दास्तान-गो : राजेश खन्ना के आख़िरी लफ़्ज़… ‘टाइम हो गया है! पैक अप!’

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दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़… 

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जनाब, हिन्दी सिनेमा के अज़ीम अदाकार हैं अमिताभ बच्चन. उन्होंने साल 2012 में जुलाई महीने की 19 तारीख़ को अपने ब्लॉग पर एक ग़मगीन सा पयाम (संदेश या ख़बर) लिखा था. इसमें बताया था, ‘उनके इंतिक़ाल की ख़बर मिलने के बाद आज दोपहर मैं उन्हीं के घर पर बैठा था. उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देने. तभी उनके एक नज़दीकी सज्जन मेरे पास आए. रुंधे गले से वे बताने लगे- मैं आख़िरी वक़्त में उनके पास ही था. उस वक़्त वे सिर्फ़ इतना ही कह सके थे- टाइम हो गया है! पैक अप!’ अमिताभ बच्चन ने ये पयाम जिनके बारे में लिखा, वे थे राजेश खन्ना. पैदाइश के वक़्त का नाम- जतिन खन्ना. साल 1969 से 1971 के बीच लगातार 15 क़ामयाब फिल्में देने वाले ‘हिन्दी सिनेमा के पहले महा-सितारा’. अब से 10 बरस पहले, साल 2012 में आज यानी 18 जुलाई की ही तारीख़ थी, जब राजेश खन्ना ने इस दुनिया को अलविदा कहा था.

हालांकि इस दुनिया से ज़िस्मानी तौर पर चले जाने के बावज़ूद वे अब भी हमारे बीच बने हुए हैं. उन दिलों में धड़कते हैं, जो बरसों से उन्हीं के लिए धड़का करते हैं. अपने उन चाहने वालों के ज़ेहन में एक ज़िंदा शख़्सियत की तरह समाए हुए हैं, जो उनके लिए कलेजा निकालकर रखने को तैयार रहा करते थे. और यक़ीनन आज भी हैं. उनके ऐसे चाहने वालों में एक अव्वल नाम ख़ुद अमिताभ साहब का भी शुमार होता है. इसकी पुख़्तगी उन्होंने ख़ुद ही की है. जिस पयाम के ज़िक्र से ये दास्तान शुरू हुई है, उसी में अमिताभ साहब आगे लिखते हैं, ‘मैंने पहली मर्तबा उन्हें एक फिल्म मैगज़ीन में देखा था. फिर मेरी उनसे दूसरी मुलाक़ात तब हुई जब मेरी मां मुझे उनकी ‘आराधना’ फिल्म दिखाने ले गईं. इसके कुछ वक़्त बाद मैं ‘आनंद’ पिक्चर में उनके साथ काम करने के लिए ले लिया गया. मेरे लिए यह किसी जादू से कम नहीं था. भगवान के सीधे आशीर्वाद-सा.’

rajesh khanna death anniversary

ब-क़ौल अमिताभ बच्चन, ‘उनके चाहने वालों पर उनकी शख़्सियत का ख़ुमार कुछ इस क़दर छाया था कि स्पेन जैसे ग़ैर-मुल्कों से भी लोग उनकी झलक पाने हिन्दुस्तान आ जाया करते थे. मैंने पहले ऐसा कभी देखा, सुना नहीं था. ऋषि दा (ऋषिकेश मुखर्जी, जिन्होंने ‘आनंद’ फिल्म बनाई) उनके प्रशंसकों को सैट पर आने से रोकते नहीं थे. उन लोगों, या किसी और को भी, जब यह पता चलता कि मैं राजेश खन्ना के साथ काम कर रहा हूं, तो उनकी नज़र में मेरी इज़्ज़त, अहमियत अपने आप कई गुना बढ़ जाया करती थी. हिन्दुस्तान की लड़कियों के लिए तो वे उनके सपनों के राजकुमार थे. वह, जिसको वे अपनी मां से मिलवाने के लिए किसी भी वक़्त तैयार रहती थीं.’ लेकिन जनाब, सिर्फ़ लड़कियों का ही ये आलम हुआ ऐसा कहने से बात पूरी बनती नहीं. क्योंकि क़रीब-क़रीब हर उम्र के लोगों में राजेश खन्ना की दीवानगी क़ायम थी. बल्कि है, आज भी.

