गैर हिंदी भाषी राज्य में कविता का नया अध्याय लिख रही हैं आधुनिक हिंदी कवि और साहित्यकार लवली गोस्वामी

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फिलॉसफी और मैनेजमेंट से पोस्टग्रेजुएट लवली गोस्वामी एक आधुनिक हिंदी कवि और उपन्यासकार के रूप में अच्छी पहचान रखती हैं. लवली कम लिखती हैं, लेकिन जितना भी लिखता हैं बेहतरीन लिखती हैं. ये बात सच है कि अच्छा लेखन समय मांगता है और अनुभव भी, और ये दोनों ही बातें लवली के लेखन में गहराई से देखने को मिलती हैं. किताबों और सोशल मीडिया से निकलकर लवली की कविताओं को सामने बैठकर इनकी आवाज़ में सुनना और भी दिलचस्प हो जाता है. इनकी कविताओं की सबसे खास बात ये है कि कविता पढ़ते हुए आंखों पर कई तरह के चित्र उभरते हैं और हर पंक्ति अपने आप में एक अलग कहानी कहती है. कविताओं में ठहराव है और जीवन को अलग तरह से देखने का लहज़ा भी, जिनमें कई बार पाठक खुद को खड़ा हुआ पाता है.

लवली गोस्वामी का पहला कविता संग्रह ‘उदासी मेरी मातृभाषा है’ साल 2019 में प्रकाशित हुआ, जिसे कुछ समय बाद ही अमेज़न की बेस्टसेलर लिस्ट में शामिल किया गया. संग्रह की गहरी विषयवस्तु और साहित्यिक मान्यता ने इसे 2020 में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार के लिए एक अंतिम उम्मीदवार के रूप में मान्यता दी और साल 2022 में लवली को इसी किताब के लिए प्रतिष्ठित केदारनाथ सिंह कविता पुरस्कार दिया गया. धनबाद के तोपचांची गांव से निकलकर लवली कई साल पहले बेंगलुरु में पूरी तरह से बस गईं. लवली वहां कई तरह के साहित्यिक आयोजनों का खास हिस्सा हैं और एक गैर हिंदी भाषी राज्य कर्नाटक में हिंदी पर गंभीरता से अच्छा काम कर रही हैं. बेंगलोर में रहते हुए हिंदी साहित्य पर और कैसे बेहतर काम किया जाये और वहां के लोगों को उससे कैसे जोड़ा जाये, इसके लिए भी लवली कई तरह के साहित्यिक मंचों और आयोजनों का हिस्सा बनती रहती हैं.

एक सॉफ्टवेयर फर्म में मार्केटिंग लीड करते हुए लवली अपने लेखन को भरपूर समय देती हैं और उनकी कोशिश रहती है, कि उसे और बेहतर कैसे किया जाये, हालांकि आप उन्हें जितना भी पढ़ेंगे उसमें कोई खास कमी आप ढूंढ नहीं पायेंगे. लवली खूब पढ़ती हैं और फिर लिखती हैं. लवली के लेखन में अच्छी रिसर्च होती है, जिसे पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे. कविता और कहानियों के साथ-साथ अंग्रेज़ी निबंध पर भी लवली की पकड़ सराहनीय है. लवली का लेखन सिर्फ हिंदी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि और भी कई भारतीय भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है. जिन दिनों लवली अपनी किताबों पर काम नहीं कर रही होती हैं, उस दौरान वे पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी लिखती हैं. जब साल 2015 में उन्होंने ‘Matriarchy and Sexuality in Indian Myths’ नामक निबंध संग्रह प्रकाशित किया, तो उसे काफी सराहा गया. यह संग्रह भारतीय पौराणिक कथाओं के मातृवादी व्याख्यान पर गहरी चोट करता है. इसी साल, यानि कि 2023 जनवरी में लवली का थ्रिलर उपन्यास ‘वनिका’ भी प्रकाशित हुआ, जिसे पाठकों का भरपूर प्यार मिला.

