प्रेम में लगे घावों पर मरहम हैं फ़िराक़ गोरखपुरी के शेर

[ad_1]

अखंड भारत में जब आज से 76 साल पहले फ़िराक़ गोरखपुरी की गज़लें पेशावर से बंगाल तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोकविख्यात हो गईं, तो लाखों लोग ये महसूस करने लगे कि फ़िराक़ साहब का लेखन एक ऐसे सरोवर की तरह है, जिसके चारों ओर शीतल छांव है. इसी छांव की ठंडक को लाखों व्यक्तियों ने उनकी गज़लों को पढ़कर महसूस किया. यही वजह थी कि फ़िराक़ के शेर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में विख्यात हो गए. यहां तक कि अमेरिका, रूस, इंग्लैंड और यूरोप के लोगों की भी निगाहें फ़िराक़ के नाम और उनकी कृतियों पर पड़ने लगीं, जबकि फ़िराक़ या उनकी ओर से किसी और ने उनके काव्य का कोई प्रोपेगंडा नहीं किया था. अनेक समालोचकों ने फ़िराक़ को युग-प्रवर्तक भी माना है. इनका काव्य इतने बरस बाद भी पुराना नहीं पड़ता है, बल्कि जीवंत हो उठता है. इन्हें पढ़ते हुए ऐसा लगता है मानो अक्षर और शब्द आपस में मिलकर लंबी सांसें ले रहे हैं.

उर्दू साहित्य का कल्चर फ़िराक़ गोरखपुरी की गज़लों में नया जन्म लेता हुए प्रतीत होता है. उन्होंने प्रेम को एक सस्ती, सतही और रोने-धोने वाली वासनाओं से बाहर निकाल कर रचा. वैसे तो फ़िराक़ से पहले की उच्चतम उर्दू शायरी में भी सांस्कृतिक मूल्य और मान्यताएं केंद्र में हैं, लेकिन भारतीय और विश्व-संस्कृति का जैसा पुनीत संगम इनकी गज़लों में मिलता है, जिसमें हमारी आत्माएं नहा उठती हैं और फ़िराक़ की वाणी अमृत वाणी बन जाती है. खड़ी बोली की नयी प्रतिध्वनियां इनकी रचनाओं में साफ तौर पर दिखाई और सुनाई पड़ती हैं और यही कारण है कि लाखों-करोड़ों ऐसे लोग जो सिर्फ हिंदी जानते हैं और उर्दू से अपरिचित हैं, फ़िराक़ की तरफ खिंचने लगते हैं.

उर्दू गज़ल का मुख्य विषय वही है जो जीवन का मुख्य विषय है, जिसमें प्रेम और सौंदर्य को प्रमुख स्थान दिया गया है. दुनिया भर की शायरी में प्रेम और सौन्दर्य के संबंधों और प्रतिक्रियाओं की गूंज सुनाई देती है. लेकिन इस गुंजन में जब तक तह-दर-तह गहराई न हो, गगन स्पर्शी उच्चता न हो, विश्व के हृदय की धड़कन न हो, दैवी और सांसारिक अनुभूतियों का समन्वय और संगम न हो, यानी कि जब तक कोई काव्य विश्व व्यापक और विश्व चित्रण करने वाला न हो, तब तक प्रेम काव्य या गज़ल या गज़ल की शायरी में विश्व साहित्य बनने का गुण पैदा नहीं होता. फ़िराक़ गोरखपुरी की रचनाओं में प्रेम-काल संपूर्ण विश्व को अपने आलिंगन में लेता हुआ दिखाई पड़ता है.

आप भी पढ़ें फ़िराक़ गोरखपुरी के वे चुनिंदा शेर, जिन्हें पढ़ने के बाद तकलीफों का बोझ थोड़ा हल्का लगने लगता है-
“एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं”

“ग़रज़ के काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में”

“हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की”

“आए थे हंसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए “

“अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयां”

“बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा’लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई”

“ये माना ज़िंदगी है चार दिन की
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी”

“किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी”

“ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई”

“मैं मुद्दतों जिया हूं किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर”

फ़िराक़ डबडबाई आंखों से प्रेम और सौंदर्य का सच्चे से सच्चा चित्रण करते हैं. ग़म या दु:ख मन मस्तिष्क पर जो दाग धब्बे पैदा कर देता, आंसू उन धब्बों को काफी हद तक धो देते हैं, लेकिन फ़िराक़ ग़म के आंसू अपनी गोद में लिए नज़र आते हैं. इन्हीं आसुओं के कंपन्न की आवाज़ फ़िराक़ की गज़लों और शेरों में हमें सुनाई पड़ती है. इसी गुण को अंग्रेज़ी के कवि मैथ्यू आरनर्ड ने Healing Power का नाम दिया है. फ़िराक़ की शायरी का ये गुण प्रेम के लगाए हुए घावों और ज़ख्मों पर मरहम का काम करता है. ये सच है कि फ़िराक़ को पढ़ने के बाद कई लोगों ने खुद को आत्महत्या तक से बचा लिया. किसी ने कहा है, हर सच्चा कवि ‘फिज़िशियन ऑफ सोल’ होता है, ऐसा ही एक फिज़िशिय भारत और पाकिस्तान में हज़ारों लोगों ने फ़िराक़ की रचनाओं में पाया.

महाकवि कहलाना उसी कवि को शोभा देता है, जो सृष्टि और जीवन के महत्त्व की चेतना और अनुभव लाखों करोड़ों लोगों को दे सके. आज से कई बरस पहले जब फ़िराक़ गोरखपुरी ने काव्य रचना शुरु की तो भारत का पुनरुत्था या पुनर्जागरण अपनी जवानी पर आ रहा था. फ़िराक़ के जीवन में दस-ग्यारह साल की उम्र से ही भारतीयता की केंद्रिक प्रेरणाएं और शक्तियां चुपचाप अपना काम करने लगी थीं. जैसे जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई और उनकी मनोवृत्तियों और आंतरिक-प्रेरणाओं का विकास होता गया. उनके भीतर भारत चेतना प्रबल होती गई. उनके घरेलू जीवन में कुछ घटनाओं का उन पर गहरा प्रभाव पड़ता रहा. बचपन में उनके मास्टर साहब फ़िराक़ के सामने तुलसीकृत रामायण का पाठ किया करते थे, जिससे फ़िराक़ बहुत प्रभावित होते थे. घरवालों और पड़ोसियों द्वारा सुनाई गई भारतीय लोककथाओं का असर उनके ऊपर बहुत गहरा पड़ा और वे भीतर ही भीतर बनते गए. लोक संगीत और लोककथाओं ने उनके ऊपर गहर असर डाला. जिन शक्तियों ने उन्हें कवि, शायर या गज़लकार बनाया, वह काव्य रचना की शक्तियां नहीं थीं बल्कि एक नई तरह की भारत-चेतना की शक्तियां थीं.

Tags: Books, Hindi poetry, Literature

[ad_2]

Source link