मौसी ने दिया सहारा..तो बेटी ने रचा इतिहास, नृत्य कला से बढ़ाया भारत का गौरव, विदेशों में भी बनाई पहचान

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कृष्णा कुमार गौड़/जोधपुर:- आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है और आज के दिन महिलाओं के सम्मान में कई आयोजन पूरे देशभर में किए जा रहे हैं. मगर आपको हम ऐसी महिला शक्ति के जीवन संघर्ष से अवगत कराएंगे, जिन्होंने एक नहीं, बल्कि 75 से भी अधिक देशों में न केवल राजस्थान की संस्कृति का परचम फहराया, बल्कि विदेशियों तक को अपनी कला के दम पर नांचने और थिरकने पर मजबूर कर दिया है.

हम आपका परिचय एक ऐसी कालबेलिया कलाकार से कराने वाले हैं, जिसने अपने बचपन में न तो बिजली देखी और न ही पानी की सुविधा देखी. जब तक होश संभाला, तब तक माता-पिता का साया उठ गया. मगर इस कलाकार ने हार नहीं मानी और काफी संघर्ष के बाद आज इंटरनेशनल फेम बन गई हैं.

50 से अधिक देशों में दिया प्रशिक्षण
कालबेलिया नृत्यों को विश्व में अनूठी पहचान दिलाने में कई कलाकारों का योगदान रहा है, जिसमें ओसियां के पली गांव की सेनू सपेरा का योगदान किसी परिचय का मोहताज नही है. लगभग 70 देशों में कालबेलिया कला को बढ़ावा देने के लिए वे अपनी पूरी टीम के साथ पिछले 17 सालों से जुटी हुई है. लगभग 50 से अधिक देशों में उन्होंने विदेशियों को कालबेलिया का प्रशिक्षण भी दिया है.

75 से अधिक देशों में बनाई पहचान
कभी अपने कबीले तो कभी शादी ब्याह और बाद में राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी भावभंगिमाओं को आकर्षक कालबेलिया नृत्य करते हुए उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया. सेनू सपेरा आज 75 से अधिक देशों में इस नृत्य से अपनी अनूठी पहचान बना चुकी हैं. बिना किसी स्कूल और कॉलेज गए, अनुभव ने सेनू सपेरा को अच्छी अंग्रेजी बोलना भी सिखा दिया है. कालबेलिया पोशाक पहनकर अब वो फर्राटे से अंग्रेजी बोलती हैं.

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संघर्ष से मिली कामयाबी की ऊंचाई
सेनू सपेरा की कामयाबी के पीछे कई तकलीफे और लम्बा सफर जुड़ा हुआ है. पली गांव की झोपड़ियों में बड़ी हुई सेनू जब छोटी थी, तभी माता-पिता का साया सिर से उठ गया था. सेनू को उनके भाई और मौसी ने पाल पोसकर बड़ा किया और यहीं उन्होंने जो कालबेलिया नृत्य का गुण सिखा, उसी से अपनी पहचान बनाई. जब सेनू विदेश से भारत आती हैं, तो कई हफ्ते अपनी उसी झोपड़ी में वक्त बिताती हैं और कहती भी हैं कि उन दिनों के संघर्ष ने आज कामयाबी की ऊंचाई तक पहुंचाया है.

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