एक पूर्व भारतीय राष्ट्रपति की वो किताब जिसने तहलका मचा दिया

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हाइलाइट्स

किताब में जैल सिंह और राजीव गांधी के बीच पैदा हुए कटु संबंधों के साथ सियासी साजिशों का जिक्र
कांग्रेस का एक असंतुष्ट सांसद वेंकटरमन के पास आया और राजीव गांधी की सरकार गिराने में मदद मांगी
तत्कालीन राष्ट्रपति जैल सिंह ने भी राजीव गांधी की सरकार गिराने के लिए वेंकटरमन को बुलाया और टटोला था

13 जून 1987 को विपक्षी दलों के एक नेता ने कहा कि वह मुझसे मिलना चाहते हैं. जब वे मिलने आए तो कहा कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर फौरन किसी और को प्रधानमंत्री बनाने का मन बना चुके हैं, विपक्ष के साथ साथ कांग्रेस के भी एक बड़े समूह की राय है कि प्रधानमंत्री आपको बनना चाहिए. मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता था, इसलिए मैने बहुत बेचैन से बचाव का रास्ता ढूंढने की कोशिश की. लगा कि एक रास्ता है. मैने उस नेता से एकदम सामान्य ढंग से कहा कि कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए ही मेरे नामांकन की पेशकश मेरे पास आई है. मैने इसे स्वीकार कर लिया है. हालांकि ये तब तक सही नहीं था. पर इससे काम तो हो गया. विपक्ष के नेता ये कहते हुए चले गए, मुझे खुशी है कि पिछले कई महीनों में कांग्रेस ने एक सही काम किया है और मैं आपकी स्थिति समझता हूं.

इस तरह के तमाम खुलासे जब भारत के नौवें राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमण ने जब अपनी किताब “माई प्रेसीडेंशियल ईयर्स” में किए तो ये किताब सियासी जगत से लेकर आम पाठक के बीच तहलका मचाने लगी. शायद किसी को ये उम्मीद नहीं रही होगी कि वेंकटरमन लीक और अपने स्वाभाव से परे जाकर ऐसी कोई किताब लिखेंगे और भारतीय के ना जाने कितने चेहरों को बेनकाब कर देंगे. 90 के दशक के शुरू में ये किताब काफी चर्चा का विषय बनी रही.

वेंकटरमन ने लिखा, “जिस दिन विपक्ष के नेता उन्हें प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव देने पहुंचे थे, उसके अगले दिन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, कमलापति त्रिपाठी और अन्य कई नेता उनके घर आए. कांग्रेस के संसदीय बोर्ड ने मुझे राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी उम्मीदवार बनाने का फैसला कर लिया था, ये लोग बस उसी की औपचारिक सूचना देने आए थे. मैने उन लोगों का धन्यवाद दिया और कहा, कांग्रेस पार्टी ने मुझमें जो विश्वास जाहिर किया है, उससे मैं काफी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं. तब त्रिपाठी ने चुटकी ली, मैं उम्मीद करता हूं कि आप प्रधानमंत्री को बर्खास्त नहीं करेंगे. मेरा जवाब था, मैं संविधान को बर्खास्त नहीं करूंगा.”

वेंकटरमन को हमेशा चुप रहने वाला और विवादों से कोसों दूर रहने वाला राजनेता समझा गया. हर काम को संविधान के दायरे में करने वाले शख्स थे वो. उन्हीं के कार्यकाल में देश ने तीन प्रधानमंत्री देखे. वो मृदुभाषी थे और काम से काम रखने वाले शख्स. उन्होंने अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति जैल सिंह की तुलना में अपना टर्म बगैर किसी विवाद के निपटाया. लेकिन उनकी किताब ने धमाका जरूर किया. लेकिन किताब लिखने के बाद हमेशा की तरह इस बार भी वेंकटरमन ने इस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं की.

