इस महिला ने 10-10 रुपए जमा कर.. शुरू किया बिजनेस, इस योजना का मिला साथ, आज कमा रही लाखों

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दीपक कुमार/बांका. बिहार का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां जीविका का समूह ना हो. महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में जीविका का अहम योगदान है. जीविका ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है. जीविका ने उन महिलाओं के लिए जिंदगी का सहारा बनने का काम किया है, जो कभी घर की दहलीज को लांघ नहीं पाती थी. जीविका की ओर से छोटी सी आर्थिक मदद ने अनगिनत महिलाओं की जिंदगी संवारने का काम किया है. जीविका रोजगार उपलब्ध कराने से लेकर ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त भूमिका अदा कर रहा है. बांका जिला अंतर्गत फुल्लीडुमर प्रखंड स्थित खेसर पंचायत के पुरानी राता गांव की सोनी देवी जीविका से जुड़कर अपनी जिंदगी को संवार रही हैं. शादी से पहले, प्रियंका के पास घर के अलावा कोई काम नहीं था. जीविका से जुड़ने के बाद मोमबत्ती बनाने का काम शुरू किया. अब इससे अच्छी कमाई भी कर रही हैं.

सोनी देवी ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि पहले सिर्फ एक ग्रहणी थी, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने से परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था. इसके बाद जीविका से जुड़कर 10-10 रुपए की बचत कर 8 साल पहले यूको आरसेटी से प्रशिक्षण लेने के बाद मोमबत्ती बनाने का काम शुरू किया. जीविका ने जिंदगी को बदलने का काम किया है. जीविका ने ना सिर्फ आर्थिक तरक्की में मदद की बल्कि स्वावलंबी और व्यावहारिक बनाने में भी योगदान दिया. जीविका से जुड़ने के बाद गृह कार्य के साथ-साथ धंधा भी चला रहे हैं. उन्होंने बताया कि मोमबत्ती का व्यवसाय इसलिए चुना क्योंकि इस इलाके में बिजली की समस्या थी. जब बिजली चली जाती थी तो अंधेरे में रहना पड़ता था. इसलिए सोचा क्यों ना मोमबत्ती का उद्योग लगाया जाए और दूसरे के घरों को भी रोशन किया जाए.

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दीपावली के दौरान डिमांड पूरी करना हो जाता है मुश्किल
सोनी देवी ने बताया कि फिलहाल 10 प्रकार की मोमबत्तियां बना रही हैं. साइज और आकार पर ही मोमबत्ती का रेट निर्भर करता है. उन्होंने बताया कि मोमबत्ती बनाने के लिए कोलकाता, दिल्ली और बनारस से रॉ-मटेरियल मंगवाते हैं. मोमबत्ती बनाने के लिए मोमबत्ती मॉम का रॉ मैटेरियल को चूल्हे पर गर्म कर गलाया जाता है. इसके बाद फर्मा में धागा लगाकर गले हुए रॉ मैटेरियल को डालकर छोड़ दिया जाता है. करीब 10 मिनट के बाद फर्मा को खोलकर मोमबत्ती की कटिंग की जाती है. इस प्रक्रिया के बाद मोमबत्ती तैयार हो जाती है. इसके बाद मोमबत्ती को पैक कर सील कर देते हैं और ऑर्डर के अनुसार बाजार में बिक्री के लिए भेज देते हैं. उन्होंने बताया कि आस-पास के बाजार के अलावा मोमबत्ती बांका, मुंगेर, भागलपुर सहित देवघर भी भेजते हैं. दीपावली के दौरान सर्वाधिक डिमांड रहती है. उस समय इतनी डिमांड हो जाती है कि पूरा करना असंभव हो जाता है. उन्होंने बताया कि दीपावली आने 6 माह पूर्व ही काम करना शुरू कर देते हैं. सोनी देवी ने बताया कि मोमबत्ती का सालाना 10 लाख का कारोबार हो जाता है.

Tags: Banka News, Bihar News, Local18, Women Empowerment

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