकारिता और साहित्य की दुनिया में आने वाली अनगिनत लड़कियों के लिए एक आदर्श हैं, जिनके जैसी नजाने कितनी लड़कियां हो जाना चाहती हैं. हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में उनका योगदान विविधतापूर्ण है.

सोशल मीडिया पर जयंती रंगनाथन खासा एक्टिव रहती हैं, और समय समय पर अपने विचार पोस्ट्स के माध्यम से भी अपने पाठकों से साझा करती रहती हैं. सभी तरह के ज़रूरी मुद्दों पर उनका पक्ष कुछ अलग ही होता है, जो रुके बिना उन्हें पढ़ते रहने की आदत डाल देता है. आप यदि उन्हें एक बार पढ़ेंगे, तो फिर उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर पूरा पढ़ जाना चाहेंगे. रंगनाथन के लेखन में मानवीय स्वभाव, सामाजिक मुद्दों के बारे में गहरी समझ और जीवन की नितांत परिकल्पना करने की क्षमता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. अपने लेखन में बिना शोर किए वे बड़ी से बड़ी बात को सरलता और सहजता से कहने का साहस रखती हैं. अपनी प्रेरणादायक भाषा, मनोहारी कल्पना, और चिंतन-प्रेरित विषयों की वजह से रंगनाथन का साहित्य पाठकों के बीच एक विशेष स्थान रखता है.

जयंती रंगनाथन के उपन्यासों की बात करें, तो ‘आसपास से गुजरते हुए’, ‘खानाबदोश ख्वाहिशें’, ‘औरतें रोती नहीं’, ‘एफओ जिंदगी’, ‘शैडो’ और ‘मेरी मम्मी की लव स्टोरी’ प्रमुख हैं, जिन्हें पाठकों का भरपूर प्यार मिला है. वहीं उनके दो कहानी संग्रह, ‘एक लड़की दस मुखौटे’ और ‘गीली छतरी’ भी प्रकाशित हो चुके हैं. रंगनाथन ने पहला फेसबुक नॉवेल ’30 शेड्स ऑफ बेला’, ‘कामुकता का उत्सव’ और ‘रेड लाइट एरिया’ का संपादन किया है, साथ ही उनकी हिंदी पत्रिका हंस, कथादेश, धर्मयुग, सारिका, हिंदुस्तान, इंडिया टुडे और आउटलुक समेत कई अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में 500 से अधिक कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं.

टेलीविजन की बात करें तो जयंती रंगनाथन ने ‘स्टार यार कलाकार’, ‘हादसे’, ‘मूवर्स एंड शेखर्स’, ‘लव स्टोरीज’ और ‘सोने की ऐनक’ (बाल फिल्म) का लेखन किया है. उनकी किताब ‘भाग सनी भाग’ का नेशनल बुक ट्रस्ट ने चार भाषाओं में अनुवाद किया. उन्होंने बच्चों पर काफी कुछ लिखा है, जिसमें ‘पिहू के दोस्तों का जवाब नहीं’, ‘शिबू और सिमी की अजब दुनिया’, ‘कंप्यूटर बना कैलकुलेटर’ और ‘अब आएगा मजा’ उनकी प्रमुख किताबें हैं. स्टोरीटेल पर उनकी ऑडियो बुक्स और सीरीज भी आसानी से मिल सकते हैं, जिनमें बच्चों की सीरीज ‘बाला और सनी’, ‘रैनबो प्लानेट’, ‘घर आया डायनासोर’ और ‘पार्टी टाइम’ को लोगों ने ख़ासा पसंद किया. रंगनाथन हर सप्ताह HT smartcast में शेड्स ऑफ जयंती के हैंडल से पॉडकास्ट भी करती हैं. उनके लोकप्रिय पॉडकास्ट #लवयूजिंदगी (हेल्थ बेस्ड) और #मेरीमम्मीकीलवस्टोरी (सीरियलाइज्ड) को आप Spotify पर भी सुन सकते हैं.

गौरतलब है, कि जयंती रंगनाथन के उपन्यास ‘आसपास से गुजरते हुए’ पर पांच से ज्यादा अलग-अलग यूनिवर्सिटीज़ में शोध हो चुकी हैं, जिनमें आगरा विश्वविद्यालय, मुंबई में एसएनडीटी विश्वविद्यालय, पुणे यूनिवरसिटी और जम्मू यूनिवरसिटी शामिल हैं. यहां के विद्यार्थियों ने जंयती रंगनाथन के लेखन में नारी चित्रण पर शोध की है.