“माई प्रेसीडेंशियल ईयर्स” किताब एक तरह से उनकी आत्मकथा भी है. उन्होंने लिखा, “राजमंदम गांव से दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा लंबी रही. मैने एकदम नीचे से शुरू किया. ट्रेड यूनियन का अधिवक्ता बना. बाद में इसी की मदद से एक ट्रेड यूनियन नेता के तौर पर जगह पाई. भारत छोड़ों आंदोलन में जेल गया. फिर कांग्रेस संगठन से एकदम सामान्य कार्यकर्ता से सांसद बना. हरेक पायदान पर पैर रखते हुए शिखर तक पहुंचा.”

जब आठवें राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन पद से हटे तो उन्होंने एक आत्मकथात्मक किताब लिखी माई प्रेसीडेंशियल ईयर्स. इस किताब में तमाम ऐसे खुलासे थे, जिससे 90 के दशक की शुरुआत में भारतीय राजनीति में सनसनी फैल गई.

उन्होंने लिखा, राष्ट्पति जैल सिंह का कार्यकाल खत्म होने से करीब एक साल पहले मैं भारत के उपराष्ट्रपति की हैसियत से बोत्सवाना की सरकारी यात्रा से लौटा था कि मुझे प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पहली बार ये संकेत दिया कि वो भारतीय राष्ट्रपति के तौरतरीकों से खुश नहीं हैं. अंदर ही अंदर चल रहा मनमुटाव तब सतह पर आ गया जबकि राष्ट्रपति से मुलाकात और उन्हें सूचनाएं देने की परंपरा की शुरुआत राजीव सरकार कर चुकी थी. जब प्रेस ने उनसे इस बारे में पूछा तो उनका जवाब था, मैं सैकड़ों मामलों में परंपराओं से अलग रहा हूं.

मैने उस मामले को राज्यसभा में उठाने की इजाजत नहीं दी

हालांकि प्रधानमंत्री ने जब संसद में ये कहा कि वो राष्ट्रपति से नियमित मुलाकात करते हैं और सारे महत्वपूर्ण मामलों की जानकारी देते हैं तो संकट वास्तव सतह पर आ गया. 13 मार्च 1987 को इंडियन एक्सप्रेस ने एक चिट्ठी प्रकाशित की, जिसके बारे में दावा किया गया कि उसे राष्ट्रपति ने भेजा है. इसमें राजीव गांधी के बयान को चुनौती दी गई थी. ये मामला राज्यसभा में उठाया गया और राज्यसभा के सभापति के तौर पर मुझे तय करना था कि राष्ट्र और सरकार के प्रमुख के पत्राचार का मामला संसद में उठाया जा सकता है या नहीं और उस पर चर्चा हो सकती है या नहीं. मैने इस विषय पर चर्चा की इजाजत नहीं दी.

05 साल पहले भी मेरे नाम पर विचार हुआ और कट गया

ये मार्च 87 का समय था. इसके बाद नए राष्ट्रपति के लिए विपक्षी दलों से विचार – विमर्श की प्रक्रिया सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने शुरू की. कम्युनिस्ट पार्टियां चाहती थीं सार्वजनिक जीवन के प्रमुख लोगों को मौका दिया जाए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्णअय्यर और प्रख्यात फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे का नाम रखा. कांग्रेस पार्टी में कई नाम हवा में थे, जैसे – पीवी नरसिंहराव, सांसद मरागथम, चंद्रशेखर और केंद्रीय मंत्री बी शंकरानंद. कई और नाम अटकलों में थे. इसमें मेरा नाम भी था. हालांकि बहुत पहले 1982 में मेरे नाम का प्रस्ताव हो चुका था, इस पर फैसला भी हो चुका था लेकिन आखिरी क्षणों में ये बदल गया.

पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमन अपनी हालैंड के आधिकारिक यात्रा के दौरान संबोधन करते हुए (courtesy – rashtrapati sachivalaya)

क्यों जैल सिंह और राजीव गांधी के बीच ठन गई

अपनी किताब में पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं, राष्ट्रपति जैल सिंह के कार्यकाल के अंतिम कुछ महीने तनाव, कटुता और विवाद से भरे थे. मैं जैल सिंह या राजीव गांधी के बीचे मनमुटाव का वास्तविक कारण नहीं जान पाया हूं. अनबन के जो कारण सार्वजनिक तौर पर बताए गए, वो सर्वविदित हैं. ये थे – प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को नियमित सूचनाएं देने नहीं जाते थे. उनकी उपेक्षा और अनादर करते थे और ये भी कि उन्होंने राष्ट्रपति की राजकीय विदेश यात्राओं को भी हरी झंडी नहीं दी थी. ये भी कहा गया कि अपने एक संयुक्त सचिव का कार्यकाल नहीं बढ़ाने पर राष्ट्रपति चिढ़ गए थे. बार-बार मांगने पर भी गृह मंत्रालय ने उन्हें इंदिरा गांधी हत्या के मामले में ठक्कर आयोग की रिपोर्ट की कापी नहीं दी. समझा गया कि प्रधानमंत्री ने संविधान की धारा 78 का उल्लंघन किया है. जो ये कहती है कि प्रशासन संबंधी सूचनाएं और विधि निर्माण के प्रस्ताव राष्ट्रपति जब मांगे, प्रधानमंत्री को उसे उन्हें मुहैया कराना चाहिए.

जैल सिंह दूसरा टर्म चाहते थे

राजीव गांधी की परेशानियां बढ़ने लगी थीं. जहां तक जैल सिंह का सवाल है तो उन्होंने राज्यों की अपनी विदा यात्राएं करनी शुरू कर दीं. उन्होंने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की कई यात्राएं कीं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगडे और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के व्यवहार से ऐसा लगा कि वो फिर जैल सिंह को राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं. उन्हें अगले कार्यकाल के लिए समर्थन दे सकते हैं. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के मनमुटाव और रक्षा सौदों में ऊंचे पदों पर भ्रष्टाचार के बढ़ते आरोपों का विपक्ष ने फायदा उठाया और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत प्रधानमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत मांगने के लिए जैल सिंह को एक ज्ञापन दिया.

भारत के आठवें राष्ट्रपति आर वेंकटरमन राष्ट्रपति भवन में पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से मिलते हुए. (courtesy – rashtrapati sachivalaya)

अफवाह थी राष्ट्रपति पीएम से इस्तीफे के लिए कहेंगे

किताब कहती है, अफवाह थी कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को बर्खास्त करके किसी ओर उनकी जगह नियुक्त कर सकते हैं. ऐसा माहौल था कि 08 जून 1987 को एक वरिष्ठ कांग्रेस सांसद (राजीव के विरोधी) ने मुझसे मुलाकात की. उन्होंने कहा कि हरियाणा के चुनाव कांग्रेस के खिलाफ जाएंगे और भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर संभव है कि राष्ट्रपति अब प्रधानमंत्री से इस्तीफा देने के लिए कहें.

अंसतुष्ट कांग्रेसी ने मुझसे प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव रखा

उन्होंने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री अगर उसके लिए तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपति उन्हें बर्खास्त कर देंगे और किसी और को प्रधानमंत्री नियुक्त कर देंगे. इसके अलावा नया प्रधानमंत्री संसद भंग करने की सलाह भी दे सकता है. इसके बाद उन असंतुष्ट कांग्रेसी नेता ने आखिरी दांव लगाया. मुझसे कहा कि सभी असंतुष्टों की राय में अगर मैं प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हो जाऊं तो राष्ट्रपति की कार्रवाई पक्की हो जाएगी.

मैं उन कांग्रेसी नेता की बात पर हैरान रह गया

मैं भौचक्क रह गया. बहरहाल मैने खुद संभालते हुए उन सांसद महोदय को ये बताने की कोशिश की कि ये पूरी योजना सोच समझकर नहीं बनाई गई है क्योंकि राष्ट्रपति तब तक प्रधानमंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास हासिल है. इस पर उक्त सांसद ने रहस्योदघाटन किया कि पार्टी के 240 से ज्यादा सांसद (जिनके नाम उन्होंने टाइप करा रखे थे) प्रधानमंत्री के खिलाफ हैं और अपना विरोध दर्ज कराने के लिए मौके के इंतजार में हैं. उन्होंने सलाह दी कि संवैधानिक स्थिति के मामले में मैं एक खास विधि विशेषज्ञ से बात कर लूं. मैने उन्हें याद दिलाया कि इस विशेषज्ञ को मैं भी जानता हूं और वो एक प्रख्यात वकील भी हैं लेकिन बर्खास्तगी के मामले पर राष्ट्रपति की अधिकार सीमा को लेकर मैं अपने विचार पर दृढ़ था.

