घाना में मारबर्ग वायरस से 2 मरीजों की हो गई मौत, 98 लोग संपर्क में आए

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अक्रा. अफ्रीकी देश घाना ने अपने यहां घातक मारबर्ग वायरस (Marburg virus) के पहले दो मामलों की पुष्टि की है. एक ही परिवार के दो सदस्य इस वायरस से संक्रमित पाए गए हैं. सरकारी बयान में कहा गया है कि जो दो लोग इस वायरस की चपेट में आए थे, उनकी मौत हो गई है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोनों मरीजों के सैंपल जुलाई की शुरुआत में पॉजिटिव आए थे. सेनेगल की एक लैब ने अपनी रिपोर्ट में इसे वैरिफाई भी किया था.

पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र में स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि 98 लोग अबतक दोनों मरीजों के संपर्क में आए थे. उन सभी को ट्रेस किया जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, मारबर्ग का अभी तक कोई इलाज मौजूद नहीं है. डॉक्टरों का कहना है कि खूब पानी पीने और विशिष्ट लक्षणों का इलाज करने से मरीज के बचने की संभावना बढ़ जाती है.

मारबर्ग वायरस के लक्षण बिल्‍कुल इबोला की तरह हैं. ये वायरस बहुत ही ज्‍यादा संक्रामक है. इसका डेथ रेट 88 फीसदी बताया जा रहा है. कोविड-19 को थामने में असफल रहने वाला विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन फिलहाल अब सचेत है. ये नया वायरस अथॉरिटीज के लिए परेशानी की बात है. इस पर अंकुश लगाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.

क्या हैं मारबर्ग के लक्षण?
मारबर्ग वायरस में जो बुखार आता है, उसमें खून निकलने लगता है. इसलिए ही इसे और ज्‍यादा खतरनाक बताया जा रहा है. ये वायरस भी जानवरों से इंसानों में आया है. कोविड-19 की तरह ये वायरस भी चमगादड़ से फैला है. वायरस पहले बॉडी फ्लूयूड्स में पहुंचता है और फिर स्किन को अपनी चपेट में लेता है. इस वायरस की वजह से ब्‍लीडिंग, फीवर और ऐसे दूसरे लक्षण नजर आते हैं, जो बिल्‍कुल इबोला से मिलते-जुलते हैं.

इबोला में मरीज को बहुत तेज बुखार, बेचैनी और सिरदर्द होता था. कई मरीजों में सात दिनों के अंदर खून बहने के लक्षण भी देखे गए थे. इबोला में भी मृत्‍यु दर 24 फीसदी से बढ़कर 88 फीसदी पर पहुंच गई थी. सेनेगल की लैबोरेट्री की तरफ से इस नए वायरस के नतीजों के बारे में और ज्‍यादा जानकारी दी जाएगी.

मारबर्ग वायरस रोग की पहचान पहली बार कहां हुई?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 1967 में जर्मनी के मारबर्ग और फ्रैंकफर्ट और सर्बिया के बेलग्रेड में एक साथ हुए दो बड़े प्रकोपों में इस बीमारी की पहली बार पहचान की गई. इसका प्रकोप युगांडा से आयात किए गए अफ्रीका के हरे बंदरों (सर्कोपिथेकस एथियोप्स) जिनका उपयोग प्रयोगशाला में किया गया था, इनसे संबंधित था. डब्ल्यूएचओ ने कहा कि मारबर्ग वायरस रोग का संक्रमण शुरू में रौसेटस चमगादड़ कॉलोनियों में रहने वाली खदानों या गुफाओं के लंबे समय तक संपर्क में रहने वाले लोगों में देखा गया.

इबोला ने ढाया था कहर
दिसंबर 2013 से जनवरी 2016 तक पश्चिमी अफ्रीका में इबोला के केसेज देखे गए थे. कुल 28,646 मरीजों का पता लगा तो वहीं 11, 323 लोगों की मौत हो गई थी. 29 मार्च 2016 को डब्‍लूएचओ की तरफ से कहा गया था कि इबोला अब इमरजेंसी नहीं है.

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