जब किसी हादसे में बड़े पैमाने पर लोग मरते हैं तो लावारिस शवों का क्या करती है सरकार, क्‍या हैं नियम

[ad_1]

Balasore Train Accident: ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण ट्रेन हादसे में मरने वालों की संख्‍या 275 से ज्‍यादा है. वहीं, 1000 से ज्‍यादा लोग जख्‍मी हुए हैं. इनमें से 790 यात्रियों को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है. बाकी का इलाज चल रहा है. सबसे बड़ी समस्‍या ट्रेन हादसे के मृतकों की पहचान को लेकर आ रही है. अभी भी 100 से ज्‍यादा लोगों के शवों की पहचान नहीं हो पाई है. ओडिशा सरकार के लावारिस शवों को सड़ने से बचाने के आदेश के बाद उन्‍हें भुवनेश्‍वर एम्‍स भेजा गया. डॉक्‍टर्स के मुताबिक, शव अधिकतम 7 दिन के बाद तेजी से डिकंपोज होना शुरू हो जाते हैं. सवाल ये उठता है कि ऐसे में पहचान नहीं होने पर सरकार या रेलवे लावारिस शवों का क्‍या करेगा.

लावारिस शवों को लेकर जब भारतीय रेलवे के प्रवक्‍ता अमिताभ शर्मा से बात की गई तो उन्‍होंने कहा कि रेल हादसे में मृतकों के शव को संरक्षित करना या लावारिस घोषित कर अंतिम संस्‍कार करना रेलवे के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. इस पर फैसला लेने का अधिकार राज्‍य सरकारों का है. ये राज्‍य सरकारों को तय करना होता है कि ऐसे बड़े हादसों में कितने दिन तक शव को संरक्षित करना है और कब लावारिस घोषित कर अंतिम संस्‍कार करना है. लिहाजा, पहले जानते हैं कि लावारिस शवों को संरक्षित करने और अंतिम संस्‍कार को लेकर क्‍या नियम हैं?

ये भी पढ़ें – Train Accident: जब ट्रेन हादसे में 40 की मौत के बाद रेल मंत्री को दे दी गई मौत की सजा, अधिकारी भी नहीं बख्‍शे गए

पुलिस शुरू करती है पहचान की कवायद
किसी हादसे में जब बड़े पैमाने पर लोगों की मौत होती है तो कुछ लाशों की पहचान भी नहीं हो पाती है. वहीं, कुछ की पहचान होने में बहुत ज्‍यादा समय लग जाता है. नियमों के मुताबिक, जब भी पुलिस को कोई लावारिस लाश मिलती है तो सबसे पहले जिला एसपी को जानकारी दी जाती है. इसके बाद लाश की रिपोर्ट तैयार कर पहचान पुख्‍ता करने की कवायद शुरू की जाती है. इसके लिए प्रदेश के थानों और आसपास के राज्यों के कंट्रोल रूम्‍स में मृतक के हुलिये की जानकारी भेजी जाती है. इसके बाद ये पता लगाया जाता है कि शव का पोस्टमार्टम करना है या नहीं, मौत प्राकृतिक है, दुर्घटना में हुई है या हत्या की गई है.

odisha train accident, people die on a large scale in train accident, what does the government do with the unclaimed dead bodies, unclaimed dead bodies, Odisha Government, Indian Railways, Indian Railway, Train Accident, Railway Board, Cremation, Funeral, NDRF, Allahabad Highcourt, Cremation rules of unclaimed dead bodies, Law, PM Narendra Modi, Naveen Patnaik

सामान्‍य तौर पर पुलिस ज्‍यादा से ज्‍यादा 4 दिन तक मृतक के परिजनों का इंतजार करती है, क्‍योंकि इससे ज्‍यादा शव को संरक्षित करना काफी मुश्किल होता है. (फाइल फोटो- AP)

पहचान के लिए अपनाया जाता है ये तरीका
पुलिस शव की पहचान के लिए कई तरीके अपनाती है. इसके लिए पुलिस मृतक के शरीर पर टैटू, कोई जन्म चिह्न, कागज का कोई टुकड़ा तलाशकर व्यक्ति की पहचान करने की कोशिश करती है. कई लोगों के नाम, धार्मिक प्रतीक, पति या पत्‍नी का नाम, कोई टैटू मिलने पर पहचान में आसानी हो जाती है. कुछ राज्यों में पुलिस थानों को एक वॉट्सऐप ग्रुप के जरिया जोड़ा जाता है. इस पर लावारिस लाशों के मामलों में अनौपचारिक रूप से पहला संदेश भेजा जाता है. इसके बाद मृतकों की पहचान के लिए अखबारों में विज्ञापन दिए जाते हैं.