Jayanti Rangnathan

किताबों के बीच अपने उपन्यास ‘शैडो’ को पढ़ते हुए जयंती रंगनाथन

जंयती रंगनाथन को साल 2001 में सर्वश्रेष्ठ युवा लेखक का सम्मान प्राप्त हुआ. साल 2014 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ मीडियाकर्मी का सम्मान और 2022-23 में स्वयंसिद्धा अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. साथ ही उन्हें एक्सचेंज फॉर मीडिया की तरफ से बेस्ट मीडियापर्सन का अवॉर्ड और वाग्देवी अवॉर्ड भी दिया जा चुका है. रंगनाथन पंद्रह से अधिक लिट फेस्ट का हिस्सा रही हैं. उनके उपन्यास ‘शैडो’ पर ‘चैप्टर 2’ नाम से फिल्म भी निर्माणाधीन है. उनका नया उपन्यास ‘मैमराज़ी’ रिलीज़ के लिए पूरी तरह से तैयार है.

आइए पढ़ते हैं, जयंती रंगनाथन की वो चुनिंदा कविताएं, जो सीधे दिल में उतरती हैं-

1)
एक स्त्री का चुंबन
मुझसे कहा गया
तुम नहीं लिख सकोगी कविता
चुंबन पर

एक स्त्री तो बस चूमी जाती है
उसके होंठ हमेशा नीचे रहते हैं
उसकी आकांक्षाओं की तरह

अगर मैं कहूं मुझे ऐसे होंठ पसंद हैं
ऊपर वाला थोड़ा भरा-भरा और नीचे का संतरे की फांक सा
मूंछों के बाल हों थोड़े खुरदरे

भरे होठों पर पहले अपने दाएं हाथ की छोटी उंगली फिराऊंगी
फिर अपनी आंखों से नापूंगी आकार
अपनी आंखें खुली रखूंगी
जब मेरे होंठ उसके होंठ पर होंगे

एक स्त्री का चुंबन अलग ही होगा
एक अधिकार और हठ की तरह
यहां याचना नहीं होगी, ना ही प्यासे रहने का अहसास

जीभ से रिसता रस और सुलगती नसें
यह है असली चुंबन
सालोसाल याद रहने वाला
अपने प्रिय को भीतर तक पीने वाला
अपने हक का चुंबन…

2)
#तूरंगबाजमैंबागी
मुझसे प्रेम करना चाहो
तो कर लो

पर सुनो, मैं किसी के लिए
अपने आपको रत्ती भर नहीं बदलने वाली

बहुत मुश्किल से ये तेवर पाए हैं
अपने आपसे मोहब्बत करना सीखा है
अपने तरीके से जीना भी
अब चाहे जो हो,
मैं तो मैं ही रहूंगी
जो तुम आना चाहते हो मेरी जिंदगी में
तो आ जाओ

मेरी सुबहें मेरी रहेंगी
देर तक सोती हूं, बिस्तर पर कॉफी पीती हूं
वो भी खुद नहीं बनाती
मेरे लिए घर वो चारदिवारी नहीं
जहां मैं कैद महसूस करूं
बल्कि मेरे घर में तो दीवारें हैं ही नहीं
मैं खुद भी मुक्त हूं और मेरा घर भी

मुझे अपना काम और करियर बेहद अजीज हैं
इनके बीच कभी मत आना
ऑफिस के काम में तेज हूं, घर के कामों में फिसड्डी
ना मुझे खाना बनाना आता है ना घर संभालना
पर हां, सजा हुआ अपना घर अच्छा लगता है

मेरे घर में जो काम करती है, उसे पता है
क्या है मेरा चेहरा
मेरा घर उसके हाथों से गढ़ा मेरा चेहरा ही है
क्या तुम्हें लगता है
तुम बन सकते हो मेरा चेहरा?

मुझे अपने ऊपर तंज सुनने की आदत नहीं
ना करने की
मैं शुक्रवार से इतवार तक किसी और ही दुनिया में होती हूं
मेरा बिस्तर, मेरा लैपटॉप और जॉमेटो
गंजी और शॉर्ट्स मेरी जिंदगी है

तुम्हें अगर मेरा यह रूप नहीं पसंद
तो मुझे भी मत पसंद करना
आधे-अधूरे मन से

मेरा शरीर गठीला है
मेरी आवाज में तुर्शी है
मुझे पसंद है अजनबियों से बातचीत
पब में दोस्तों के साथ हाहा-हीही
और हां, मेरी पांच डिजिट की पक्की नौकरी
ये मेरा बॉयोडाटा नहीं है