कविता कितनी ज़रूरी हैं और किस हद तक सार्थक है अपनी बात कहने में, इस पर लवली कहती हैं, एमर्सन कहते थे भाषा का पहला शब्द ही कविता है. ज़ाहिर है कि उस शब्द ने किसी अर्थ की तरफ संकेत किया, उसका कोई भाव रहा होगा और वह एक मेटाफर भी था, इसलिए एमर्सन ने ऐसा कहा होगा. मुझे लगता है कविता भोजन जितनी ही ज़रूरी है. अंतर बस इतना है, कि कविता से शरीर को कम आत्मा को अधिक पोषण मिलता है. कविता का भी दूसरी कलाओं की तरह एक क्राफ्ट और फॉर्म होता है. कोई भी बात कहते समय इस बात का बेहद ध्यान रखना होता है कि वह इस विधा के क्राफ्ट का उल्लंघन न करे. कोशिश यही करती हूं कि बात सीधी और सरल रहे, लेकिन फिर भी सीधी और सरल बात में कविता का होना बना रहे इसका ध्यान रखना मुझे ज़रूरी लगता है.

औरत जब मां बनती है, तो उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है. लगभग दस साल के सक्रिय लेखन के बीच लवली ढाई साल की गतिग्या की मां के रूप में खुद को पहले से बदला हुआ पाती हैं. मां बनने के बाद दिनचर्या का बदल जाना आम बात है, लेकिन वर्किंग होने के साथ-साथ जब आप एक कवि भी होते हैं, तो आपकी कविताएं भी किस तरह बदल जाती हैं, इस पर लवली कहती हैं,अभी बेटी दो साल सात महीने के क़रीब है. बहुत अधिक समय और ध्यान चाहती है. जब वह पैदा हुयी थी तब लगभग एक साल मैंने कुछ खास नहीं लिखा था. मैं न्यूकिलीयर फैमिली में रहती हूं. मुझे पति के अलावा किसी और का कोई सहयोग बच्चे को पालने में नहीं मिला, तो लगभग एक साल तक तो मैं कुछ सोच ही नहीं सकी. छोटी बच्ची के लिए पहले साल बेबीसिटर रखना मुझे अच्छा नहीं लगा और कुछ लॉकडाउन की वजह से हम आर्थिक संकट में भी थे तो सहायक रख भी नहीं सकते थे. बात यह भी थी कि मैं खुद उसके साथ रहना चाहती थी. उसे बढ़ता हुआ देखना चाहती थी. दूसरे साल में चीजें थोड़ी-थोड़ी रस्ते पर आयीं तो मुझे कुछ लिखने-पढ़ने का मौका मिलने लगा. जब वह रात भर सोने लगी तो उसके सोने बाद मैं थोड़ा बहुत लिखने-पढ़ने की स्थिति में आयी. अब भी यही क्रम ज़ारी है. उसके सोने के बाद ही लिखना-पढ़ना हो पाता है. जब पति का वर्क फ्रॉम होम होता है, तब मैं देर रात थोड़ा अधिक काम कर पाती हूं और सुबह लगभग 11 बजे उठती हूं. मेरे जागने से बहुत पहले बेटी जाग जाती है और मेरे पति उसका मेरे जागने तक ध्यान रखते हैं.

लवली के पसंदीदा कवियों की लिस्ट तो बहुत लंबी हैं, लेकिन शमशेर, अज्ञेय, मुक्तिबोध, अनामिका, गगन गिल, मंगलेश डबराल, अशोक वाजपेयी, अरुण कमल और दूसरी भाषाओं में ऑक्टावियो पॉज़, टॉमस ट्रांस्ट्रोमर, दांते, नेरुदा, शिम्बोर्स्का, वयखौ, लोर्का, रिम्बो और पेसोआ का नाम वह खुश होकर उत्सुकता से लेती हैं. ये वे नाम हैं, जिन्हें अपना फेवरेट कहने में लवली बिल्कुल भी संकोच नहीं करतीं. किताबें लवली को बहुत प्रिय हैं, जिनमें मार्केज की अधिकतर कहानियां या फिर कहें तो उनका पूरा रचना संसार, बोर्हेस की लिखी सभी किताबें, बाशो के हायकू, दांते, विलियम फाकनर के उपन्यास, मार्केज के उपन्यास, काफ्का के उपन्यास और पेसोआ की कविताएं उनके बेहद करीब हैं. वे कहती हैं, इन सभी चीजों ने मुझ पर बहुत गहरा असर डाला है, खासकर काफ्का, मार्केज और बोर्हेस ने.

यदि लवली गोस्वामी को अब तक नहीं पढ़ा है, तो उनकी इन कविताओं को ज़रूर पढ़ें, जिसके बाद उन्हें कब, कितना और कैसे पढ़ना है, पाठक के लिए ये तय करना आसान होगा…

डाकघर
दुनिया के तमाम डाकखाने प्रेम से चलते हैं
और कचहरियां नफरत से.