ये भी पढ़ें – Explainer : क्या होता है डीएनए टेस्ट, कितने दिनों में आता है रिजल्ट, रेल हादसे में कैसे ली जाएगी इसकी मदद

कितने दिन करते हैं परिजनों का इंतजार
सामान्‍य तौर पर पुलिस ज्‍यादा से ज्‍यादा 4 दिन तक मृतक के परिजनों का इंतजार करती है, क्‍योंकि इससे ज्‍यादा शव को संरक्षित करना काफी मुश्किल होता है. पहचान नहीं होने पर पुलिस शव को लावारिस घोषित कर अंतिम संस्कार कर देती है. इसके बाद मृतक के कपड़े और उससे जुड़ी दूसरी चीजों को मालखाने में जमा करा दिया जाता है. लाश को आमतौर पर चादर में लपेटकर मुर्दाघर में ले जाया जाता है. फिर उन्हें स्ट्रेचर पर कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है. जांच के कागजात या जांच के आधिकारिक दस्तावेज मिलने तक डॉक्टर लाश को नहीं छूते हैं.

ये भी पढ़ें – इतिहास में आज: जब चीन में हजारों छात्रों की कर दी गई थी हत्या!

असली दिक्‍कत अंतिम संस्कार में होती है
पुलिस को सबसे ज्‍यादा दिक्‍कत लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार में आती है. अगर किसी लावारिस लाश के पर कोई धार्मिक चिह्न मिल जाता है तो उसके आधार पर उसका जलाकर या दफनाकर अंतिम संस्‍कार कराया जाता है. अगर किसी तरह से लाश का धर्म तय नहीं हो पाता है तो अमूमन पुलिस उसका दाह संस्कार ही कराती है. अगर धर्म तय हो जाता है और शव को दफनाना होता है तो लाश राज्य के वक्फ बोर्ड को सौंप दी जाती है.

odisha train accident, people die on a large scale in train accident, what does the government do with the unclaimed dead bodies, unclaimed dead bodies, Odisha Government, Indian Railways, Indian Railway, Train Accident, Railway Board, Cremation, Funeral, NDRF, Allahabad Highcourt, Cremation rules of unclaimed dead bodies, Law, PM Narendra Modi, Naveen Patnaik

ज्‍यादातर मामलों में पुलिस लावारिस लाश को ज्‍यादा से ज्‍यादा एक सप्‍ताह तक सुरक्षित रखने के बाद ही अंतिम संस्‍कार कराती है.

राज्‍य सरकार तय करती है अवधि
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्‍ता आनंदपति तिवारी के मुताबिक, ज्‍यादातर मामलों में पुलिस लावारिस लाश को ज्‍यादा से ज्‍यादा एक सप्‍ताह तक सुरक्षित रखने के बाद अंतिम संस्‍कार कराती है. लेकिन, जब ओडिशा ट्रेन हादसे जैसे मामले में बड़े पैमाने पर मृतकों की पहचान नहीं हो पाती है तो उन्‍हें संरक्षित करना बहुत मुश्किल हो जाता है. उनके मुताबिक, सामान्‍य तौर पर गर्मियों के मौसम में शव 2 से 3 दिन के भीतर डिकंपोज होना शुरू हो जाता है. इसके बाद शव से भीषण बदबू आने लगती है. सोचिए, एक साथ 100 से ज्‍यादा शवों की दुर्गंध कितनी भयंकर होगी. ऐसे में राज्‍य सरकार के पास अगर शवलेपन या कोल्‍ड स्‍टोरेज सुविधा नहीं है तो उसे 3 दिन के भीतर अंतिम संस्‍कार कराने का अधिकार है. हालांकि, मौजूदा मामले में ओडिशा सरकार ने पहचान होने तक शवों को संरक्षित करने का आदेश दिया है.

Tags: Cremation of unclaimed dead bodies, Odisha government, Odisha Train Accident, Train accident

[ad_2]

Source link