कविताएं नाद पैदा करती हैं जिससे हम सब झंकृत होते हैं – कन्नड़ कवि एचएस शिवप्रकाश

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साहित्य अकादमी ने अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘लेखक से भेंट’ में प्रख्यात कन्नड़ और अंग्रेजी कवि तथा नाटककार एचएस शिवप्रकाश को आमंत्रित किया. एचएस शिवप्रकाश ने अपनी कन्नड़ और अंग्रेजी कविताओं का पाठ किया. उन्होंनेत श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए. ‘लेखक से भेंट’ कार्यक्रम के आरंभ साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने एचएस शिवप्रकाश का स्वागत करके किया. सचिव ने शिवप्रकाश के रचना संसार पर प्रकाश डाला.

एचएस शिवप्रकाश ने कहा कि कविता एक अविस्मरणीय नाद पैदा करती हैं जिससे हम सब झंकृत होते हैं. उन्होंने कहा कि अपने लेखन के प्रारंभ में वे कविताएं स्वान्तः सुखायः, यानी एक तरह से अपने को लिखे गए प्रेम-पत्र थे. लेकिन धीरे-धीरे इनमें बदलाव आया और यह अलग-अलग रूप ग्रहण करती गईं. उन्होंने अपनी लंबी कविताओं को एकालाप बताते हुए अपने प्रथम संग्रह से मिलेरेप्पा कविता प्रस्तुत की.

एचएस शिवप्रकाश ने ‘आल अबाउट मी’, ‘द चाइल्ड एंड द फूड स्टॉल’, ‘व्हाट माई फॉदर सेड’, ‘इफ यू हेड नॉट बीन देयर’, ‘थ्री ब्लाइंड मैन’, ‘वेन माई गुरु लेफ्ट द वर्ल्ड’ आदि कविताओं का पाठ भी किया.

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एचएस शिवप्रकाश की रचनाओं का अंग्रेजी, फ्रेंच, इतालवी, स्पेनिश, जर्मन, पोलिश, हिंदी, मलयालम, मराठी, तमिल और तेलुगु सहित कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है. उनके नाटकों का प्रदर्शन कन्नड़, हिंदी, मैतेई, राभा, असमिया, बोडो, तमिल और मलयालम में किया गया है. एचएस शिवप्रकाश वचन साहित्य, भारत के भक्ति आंदोलन और सूफी और अन्य रहस्यवादी परंपराओं के भी जाने-माने विशेषज्ञ हैं.

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एचएस शिवप्रकाश बर्लिन में सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक भी रहे हैं, जिसे टैगोर केंद्र के रूप में जाना जाता है. टैगोर केंद्र को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) द्वारा संचोलित किया जाता है.

एचएस शिवप्रकाश ने महज नौ साल की उम्र में पहली कविता लिखी थी. इसके बारे में वह बताते हैं कि एक बार एक आदमी एक मोर लेकर आया. वह मोर का नाच दिखाकर पैसे मांग रहा था. जब उन्होंने मोर की तरफ देखा तो अनायास ही एक कविता उनके दिमाग में आ गई. वह उनकी पहली कविता थी. शिवप्रकाश बताते हैं कि जब उन्होंने इस कविता को अपने पिता को दिखाया तो उन्होंने इसमें बहुत सारे बदलाव कर डाले और उसे प्रकाशित भी करवा दिया. लेकिन पिता द्वारा कविता में बदलाव किए जाने पर वह नाराज हो गए.

एचएस शिवप्रकाश की माता तमिलनाडु से थीं. वह उन्हें संत कवियों की कहानियां, तमिल महाकाव्य और तमिल में भक्ति गीत सुनाया करती थीं. इस तरह काव्य के संस्कार मां के माध्यम से शिवप्रकाश में आए.

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