जगजीत की आवाज़, इश्क़ की आवाज़ | – News in Hindi

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बात कॉलेज के दिनों की है. फर्स्ट ईयर में मेरी मुलाकात एक लड़के से होती है. वो मुझे क्लास में दूर से देखा करता था. धीरे-धीरे बातचीत शुरु हुई जो नोट्स के लेनदेन में तब्दील हो गई. मुझे अच्छे से याद है वो मेरी बॉटनी की नोटबुक ले गया और दो दिन बाद उसे घर आकर वापस कर गया. कॉपी पलटते हुए मेरी नज़र उसके आख़िरी पन्ने पर पड़ी. जिस पर लाल रंग के पेन से दो लाइन लिखी हुई थी. वो शायद किसी गज़ल के मिसरे थे, जो मैंने पहली बार पढ़े थे. गज़ल थी “मैं कैसे कहूं जानेमन मेरा दिल सुने तेरी बात, ये आंखों का उजाल ये होंठों की सियाही यही है मेरे दिन रात.’ मैंने इसके पहले ये गज़ल नहीं सुनी थी, जो मशहूर गज़ल गायक जगजीत सिंह की आवाज़ में थी. हालांकि जगजीत सिंह के नाम ये मेरी पहली मुलाक़ात नहीं थी. मेरे किराएदार के बेटे गज़लों के दीवाने थे. पहली बार उनके घर से आती आवाज़ से मुझे गज़लों को सुनने की ललक पैदा हुई. स्कूल के दिनों में इतनी समझ नहीं थी कि भारी भरकम गज़लों को सुना जाए शायद वो मिजाज़ भी नहीं था. लेकिन जगजीत सिंह के ज़रिए मेरी तरह के तमाम नए उम्र के लोग गज़लों की दुनिया की सैर करने लगे. फिल्मी गज़लों के ज़रिए जगजीत सिंह की आवाज़ हमारे कानों तक पहुंच रही थी उन्होंने 80 और 90 के दशक के हर जवां दिलों पर गज़लों के ज़रिए राज किया.

माह-ए-इश्क़ फरवरी की 8 तारीख़ और रस्मन दुनिया की मानें तो वेलेन्टाइन वीक का दूसरा दिन यानि प्रपोज़ डे. आज ही के दिन सन 1941 राजस्थान के श्रीगंगानगर में एक बच्चे का जन्म होता है. कुदरत का निज़ाम कहिए कि कैलेंडर के हिसाब से दुनिया 8 तारीख़ को अपनी मोहब्बत का इज़हार करती है तो जगजीत सिंह बड़े होकर इश्क़ की ज़ुबान बन गए. पिता सरदार अमर सिंह धमानी सरकारी कर्मचारी थे लेकिन वो संगीत के बेहद करीब थे और उसमें ख़ासी दिलचस्पी रखते थे और पिता की यही दिलचस्पी जगजीत को संगीत के नज़दीक ले आई. शुरुआती पढ़ाई गंगानगर में करने के बाद जगजीत सिंह जालंधर चले गए और साल 1965 में मुंबई की तरफ़ रुख़ किया. जहां पर उन्हें खासी स्ट्रगल करनी पड़ी. फिल्मों में ब्रेक मिल जाए इसके लिए जगजीत ने छोटी छोटी फिल्मी पार्टियों में गाना भी गाया. इसी दौरान साल 1967 में उनकी मुलाकात चित्रा सिंह से हुई जो बाद में ज़िंदगी के हमसफ़र में तब्दील हुई. जगजीत और चित्रा सिंह की जोड़ी गज़लों की दुनिया की बेताज जोड़ी रही.

ट्रेडिशनल गज़ल गायकी को नया रंग देने का श्रेय जगजीत सिंह को जाता है. कहा जा सकता है कि जगजीत सिंह के पहले गज़ल एक ख़ास तबके और संगीत की ख़ासी समझ रखने वालों की पसंद हुआ करती थी. गज़लों की दुनिया के कद्दावर नामों बेग़म अख़्तर, मेंहदी हसन, बड़े गुलाम अली, तलत मेहमूद ने गज़लों का जो मयार बनाया जगजीत ने उसे बेहद आसान सा बना दिया. दरअसल ये वो दौर था जब आम आदमी ने जगजीत सिंह, पंकज उधास, चंदन दास जैसे ग़ज़ल गायकों से दिल लगाना शुरु कर दिया था. लेकिन गज़लों को आसान बनाने के प्रयोग परंपरागत गायकी के शौकीनों की आंखों में खटक भी रहे थे. जगजीत सिंह को मोहब्बत की आवाज़ कहे तो कोई गलत नहीं होगा. इश्क़ में डूबे नौजवान की ज़ुबान शायद जगजीत ही बने.