कोई हैरत नहीं कि डाकघर कम हो गए
और कचहरियां बढ़ती चली गईं.

हम दोनों रोज़ कम से कम एक चिट्ठी
तो एक दूसरे को लिख ही सकते हैं

या फिर तुम मुझे कभी-कभी
कोई किताब भिजवाना.

दुनिया का शब्दकोश
जहां मैं पली-बढ़ी उन मनुष्यों में अहंकार का आदिवास था
इतनी उथली थी उनकी गागर कि बात-बात में छलक जाती थी
कमज़ोर फिनाइल पी लेते
बहादुर तलवार-लाठी लेकर दूसरों को मारने निकल पड़ते.

मैं कभी इतनी बहादुर न हुई
कि मर जाने का सोचूं
मैंने मृत्यु को तवज्जोह देने लायक क्षणों में भी जीवन को चुना
मौत के करीब आदमी के मन में
जीवन के दृश्य होते हैं
मृत्यु के पार क्या है? कौन जानता है.

अपमान के जवाब में मन में हमेशा दुःख रहा प्रतिशोध नहीं
यह भी सोचने की बात है कि
इस दुनिया में आत्मरक्षा के नाम पर
रिवाल्वर का लाइसेंस ख़रीदा जाता हैं
बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं
भय ने बिना शोर किये शब्द की परिभाषा बदल दी
हम कुछ न कर पाए.

कोई गलती इस दुनिया की बुनावट में ही है.
औज़ार गला कर हथियार बनाने के नारे यहां आम हैं
लेकिन कोई नारा यह नहीं कहता कि हथियारों को गलाकर औज़ार बना लो
भाषा के मुहावरों में शौर्य और क्रोध हर जगह ओवररेटेड है
कला बिचारी प्रेम की भांति हर जगह अपमानित
आप गला ठीक से काटना जानने को कला न कह देना
कुछ लोग प्रतिहिंसा को न्याय कह देते हैं.
और प्रेम में डूबे मनुष्य को नकारा
युद्ध के रसिकों को न सन्यासी पसंद आते हैं न प्रेमी.

डिक्शनरी से याद आया, अक्सर मैं यह सोचती हूं
डिक्शनरी सी होनी चाहिए दुनिया
जहां हर लफ़्ज के लिए जगह हो
और हरेक लफ़्ज काम आ सके
दूसरे लफ़्ज के अर्थ को साफ़ करने के लिए.

महामारी के दिनों में
जिल्द की सबसे छोटी कहानी
कभी यह शिकायत नहीं करती
कि लम्बी कहानी ने
उसका हक़ मार लिया

एक छोटी ज़िन्दगी का सत्व
सौ साल जीने वाला कोई चुरा नही सकता है.

आज जब आने वाले दिन
कागज़ पर पानी लगकर
फैली स्याही जैसे हो गए हैं
कोई इबारत पढ़ी नहीं जा रही.

अगर ये जीवन के अंतिम दिन हैं तो
तुम्हे प्यार करते हुए मरना चाहती हूँ.

मृत्यु से पहले
एक कथा में मैं ऐसा किरदार हूंगी
जिसे बाल संवारने से नफ़रत है
तुम अपनी उंगलीयों के पोर पर
केश-तैल की कटोरियां ऊगाना.

कड़ी धूप में चप्पल के नीचे रहने वाले
विनम्र अंधेरे की तरह
हरी पत्ती के नीचे
मासूम नींद सो रही तितली की तरह
हम कुछ वक्त छाया और सुख में रहेंगे

आज के बाद पूरी ज़िन्दगी
हम एक गीत गुनगुनायेंगे
और सब जान जायेंगे यह रहस्य कि कगार पर खड़े वृक्ष हैं हम
सांझ की बेला हमारी छायाएं आगे बढेंगी
एक दूसरे से लिपट जायेंगी.

राहत की एक सांस बनकर आएगी मृत्यु
जो हमने भोगा
हमें एक दूसरे से हमेशा के लिए जोड़ देगा.

आदतें- जैसी मैंने देखीं
पत्ती कांप कर एक सांस खींचती है
फिर गिर जाती है
हरापन एक आदत है, बदरंग होकर गिर जाना, एक फैसला.

