एलएचबी कोच की वजह से बालासोर ट्रेन हादसे में बचीं सैंकड़ों की जान, क्‍या है यह तकनीक

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नई दिल्‍ली. ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे में 288 लोगों की जान चली गई और करीब 1000 से अधिक लोग घायल हुए. अगर दोनों ट्रेनों में लगे कोच एलएचबी न होते तो आंकड़ा और बढ़ जाता. यह बात स्‍वयं रेलवे बोर्ड की सदस्‍य (ऑपरेशन और बिजनेस डेवलपमेंट) जया सिन्‍हा वर्मा ने कही है. ट्रेनों में दो तरह के कोच लगते हैं एक एलएचबी और दूसरा आईसीएफ. दोनों के निर्माण में इस्‍तेमाल होने वाली तकनीक में अंतर है. आइए जानें दोनों तकनीकों में क्‍या फर्क होता है.

एलएचबी कोच

लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच को बनाने की फैक्ट्री कपूरथला, पंजाब में स्थित है और सबसे पहले कोच 2000 में तैयार किया गया था. एचएलबी कोच ये कोच यात्रियों के लिए काफी आरामदायक होते हैं. दुर्घटना की स्थिति में ये कोच कम क्षतिग्रस्त होते हैं और यात्रियों के सुरक्षित रहने की संभावना अधिक रहती है. राजधानी, शताब्दी और दुरंतो जैसी ट्रेनों में एलएचबी कोच ही लगाए गए हैं. दुर्घटना के दौरान कोच एक दूसरे से टकराने के बाद सीधे खड़े होते हैं और फिर अपनी स्थिति में लौट आते हैं. एक ट्रेन में अधिकतम 22 कोच ही लग सकते हैं. ये स्टेनलेस स्टील की वजह से हल्के होते हैं. इसमें डिस्क ब्रेक का प्रयोग होता है. इसके रखरखाव में कम खर्च होता है. इसमें बैठने की क्षमता ज़्यादा होती है स्‍लीपर में 80, 3एसी -72 होते हैं.

आईसीएफ कोच

इंटीग्रल कोच फैक्ट्री ( आइसीएफ) सामान्य होता है और इसमें सफर करने के दौरान कोच में कंपन ज्यादा होती है. साथ ही ट्रेन की स्पीड के साथ शोर भी काफी होता है. कोच में बर्थ की संख्या कम होती है, लेकिन एक ट्रेन में अधिकतम 24 कोच लग सकते हैं, जिससे एक ट्रेन में 3 अनारक्षित कोच लगाए जा सकते हैं. इसमें एयर ब्रेक का प्रयोग होता है. इसके रखरखाव में ज़्यादा खर्चा होता है.  इसमें बैठने की क्षमता कम होती है स्‍लीपर में 72, 3एसी -64 और ये कोच एलएचबी से 1.7 मीटर छोटे होते हैं. दुर्घटना के बाद इसके डिब्बे एक के ऊपर एक चढ़ जाते हैं क्योंकि इसमें Dual Buffer सिस्टम होता है.

Tags: Odisha Train Accident, Train accident

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