उन्होंने कहा मैं जैल सिंह से मिल लू

पर वह कांग्रेस सांसद हार मानने को तैयार नहीं थे. मैने जब उनसे कहा कि इस तरह की साजिशों में मैं किसी भी तरह शामिल नहीं हो सकता और ना ही मेरा ऐसा कोई इरादा है, तो उन्होंने मुझसे कहा कि आपको देश की चिंता करनी चाहिए. उसके बाद एक लंबी चुप्पी छाई रही आखिरकार वो ये कहकर चले गिए मैं जैल सिंह से मिल लूं. मैने ये सोचकर हां के अंदाज में सिर हिला दिया कि राष्ट्रपति मुझे नहीं बुलाएंगे.

अगले दिन जैल सिंह ने मुझको बुला ही लिया

.., पर उन्होंने मुझे बुलाया, बिल्कुल दूसरे ही दिन. सुबह 11 बजे मुझे बताया गया कि राष्ट्रपति अस्वस्थ हैं और फिर मुझे पहली मंजिल पर उनके निजी अपार्टमेंट में ले जाया गया. जहां मैने उन्हें अनौपचारिक पोशाक में देखा. मैने उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ की. उन्हें अपनी हाल की स्विट्जरलैंड यात्रा के बारे में बताया. फिर उन्होंने मुझसे सीधा सवाल किया कि क्या कांग्रेसी सांसद ने मुझसे मुलाकात की है या नहीं. मैने कहा, मुलाकात हुई है. वो इंतजार करते रहे कि मैं आगे कुछ कहूं पर मैं चुप रहा और ये चुप्पी असह्य हो गई.

मैने जैल सिंह को सलाह दी कि वो इससे दूर रहें 

राष्ट्रपति उन सांसद की सलाह पर मेरी राय जाननी चाही. मैने तकरीबन उनसे साफ साफ कहा मैं इसमें शामिल नहीं हूं और ना ही मेरा कोई इरादा है और ये भी सांसद का आंकलन एकदम काल्पनिक है. तब जैल सिंह ने कहा कि कांग्रेसी सांसद की बातचीत से उन्हें लगा था कि मैं उनके कार्यकलाप में उनके साथ रहूंगा. मैने कहा, ज्ञानी जी आप मुझे अच्छी तरह जानते हैं और मैं कभी गुपचुप होने वाली गतिविधियों में शामिल नहीं होता हूं और ना ही उसमें सहयोग देता हूं. साथ ही मैने जैल सिंह को सलाह दी कि वो खुद की गरिमा बनाए रखें. उन्होंने भी आश्वस्त किया कि वो असंतुष्टों की गतिविधियों को महज सुन रहे हैं और उन्हें समर्थन नहीं दे रहे. हम दोनों में ये बात पूरी तरह गोपनीय रखने पर सहमति हुई.

वह दुराग्रही सांसद फिर मिलने नहीं आए

वह दुराग्रही सांसद फिर आए. मुझसे मुलाकात की. मैने फिर उनसे कहा कि ऐसी घृणित चालों में शामिल होने का मेरा कोई इरादा नहीं. इसके बावजूद उन्होंने दबाव डाला कि मैं संवैधानिक विशेषज्ञ से मिल लूं और मैने उसी दिन उनसे फोन पर बात करके कहा, विधि विशेषज्ञ से मिलने का मेरा कोई इरादा नहीं है. इसका उन पर फर्क पड़ा और फिर वो मुझसे मिलने नहीं आए.

Tags: President of India, Presidential election 2022, Rashtrapati bhawan, Rashtrapati Chunav

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