अगर तुम यह देख कर मुझ पर फिदा हो
तो धोखा खाओगे
दिल टूट जाएगा तुम्हारा
मैं पूरी तरह ना वो हूं
ना ये जो कह रही हूं

फिर कह रही हूं
बहुत मुश्किल से निकली हूं अपने छोटे शहर से
हासिल किया है यह स्वैग
अपने बल पर
इसे ना छोड़ पाऊंगी
यह तो न हो सकेगा

फिर भी अगर तुम मुझसे प्रेम करना चाहो तो…

3)
वो एक शाम
वो एक शाम सब सही होते-होते गलत हो गया

चलती हवाएं रुक गईं, बजते विंड चाइम्स थम गए
धीरे-धीरे वक्त दुबक गया पुरानी सी घड़ी के पीछे

आखिरी बचा जाम आखिरी हवा के झोंके से
लुढ़क चुका था नीचे
कांच के गिलास हंस रहे थे
उनमें टपकता पानी देख कर

गैस पर रखी बिरयानी की हांडी
जल चुकी थी
प्लेटों में सजे सलाद… चिपचिपे से
कुछ ज्यादा ही पड़ गया था मेयानीज शायद

सही और गलत के बीच बस एक ही शब्द था
प्यार
एक से दस तक के बीच
दो लोग ऐसे कैसे सुबह से शाम तक अपने रिश्ते का नाम बदल देते हैं?
प्रेमी से अजनबी बनते-बनते इनसान भी नहीं रह जाते

दोस्तों की महफिलें उठ चुकी थीं
किसी को फर्क नहीं पड़ा था
ना जली बिरयानी से, ना पानी पड़े जामों से

जिसे पड़ना था, उसके लिए एक उम्र पड़ी है
ऐसी शामों पर आंख नम करने के लिए
तय करने के लिए कि प्रेम कितना बचा था उस वक्त
जब बिरयानी जल रही थी
और सलाद के पत्तों के कीड़े आधे कट चुके थे…

4)
उसने कहा था : प्यार को प्यार ही रहने दो
और फिर चला गया

मैंने वही किया: प्यार को प्यार रहने दिया
फिर पता चला कि प्यार में तो दो लोगों को होना होता है

उम्र गुजर गई, नए फलसफे बने
कुछ सोच भी बदली
प्यार के लिए क्यों जरूरी है दो लोगों का होना
एक ही काफी है
मैं से प्यार किया

वो प्यार ही क्या, जिसमें कोई राज ना हो
सारी परतें खुल जाएं, देह अपनी बातें कर लें, मन अपनी
फिर क्या बाकि रहेगा?
दो लोग तो छोड़िए, शायद एक भी नहीं

अगर वो दूसरी पंक्ति कह देता: प्यार एक अहसास है…
तो शायद उसी वक्त कई मसले सुलझ जाते
अहसासों के साथ रहना, उनके भीतर-बाहर जाना
रूह तक महसूस करना
अपने आपको, अपनी नजर से, अपने लिए
जिंदगी आसां हो जाती
न रह जाती कोई खलिश, न इंतजार
न सुलझाती प्यार की गुत्थियां

गलत परिभाषाओं के चक्कर में
लंबा समय गुजर जाता है
थकने लगता है और खीझने भी
प्यार की जगह अब शायद वासना लिखना होगा
और यह भी कि इसके बाद ही अगली पंक्ति शुरू होती है
बिना उलझनों के

5)
मैं लिख नहीं पाऊंगी अपना समय
इसे चाहे मेरी कमजोरी समझें या ताकत

रहती जरूर हूं इस वक्त में
पर बुनती हूं अपने लिए कोई दूसरा ही वक्त
मेरे पास दिखाने के लिए कोई तसवीर नहीं
ना ही कोई खबर है
आसपास जो हो रहा है, उसमें से निकलती हूं
फिर छिप जाती हूं अपने बुने वक्त में

इस समय को तय करना और इस समय में रहना
मुश्किल नहीं है
आसपास हजारों-हजार लोग यही कर रहे हैं
अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उलझे हुए
समाचारों से धिक्कारे हुए
सच से नकारे हुए
मैंने चुना है मुश्किल रास्ता
अपने लिए बनाया है वक्त
खड़ा किया है धुंध के औजारों से एक महल
यहां होना मतलब अपने से अलग हो कर जीना
यहां से रास्ते कभी सही जगह पर नहीं जाते

मेरे लिए यह सही है
वर्तमान से रहते हुए भी न रहना
सच से भागते हुए भी सच में रहना
अपने से लड़ती हूं
इस आस में कि एक दिन आएगा
जब मैं दूसरों के लिए लड़ सकूंगी.

Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature

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