उदास दिलों की धड़कने सुनने वालों के लिए “तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो, क्या ग़म है जिसको छुपा रही हो” तो जैसे किसी ख़ास तोहफ़े की तरह थी. बरसों बरस बाद भी ये गज़ल किसी अपने के चेहरे की उदासी को समझने और उसे कहने का माद्दा रखती है. जो मोहब्बत में साथ आने से डरते,इश्क़ तो करते लेकिन अपने हालातों से मजबूर होते वो गाते “प्यार मुझसे जो किया तो क्या पाओगे, मेरे हालात की आँधी में बिखर जाओगे” वो 1891 में फिल्म प्रेमगीत और 1982 में महेश भट्ट की फिल्म अर्थ जगजीत सिंह की ज़िंदगी में मील का पत्थर कहे जा सकते हैं. फिल्म के हर गाने आज तक लोगों के ज़ुबान पर होते हैं. प्रेमियों के लिए प्रेमगीत का “गीत होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो” तो ऐसा गाना बना कि आज भी आशिक इसके ज़रिए अपने दिल की बात कह जाते हैं. जगजीत सिंह के फिल्मी सफ़रनामें की बात करें तो उनकी गज़लें सदाबहार रहीं हालांकि बतौर संगीत निर्देशक वो नाकाम रहे.

फिल्मी गज़लों के ज़रिए जगजीत और चित्रा आम आदमी के दिलों पर दस्तक दे चुके थे और फिर वक्त आया एल्बम का. इश्क़ को ज़ुबा देने वाले जगजीत की रुहानी और मख़मली आवाज़ लोगों के दिलों पर राज कर रही थी. निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र, गुलज़ार, जावेद अख़्तर साहब जगजीत सिंह के पसंदीदा शायर रहे, इनकी गज़लों को जगजीत ने अपनी आवाज़ दी तो ऐसा लगा जैसे किसी हीरो को बेहतरीन तरीके से तराशा गया है. स्कूल कॉलेज के दिनों में अगर किसी को ग़ज़ल सुनने की लत लगती है तो उसका पूरा श्रेय जगजीत सिंह को जाता है. उन्होंने गज़लों को आसान बनाया, साज़ों के साथ नए नए प्रयोग किए. जिन भारी भरकम गज़लों को सुनने हुए लोग दूर भागते थे उनको नौजवानों के नज़दीक लाए. 1987 में जगजीत सिंह का रिकॉर्ड किया गया पहला एल्बम बियॉन्ड टाइम भारत में डिजिटली रिलीज़ हुआ उसके बाद जगजीत सिंह के लगभग हर एल्बम ख़ासे पॉप्युलर हुए. 1990 में जब जगजीत सिंह अपने कैरियर के ऊरज पर थे तो ज़िंदगी का सबसे बड़ा हादसा हुआ. उन्होंने अपने इकलौते बेटे विवेक को एक कार एक्सीडेंट में खो दिया. जगजीत और चित्रा सिंह को बेटे की मौत का ऐसा सदमा लगा कि चित्रा ने तो गाना छोड़ ही दिया और जगजीत को भी इस सदमें से उबरने में लंबा वक्त लगा. एक साल तक गायकी से दूर रहने के बाद जब जगजीत ने गज़ल गायकी शुरु की तो उनकी आवाज़ में दर्द ऐसा बढ़ गया था कि उसकी टीस सुनने वाले के दिल को चीर देती थी.

जगजीत सिंह की सालगिरह पर हम उन्हें याद कर रहे हैं लेकिन वो हमारे दिलों में ऐसे घर किए हुए हैं कि उन्हें भुलाया जा ही नहीं सकता है. हमारी पीढ़ी के साथ साथ नई पीढ़ी के दिलों में भी जगजीत सिंह की आवाज़ राज करती है. 10 अक्टूबर 2011 में उनके निधन के बाद जैसे गज़लों का एक सुनहरा दौर चला गया. मुझे याद आती है उनकी हर एक गज़ल जिसको सुनकर ऐसा लगता कि जैसे हमारे जज़्बातों को ज़ुबान मिल गई है. ग़ालिब को जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ दी तो ग़ालिम भी बहुत आसान से लगने लगे. “प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है” के ज़रिए आश़िकों ने अपने लिहाज़, सब्र को आज़माया और दिल पर हाथ रखकर बार-बार खुद को समझाया कि इश्क़ एक तहज़ीब है, जिसके कुछ दायरे हैं. जगजीत सिंह को सुनकर हमने मोहब्बत को मेहसूस किया है और हम जैसे लाखों दिल जगजीत को सुनकर मोहब्बत को अपनी ज़ुबान दे पाए हैं. शुक्रिया जगजीत जी हम आशिकों को अपनी गज़लों का बेहतरीन तोहफ़ा देने के लिए. आपकी आवाज़, आपकी गज़लें बरसों बरस इस दुनिया में मोहब्बत की ख़ुशबू फैलाती रहेंगी. आपको सालगिरह बहुत मुबारक हम इश्क़ करने वालों की तरफ़ से.

ब्लॉगर के बारे में

निदा रहमान

निदा रहमानपत्रकार, लेखक

एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.

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