पाश की ये कविता मरते हुए सपनों में जान फूंकने का साहस रखती है

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पाश की सुप्रसिद्ध कविता ‘सबसे ख़तरनाक’ मरते हुए सपनों को फिर से ज़िंदा करने का साहस रखती है. इस कविता ने नजाने कितने युवाओं को ज़िंदगी समझने का नज़रिया दिया. पाश ने ये कविता तब लिखी थी, जिन दिनों वे एक पेट्रोल पंप पर काम किया करते थे. पाश जिन दिनों के कवि रहे, राजनीतिक स्तर पर वो एक बड़े उथल-पुथल और बदलावों का समय था और ये उथल-पुथल सिर्फ पंजाब में ही नहीं थी, बल्कि पूरे भारत में फैल गई थी. पाश की सभी कविताएं, अनुवाद के बाद भी अपना असर नहीं खोती हैं, बल्कि और जोशीली हो जाती हैं, झकझोरती हैं, या फिर नींद से जगाती हैं. कहा जाता है कि ये कविता शायद अधूरी ही रही, जिसका पूरा लिखा जाना अब भी बाकी है, लेकिन पाश के बिना मुमकिन नहीं. आप भी पढ़ें पाश की वो कविता, जो पूरी होकर भी अधूरी है…

सबसे ख़तरनाक
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबससे ख़तरनाक नहीं होती

बैठे-बिठाए पकड़े जाना- बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना- बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना- बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना- बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना- बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे ख़तरनाक वह घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी निगाह में रुकी होती है

सबसे ख़तरनाक वह आँख होती है
जो सबकुछ देखती हुई भी जमी बर्फ़ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

सबसे ख़तरनाक वह चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगनों में चढ़ता है
पर आपकी आंखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है

सबसे ख़तरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुंचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडे की तरह अकड़ता है

सबसे ख़तरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआं-हुआं करते गीदड़
हमेशा के अंधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं

सबसे ख़तरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती…”

जब खलिस्तानी आतंकवादियों ने युवा व क्रांतिकारी कवि पाश की कायरतापूर्ण हत्या कर आवाज़ दबानी चाही थी, तब उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि ये हत्या उन्हें ही सबसे अधिक नुक्सान पहुंचाने वाली है. कविता और लेखन के माध्यम से पाश की जो आवाज़ हत्या से पहले सिर्फ पंजाब और पंजाबी भाषा तक सीमित थी, वो हत्या के बाद पूरे देश में फैल गई और सशक्त साबित हुई. 1989 में उनका पहला हिंदी काव्य संग्रह ‘बीच का रास्ता नहीं होता’ आने के बाद बढ़ती लोकप्रियता पाठकों में आज भी बरकरार है. पाश को पंजाबी भाषा कवि से ज्यादा हिंदी भाषा कवि के रूप में अपनाया गया और उनके नाम को निराला, मुक्तिबोध, नागार्जुन व धूमिल जैसे नामों के साथ लिया जाने लगा. इस तरह भारतीय काव्य के संदर्भ में पाश की पहचान एक विशिष्ट भारतीय कवि के रूप में स्थापित हुई. पाश की कविताएं यदि अनुवाद में इतना असर रखती हैं, तो मूल पंजाबी में वो कैसी होंगी इसका सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है.

पाश की पहली कविता 1967 में छपी थी, जबकि पहली कविता उन्होंने पंद्रह साल की उम्र (1965) में लिखी थी. कवि के रूप में पाश 1969 से ही लोगों के बीच पहचाने जाने लगे थे. 1970, जिन दिनों पाश जेल में थे उनका पहला कविता संग्रह ‘लौहकथा’ छपकर आ गया था, जिसमें 36 कविताएं संकलित थीं. इस किताब ने एक सनसनी फैला दी थी. सिर्फ बीस साल की उम्र में पाश पंजाबी के प्रतिष्ठित कवि बन गए थे. 1971 में जेल से बाहर आ गए और 1974 में 46 कविताओं वाला उनका दूसरा कविता संग्रह ‘उड्डदे बाजां मगर’ प्रकाशित हुआ. इस संग्रह को कई यूनिवर्सिटीज़ ने एमए के सिलेबस में पाठ्य पुस्तक के रूप में चुना, साथ ही संघ लोक सेवा आयोग यानि की यूपीएससी ने भी अपनी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम इस संग्रह को लगाया.

पाश का तीसरा कविता संग्रह ‘साडे समियां विच’ 1978 में आया, जिसमें लंबी कविताएं थीं. इसमें 28 कविताओं को संकलित किया गया. इस संग्रह के बाद पाश की शहादत तक उनका और कोई कविता संग्रह नहीं आया. 23 मार्च 1988 में उनकी हत्या हुई और उनकी हत्या के एक महीने बाद यानि कि 24 अप्रैल 1988 में ही उनका एक और कविता संग्रह ‘लड़ंगे साथी’ रिलीज़ किया गया. जिसका विमोचन उनके स्मृति समारोह में हुआ. इसमें उनके पहले तीन कविता संग्रहों से भी कविताएं थीं, साथ ही 23 कविताएं नई कविताएं संकलित थीं, जो पुराने तीन कविता संग्रह में नहीं छपी थीं.

Tags: Books, Hindi Literature, Hindi poetry, Literature, Poet

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