यक़ीन न हो तो कभी मुंबई के फोटोग्राफर विलास घाटे जी से मिलिए. इनकी उम्र अभी 64-65 बरस के क़रीब है. बताते हैं कि इनके पास मुख़्तलिफ़ अख़बारों, मैगज़ीन वग़ैरा में राजेश खन्ना के बारे में लिखी गईं 5,000 से ज़्यादा ख़बरें और आर्टिकल वग़ैरा हैं. उनसे जुड़ीं 60 से ज़्यादा किताबें हैं, इनके पास. साल 1969 की ‘आराधना’ का जो पोस्टर पहली बार जारी हुआ था, वह भी है. राजेश खन्ना साहब ने अपनी ज़िंदगी में क़रीब 165 फिल्मों में काम किया. इनमें से 122 की अस्ल (मूल) सीडी हैं विलास जी के यहां. उनकी फिल्मों से जुड़े गानों के लोंग प्लेइंग रिकॉर्ड्स हैं. नायाब क़िस्म की तस्वीरें हैं, जिनमें से कई पर राजेश खन्ना के दस्तख़त हैं. इसके अलावा 80 से ज़्यादा आटोग्राफ कार्ड हैं. बताते हैं, इनमें से कई कार्ड ख़ुद खन्ना साहब ने विलास जी को दिए थे. जी, क्योंकि राजेश खन्ना के लिए विलास जी की दीवानगी आज की नहीं, बल्कि बचपन की है.

आज-कल जब राजेश खन्ना साहब का ज़िक्र आता है न, तो अख़बार-टीवी वाले सबसे पहले विलास जी तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. क्योंकि उन्होंने एक लंबा वक़्त राजेश खन्ना साहब की सोहबत में ही गुज़ारा है. अपनी इसी ख़ासियत के वज़ह से विलास जी अक़्सर सुर्ख़ियों में रहा करते हैं. ऐसे ही कई मौकों पर वे बता चुके हैं, ‘मेरी उम्र 10 बरस के आस-पास रही होगी, जब पहली बार मैं राजेश खन्ना साहब से मिला. ये बात है 1967-68 की. फिल्मकार शक्ति सामंत के एक कैमरा-मैन थे रॉबिन कार. वे मेरे मामा जी के दोस्त हुआ करते थे. मामा जी अंधेरी की स्टेट बैंक ब्रांच में काम करते थे. वहां रॉबिन का आना-जाना था. वहीं से दोनों की दोस्ती हुई. वहां से नटराज स्टूडियो पास में है. शक्ति सामंत तब राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर के साथ ‘आराधना’ फिल्म की शूटिंग कर रहे थे वहां. रॉबिन के साथ मामा जी अक्सर शूटिंग देखने चले जाया करते थे.’

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‘मामा जी जानते थे कि मैं काका (राजेश खन्ना का एक मशहूर नाम) को कितना पसंद करता हूं. मैं बचपन से ही अख़बारों, मैगज़ीन वग़ैरा से उनकी तस्वीरें इकट्ठा कर अपनी रफ़ कॉपी में रखा करता था. पिता जी को कई बार मेरी इस क़िस्म की दीवानगी पर एतिराज़ होता. मगर दिलचस्प ये कि पिता जी ही पहले शख़्स हुए, जिन्होंने मुझे राजेश खन्ना की पोस्टकार्ड साइज़ की तस्वीर लाकर दी थी. मां को अलबत्ता, कोई एतिराज़ न था, मेरी इन बातों से. और मामा जी, उन्होंने तो मुझे मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा तोहफ़ा दिया. एक रोज़ वे जब दफ़्तर से लौटे तो उन्होंने मुझसे कहा- जानते हो, आज में कहां, किससे मिलकर आया हूं? मेरे अनजान रहने पर उन्होंने बताया- तुम्हारे पसंदीदा राजेश खन्ना जी से, नटराज स्टूडियो में. मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना का ठिकाना न रहा. इसके बाद मैंने उनसे ख़ूब गुज़ारिश की कि मुझे भी अपने साथ ले चलें.’

‘इस तरह एक रोज़ मामा जी मुझे नटराज स्टूडियो ले गए. उन्होंने मुझे काका जी से मिलवाया. इसके बाद तो मैं अक्सर ही उनकी फिल्मों के सैट पर पहुंच जाया करता. कई बार वे मुझसे सख़्त लहज़े में सवाल करते- क्यूं रे, स्कूल से डंडी मारकर तो नहीं आया न? मैं जब उन्हें हर तरह से तसल्ली दे देता, तब ही मुझे वे अपने साथ सैट पर रहने की इजाज़त देते थे. काका जी को झूठ बोलना बिल्कुल पसंद नहीं था. इसलिए मैंने उनसे सबसे बड़ी सीख यही ली कि झूठ नहीं बोलना है. मैं अपनी ज़िंदगी में यही कोई 35-40 बार उनसे मिला. ‘अनुरोध’, ‘अजनबी’, ‘अमर प्रेम’ जैसी कई फिल्मों की शूटिंग के दौरान मैं उनके साथ रहा. ‘अमर प्रेम’ में उनका बड़ा मशहूर डायलॉग है न- पुष्पा, मुझसे ये आंसू नहीं देखे जाते. आई हेट टीयर्स. ये डायलॉग मेरे सामने ही कहा गया था. इस तरह के और भी कई यादग़ार लम्हे मैंने बिताए हैं उनके साथ.’