कुछ इच्छाओं को हमने कभी नहीं पहना
वे वार्डरोब में पड़ी-पड़ी बदरंग हो गयीं

जिन इच्छाओं को हम जी भर पहन कर घूमे
वे अब कई जगह से फट गयी हैं.

एक पत्थर इसलिए खफ़ा है कि
नदियों ने उससे किनारा कर लिया

एक दीवार दीमकों से डरकर
असमय खुद को ढहा लेना चाहती है.

काया के तल में गहरे बैठता जाता है दुःख
इसलिए उम्र बढ़ने के साथ आदमी धीमा हो जाता है

चलते समय उसके पांव जमीं पर नहीं पड़ते
खुशियां, आदमी को हल्का कर देती हैं.

हम ऐसी जलधार हैं, जिन्हें हिचकियां आती हैं
लेकिन हम अपने मुहानों तक कभी लौट नहीं पाते

एक दिन मैं पत्तों को झिंझोड़कर जगाऊंगी
उनसे पूछूंगी, क्या तुम परिंदों को देखकर बहक गए थे
जब उड़ने के लिए तुमने टहनी से छलांग लगा दी?

माँ के लिए
तुम ईश्वर का बनाया साज हो माँ
मैं झंकार की तरह अलग हुई तुमसे
और दुनिया में गूंजी.

साज़ का कोई महत्व नहीं
अगर उससे ध्वनि अलग न हो.

मत शिकायत करना उस चोट की
जिसने तुम्हे अलग किया मुझसे.

बेटी के लिए
तीसरे महीने तुमने पहली बार संवाद किया
एक रात मेरे पेट में खूब तितलियां उड़ाईं
बुलबुले बनाये.

पहली बार किसी ने भीतर से
छूकर मुझे गुदगुदाया
मैं आधी रात उठकर हंस रही थी.

तुम्हे स्वाद महसूस होने लगा
तुम लड्डू खाने की जिद करती
जिद पूरी होने तक खूब लात-घूंसे चलाती.
नियम से रात दो बजे जागती
पूरी रात खेलकर सुबह सो जाती.

जब तुम्हे प्यास लगती
अपनी नन्ही जीभ से तुम
गर्भाशय की अंदरूनी दीवारें चाटती थी

पूरी दुनिया महामारी से त्रस्त थी
हम दोनों के दिल मेरी देह में एक साथ धड़कते थे
बिना शब्द बिन आवाज तुम कहती
एक सांस के लिए भी तुम अकेली नही हो माँ
हर पल हम एक दूसरे के साथ हैं.

जीवन के हर दुःख से बड़ा था
मेरे भीतर पल रहा
कुछ सेंटीमीटर का तुम्हारा नन्हा शरीर.
दुनिया का वितान
तुम्हारे तलवों से छोटा था.

मैं तुम्हे गोद में लेकर चलती हूं
मुझे महसूस होता है घोर अंधियारे में
मैंने बांहों में एक कंदील थाम रखी है.

मेरी कोख से पहले
तुम मेरी इच्छाओं में आयी.

लवली गोस्वामी की कविताएं साहित्य जगत का ध्यान तब और दिलचस्प तरीके से अपनी ओर खींचता है, जब समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार आशोक वाजपेयी उन पर बात करते हैं… वे कहते हैं, लवली गोस्वामी की कविताएं प्रेम में अप्रत्याशित आनंद की झलक देती हैं. वहीं दूसरी तरफ, आज के समय के पसंदीदा कवि गीत चतुर्वेदी ‘उदासी मेरी मातृभाषा है’ को पढ़ते हुए कहते हैं, लवली गोस्वामी उन प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में हिंदी के गंभीर साहित्यिक समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. उन्होंने बहुत कम समय में ये हासिल किया है. इनकी कविताओं को पढ़ने के बाद, यह आश्चर्य की बात नहीं कि वह उदासी को अपनी मातृभाषा कहती हैं. जब किसी कवि की पहली किताब इतनी गहरी होती है, तो उनसे उम्मीदें होना स्वाभाविक है. आने वाले सालों में हिंदी कविता जगत यकीनन लवली गोस्वामी को उम्मीद और गर्व की दृष्टि से देखेगा. साथ ही आधुनिक हिंदी कविता के समकालीन कवि अरुण कमल लिखते हैं, लवली की कविताएं कविता में एक नई झलक दिखाती हैं, इनकी कविताएं बताती हैं, कि हिन्दी में बहुत कुछ नया लिखा जा रहा है…

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