कर्नाटक में सियासत का नाटक… ‘पावर शेयरिंग’ पर जुबानी जंग ने कांग्रेस की शानदार जीत की चमक कम की

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हाइलाइट्स

एम. बी. पाटिल के बयान ने एक बार फिर नर्म पड़ती आग में फूंक मारने का काम कर दिया है.
शिवकुमार के भाई सुरेश ने पलटवार करते हुए कहा कि उन्हें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए.
कर्नाटक में सत्ता की साझेदारी को लेकर चल रही जुबानी जंग ने कांग्रेस की जीत को फीका किया.

बेंगलुरु: कर्नाटक में कांग्रेस की जीत उस हलवे की तरह है जो अभी बस पक कर तैयार ही हुआ है. उसकी मिठास का आनंद अभी ठीक से लिया भी नहीं गया है. ऐसे में पार्टी के नेताओं की तरफ से आ रहे बयान उसे तल्ख बनाने में लगे हुए हैं. दो हफ्ते पहले ऐतिहासिक जीत दर्ज कर कांग्रेस पार्टी में जब मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान हुआ तब मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी के समझाने के बाद सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और डी. के. शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री बनाया जाना तय हो गया. सब कुछ ठीक चल रहा था कि वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस का लिंगायत चेहरा एम. बी. पाटिल के बयान ने एक बार फिर नर्म पड़ती आग में फूंक मारने का काम कर दिया है.

पाटिल ने मैसुरू में मीडिया से बातचीत में कहा कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सत्ता साझा करने को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ है, इस तरह का कोई फॉर्मूला तय नहीं किया गया है. सिद्धारमैया ही पूरे पांच साल तक मुख्यममंत्री रहेंगे.

शिवकुमार के छोटे भाई और बेंगलुरु ग्रामीण से कांग्रेस के सांसद डीके सुरेश ने पाटिल के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि उन्हें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. इस तरह पार्टी की विधायक दल की बैठक में दोनों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई. इससे शर्मिंदा सिद्धारमैया को दोनों को शांत करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा.

30-30 का फॉर्मूला
विश्वस्त सूत्रों की मुताबिक अपनी बात पर अड़े डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री का पद सिद्धारमैया को सौंपने के लिए तभी राजी हुए जब गांधी परिवार ने उन्हें आश्वस्त किया कि कुल 60 महीने के कार्यकाल में बाद के 30 महीने वह मुख्यमंत्री का पदभार संभालेंगे. इसके बाद भी शिवकुमार ने यह बात साफ कर दी कि उनके अलावा कोई दूसरा उप मुख्यमंत्री नहीं बनेगा. कोई विकल्प नहीं होने की सूरत में हाईकमान को उनकी यह बात माननी पड़ी. जाहिर वजहों से कोई इस बारे में खुले आम बात नहीं कर रहा है. गौरतलब है कि नतीजों के पहले कांग्रेस, वोक्कालिगा, लिंगायत, मुस्लिम और दलितों में से चार उपमुख्यमंत्री बनाने की योजना बना रही थी. लेकिन शिवकुमार की वजह से यह संभव नहीं हो सका. इस वजह से समुदाय के नेता स्वाभाविक रूप से नाराज हैं.

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पाटिल और शिवकुमार के बीच 36 का आंकड़ा
एमबी पाटिल और डीके शिवकुमार समकालीन और प्रतिद्वंद्वी है. पाटिल ने पहला विधानसभा चुनाव ( पिता की मौत के बाद उपचुनाव) 1990 में 25 साल की उम्र में जीता था. तब से वह 6 विधानसभा और एक बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं. पाटिल पूर्व सरकार में जल संसाधन और गृह जैसे अहम मंत्रालय संभाल चुके हैं. कर्नाटक चुनाव के दौरान वह केपीसीसी अभियान समिति के अध्यक्ष थे और कर्नाटक में भाजपा के गढ़ कित्तूर में सेध लगाकर कांग्रेस को जीत दिलाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. यही नहीं चुनाव के करीब भाजपा के बड़े लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार के दलबदल में भी उनकी भूमिका अहम रही है. कांग्रेस ने लगभग सभी लिंगायत सीटों पर जीत हासिल की. कर्नाटक के कुल मतों का 16 फीसद मत साझा करने वाला यह समुदाय कम से कम एक उपमुख्यमंत्री की उम्मीद तो कर ही रहा था. पिछले 50 सालों से कांग्रेस के लिंगायत के साथ संबंध असहज रहे हैं. ऐसे में पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस नेतृत्व को इस मामले में अतिरिक्त सावधान और संवेदनशील होना चाहिए.

लिंगायत की भूमिका कितनी अहम
कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटों में से 14 सीट पर लिंगायत निर्णायक भूमिका में हैं. 2024 में होने वाले चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने वोटों को बरकरार रखे. इसके अलावा बीबीएमपी और स्थानीय निकाय चुनाव भी होने हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि सिद्धारमैया सरकार अगले छह महीने में इन्हें आयोजित करवा सकती है.

आठ बार के विधायक डीके शिवकुमार वोक्कालिगा जाति से आते हैं. उनका दावा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में उन्होंने गौड़ा के गढ़ में जेडीएस को हरा दिया है. लेकिन इनके प्रभाव का इलाका पुराने मैसुरू क्षेत्र में 3-4 जिलों में ही सीमित है. वोक्कालिगा आबादी का 12 फीसद हैं जो क्षेत्र के 10 जिलों तक ही सीमित हैं. वहीं लिंगायत पूरे कर्नाटक में फैला हुआ समुदाय है, सिर्फ दो जिले दक्षिण कन्नड़ और उडुपी में यह नहीं हैं. पुराने मैसुरू क्षेत्र में भी लिंगायत की तादाद काफी ज्यादा है और कांग्रेस को जीतने के लिए यहां भी उनकी जरूरत है.

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वहीं सिद्धारमैया अहिन्दा या अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और पूरे कर्नाटक में दलित वोटों पर अच्छी पकड़ रखते हैं. इसी तरह एआईसीसी अध्यक्ष एम मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी पार्टी के दलित वोटों को मजबूत किया है. इसके साथ ही पाटिल और अन्य नेता जैसे शमनूर शिवशंकरप्पा, ईश्वर खंद्रे , लक्ष्मण सावदी, जगदीश शेट्टार, लक्ष्मी हेबलकर लिंगायत वोटों को नियंत्रित करते हैं. जहां तक वोक्कलिगा नेताओं का सवाल उठता है तो डीके शिवकुमार के अलावा, कृष्णा बायरेगौड़ा, टीबी जयचंद्र, चेलुवरायस्वामी, डॉ. एमसी सुधाकर और अन्य नेता वोक्कालिगा समुदाय में प्रभाव रखते हैं.

यह नेता एक दूसरे पर हावी होने से परेशान हैं और चाहते हैं कि हाईकमान इस मामले में उन लोगों पर लगाम लगाए जो बयानबाजी में लगे हुए हैं. कर्नाटक में सत्ता की साझेदारी को लेकर चल रही इस जुबानी जंग ने कांग्रेस की जीत को फीका कर दिया है.

Tags: Congress, DK Shivakumar, Karnataka election, Siddaramaiah

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