‘एक वाक़िया ‘अजनबी’ फिल्म का है. साल 1973 की बात है. उसमें एक नग़्मा है- भीगी, भीगी रातों में. उसकी शूटिंग मेरे सामने हुई थी. पूरा दिन लगा था उसमें. काका जी सुबह 10 बजे सैट पर आ गए थे. मेरी शायद छुट्‌टी थी उस रोज़. क्योंकि अक़्सर ऐसे मौकों पर ही मैं उनके सैट पर पूरे दिन रह पाता था. तो इस गाने में बारिश में भीगने का मंज़र है. लिहाज़ा, एक जैसी तीन क़मीज़ें रखी गई गई थीं काका जी के लिए. एक भीगती तो वे दूसरी पहनते. वह भीगती तो तीसरी. तीसरी भीगती तो पहली वाली सुखाने और इस्त्री करने के बाद ले आई जाती. और मेरा काम वहां काका जी का तौलिया लेकर खड़े रहने का था. पीले रंग का टर्किश टॉवेल. हर बार वे गीले बाल पोंछने के बाद उसे मुझे दे देते थे. इस तरह सिलसिला चलता रहता. शाम साढ़े चार बजे तक. आख़िरी बार साल 2008 में मेरी उनसे मुलाक़ात हुई. दीवाली से एक रोज़ पहले. उन्हीं के घर पर.’

वैसे जनाब, खन्ना साहब को अज़ीज़ समझने वाले ख़ास-ओ-आम में एक बड़ा नाम हिन्दी फिल्मों के बड़े मूसीक़ार (संगीतकार) राहुल देव बर्मन का भी है. इसका एक वाक़िया साल 1989 का है. उस साल लंदन में ‘पंचम’ यानी राहुल देव बर्मन के दिल का ऑपरेशन हुआ था. डॉक्टर जॉन राइट और डॉक्टर मुकेश हरियावाला जैसे नामी डॉक्टरों ने यह सर्जरी की थी. ऑपरेशन के बाद अस्पताल में ‘पंचम’ का छठा दिन था. डॉक्टर हरियावाला ‘पंचम’ की मरहम-पट्‌टी कर रहे थे कि तभी कमरे के बाहर दस्तक हुई. डॉक्टर ने दस्तक देने वाले से कुछ देर रुकने को कहा. हालांकि, मरहम-पट्‌टी के बाद जब उन्होंने दरवाज़ा खोला तो भौंचक रह गए. सामने उनके पसंदीदा राजेश खन्ना खड़े हुए थे. अलबत्ता, खन्ना साहब धड़धड़ाते हुए सीधे भीतर आए और ‘पंचम’ को उलाहना देने लगे- बता नहीं सकते थे मुझे, कि तुम्हारी ओपन हार्ट सर्जरी होनी है? मुझे तो आज पता चला इसका.’

काका जी ने इसके बाद डॉक्टर से ‘पंचम’ की सेहत के बारे में पूरी तस्दीक़ की. इसके बाद ही वहां से होटल को रवाना हुए. बताते हैं- खन्ना साहब के वहां से जाने के बाद ‘पंचम’ ने डॉक्टर हरियावाला के सामने एक बड़ा राज़ खोला था. बताया था, ‘मैं हमेशा ही अपनी सबसे अच्छी धुनें ‘काका’ के लिए बचाकर रखा करता हूं. क्योंकि वह सही मायनों में इन धुनों के हक़दार हैं. उन्हें संगीत की बारीक़ियों की न सिर्फ़ अच्छी समझ है. बल्कि, वह गाते भी बहुत अच्छा हैं. और रही बात अदाकारी की, तो इसमें कोई शक़ नहीं कि इस दौर (1973 से 1989 के आस-पास का) के बड़े सितारे अमिताभ बच्चन अच्छी एक्टिंग करते हैं. लेकिन ‘काका’ वाक़ई में, सदियों तक लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ पर क़ायम रहने वाले हैं. उनकी जगह कोई नहीं ले सकता’. जनाब, साल 2012 में 29 दिसंबर की तारीख़ को ‘काका’ के जन्मदिन पर ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ये ख़ुलासा किया था.

हालांकि इस सबके ऊपर ये जानना दिलचस्प बन पड़ेगा जनाब, कि ख़ुद ‘काका’ की तरज़ीही फ़ेहरिस्त में कौन-कौन शुमार होता है. इस बाबत ख़ुद उन्होंने साल 2011 के मई महीने में ‘द हिन्दू’ अख़बार को दिए एक इंटरव्यू में बताया था, ‘गुरु दत्त, मीना कुमारी और गीता बाली मेरे आदर्श रहे हैं. दिलीप कुमार जिस समर्पण और शिद्दत के साथ एक्टिंग करते हैं, उनसे मैं इसकी प्रेरणा लेता हूं. राज कपूर की अदाकारी में जो स्वाभाविकता है, मैं उससे प्रेरणा लेता हूं. देवानंद की शैली और शम्मी कपूर की लय भी मेरी अदाकारी के लिए प्रेरणा का काम करती है.’ तो जनाब, इतने सारे अदाकारों की मुख़्तलिफ़ ख़ासियतों को मिलाकर एकाध बार ही कभी बरसों में बनता है, एक राजेश खन्ना. बरसों तक बने रहने के लिए. अपनी जगह बनाए रखने के लिए भी.

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