स्वाद का सफ़रनामा: अपच और कब्ज को दूर रखती है कचरी, चटनी का नहीं है जवाब, इतिहास और मुहावरे हैं रोचक

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हाइलाइट्स

कचरी की उत्पत्ति रेतीले क्षेत्रों में होना भी माना जाता है.
कचरी के पोषक तत्व शरीर को कब्ज व अपच से दूर रखते हैं.
देहाती इलाकों में कचरी को लेकर कई उक्तियां और मुहावरे चलन में हैं.

Swad Ka Safarnama: कचरी को अगर भारत की देसी सब्जी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. कभी यह खेतों में अपने आप उग जाती थी और इसकी बेल जहां-तहां फैल जाती थी, लेकिन अब इसके पौष्टिक गुणों को देखते हुए देश में इसकी खेती की जा रही है और यह आसानी से बाजारों में भी नजर आती है. इसका सेवन शरीर को अपच और कब्ज से दूर रखता है. कचरी को एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भी भरपूर माना जाता है. माना जाता है कि दुनिया के जितने भी रेतीले क्षेत्र है, वहां कचरी की पैदावार खूब होती है.

अलग प्रकार की खटास ही इसकी विशेषता

कचरी (Cucumis Callosus/Snap Melon) को खरबूजे और खीरे के परिवार की माना जाता है. भारत के अनेक इलाकों में कचरी के साथ हरी मिर्च की स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है. इस सब्जी का स्वाद जबर्दस्त होता है. कुछ इलाकों में तो कचरी से बनी चटनी खूब खाई जाती है. चूंकि कचरी में अलग प्रकार की खटास होती है, इसलिए इसकी लौंजी (खास मसाले डालकर बनाई गई खट्टी-मीठी सब्जी) भी खूब पसंद की जाती है. इसका आकार बहुत छोटे साइज के खीरे से लेकर खरबूजे तक होता है. जमीन पर फैलने वाली बेल के झुंड में जब यह कच्ची होती है तो इसका रंग हलका सा चितकबरा सफेद दिखाई देता है. पकने के बाद इसमें बीज पड़ जाते है और पीलापन नजर आने लगता है. आप हैरान हो सकते हैं कि कचरी से निकलने वाली भीनी गंध आपको आकर्षित कर सकती है.

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कचरी से जुड़े मुहावरे व उक्तियां चलन में हैं

देहाती इलाकों में कचरी को लेकर कई उक्तियां और मुहावरे चलन में हैं. कहा जाता है कि भादो के महीने में बेल पर आने वाले सफेद फूलों से कचरी बनना शुरू हो जाती है और अगर दीवाली के मौसम में यह पूरी तरह पक जाती है और मीठी होने लगती है. तब यह खरबूजे के स्वाद जैसी लगने लगती है. राजस्थान में कहा जाता है कि ‘दियाली रा दीया दीठा, काचर बोर मतीरा मीठा.’ यानी दिवाली के दीये दिखने लगे तो मान लो कि कचरी, बेर और मतीरा मीठा हा गया है. देहात में एक और मुहावरा खूब बोला जाता है. जो व्यक्ति किसी काम को बिगाड़ देता है या हर काम में नुक्स निकालता है, या कोई बंदा हर किसी काम में टांग अड़ाता है उसे ‘काचर का बीज’ कहा जाता है. उसका कारण यह है कि कचरी के बीज में बहुत ही तीखापन होता है और अगर एक बीज को दूध में डाल दिया जाए तो वह उसे फाड़ देता है. ताजी कचरी की सब्जी तो बनती ही है, देहात में काचर का छिलका उतारकर उसे सूखा लिया जाता है और फिर उसके साथ हरी या लाल मिर्च की बनाई चटनी बेहद स्वादिष्ट मानी जाती है.

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पित्त और वात को भी रोकता है इसका सेवन

फूड हिस्टोरियन ने कचरी को बहुत ‘वजन’ नहीं दिया है, उसका कारण है कि सालों पहले इसकी नियोजित खेती नहीं होती थी. इसके बावजूद ऐसा माना जाता है कि कचरी की उत्पत्ति रेतीले क्षेत्रों में हुई है, इनमें अफ्रीकन देश के अलावा भारत भी शामिल है. भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथों में कचरी की विशेषताओं का वर्णन किया गया है. आयुर्वेद से जुड़े निघंटु ग्रंथों में से एक ‘राज निघंटु’ में इसे मृगाक्षी कहा गया है और जानकारी दी गई है कि यह पित्त और वातनाशक है और पुराने जुकाम को दुरुस्त कर देती है. यह स्वाद में रुचिकर है लेकिन पित्त पैदा करती है.

मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन व वैद्यराज दीनानाथ उपाध्याय के अनुसार कचरी को सुखाकर उसका चूर्ण बना लिया जाता है. इस चूर्ण को अन्य बूटियों के साथ बनाकर पेट को दुरुस्त करने की प्रभावी दवा बनाई जाती है. कचरी में एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं और इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व शरीर को कब्ज व अपच से दूर रखते हैं. इसमें प्रोटीन व विटामिन सी भी पाया जाता है, जो शरीर को सामान्य बीमारियों से दूर रखते हैं. यह शरीर को शीतल भी रखती है और गर्मी को पास नहीं आने देती. कचरी को सामान्य तौर पर खाने से शरीर में कोई विकार नहीं होता, लेकिन मात्रा से अधिक खा लिया जाए तो यह पेट खराब कर सकती है. इसका अधिक सेवन गले में खराश भी पैदा कर देता है.

Tags: Food, Lifestyle

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