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लोकसभा के रण में विपक्षी एकता की कवायद, संसद भवन का विवाद बना नया हथियार!


नई दिल्ली. कर्नाटक के हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिशों को नया बल मिलता दिख रहा है. इसका ताज़ा उदाहरण नए संसद भवन के उद्घाटन को छिड़े विवाद में दिख रहा है. यह सब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा 28 मई को रिकॉर्ड समय में बनाए गए नए भवन का उद्घाटन करने की घोषणा के साथ शुरू हुआ. इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विरोध शुरू हो गया.

सबसे पहले राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर ट्वीट किया कि ‘नए संसद भवन का राष्ट्रपति को उद्घाटन करना चाहिए, न कि पीएम को.’ कांग्रेस अध्यक्ष ने इसे एक कदम आगे बढ़ाया और अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और दलित कार्ड खेलते हुए पीएम मोदी पर दलित विरोधी और पिछड़े होने का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया कि नए भवन के शिलान्यास समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद को आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि उद्घाटन के लिए वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया गया है.

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यहां खड़गे का स्टैंड महत्वपूर्ण है. सभी की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ आगामी राज्य चुनावों पर भी टिकी हैं. कांग्रेस को एससी, एसटी और पिछड़ों को लुभाकर 2024 में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह उनका मजबूत वोट बैंक रहा है और कर्नाटक में भी यह उनके पक्ष में गया. माना जा रहा है कि इसलिए बहिष्कार की राजनीति में यह मोड़ आया.

अध्यादेश पर विवाद
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को दी गई नियुक्तियों और तबादले की शक्ति पर रोक लगाने वाले अध्यादेश के मुद्दे पर विपक्ष बंटा हुआ है. आम आदमी पार्टी (आप) इस पर समर्थन पाने के लिए जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और शिवसेना (उद्धव गुट) जैसे विपक्षी दलों से संपर्क साध रही है. लेकिन कांग्रेस द्वारा इसमें साथ नहीं देने से विपक्षी दलों में विभाजन दिखाई दे रहा है.

विपक्ष के लिए परेशानी पैदा कर सकता है बहिष्कार
नए संसद भवन के बहिष्कार के मुद्दे पर कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी (सपा) और आप सहित 19 विपक्षी दलों ने हाथ मिलाने का फैसला किया है. हालांकि, यह बहिष्कार दो मामलों में विपक्षी दलों के लिए समस्या पैदा कर सकता है.

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पहला तो यह कि यह नई इमारत ‘आत्मनिर्भरता’ का प्रतीक है, जो औपनिवेशिक विरासत का प्रतिकार भी है. भाजपा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी कि विपक्षी दलों के पास भारतीयता और भारतीय कामगारों द्वारा किए गए काम के प्रति बेहद कम सम्मान है. यह भी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली विपक्षी पार्टियां हमसे ज्यादा औपनिवेशिक आकाओं और विदेशियों की परवाह करती हैं. राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित के मुद्दों पर कांग्रेस, कुछ अन्य विपक्षी दलों की तरह बैकफुट पर रही है. कम से कम लोकसभा चुनाव के लिए तो बीजेपी और पीएम इसे अवश्य ही मुद्दा बनाएंगे.

सरकार के खिलाफ विपक्ष का मोर्चा
इसके साथ ही, उद्घाटन से पहले एक छोटा सा हवन किया जा रहा है और इस पर भी पार्टी नेताओं द्वारा आपत्ति जताई जा रही है. दिलचस्प बात यह है कि हिंदुत्व वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए इस संभावना नहीं है कि कोई अन्य विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाएगी.

संसद के पिछले सत्र में, विपक्ष ने उनके लिए कम सम्मान का हवाला देते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था. इस मामले में राहुल गांधी को संसद सदस्यता से अयोग्य ठहराया जाना एक बॉन्डिंग फैक्टर था.

वैसे इस बात पर भी आश्चर्य नहीं कि तेलुगु देशम पार्टी (TDP), वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल (BJD) जैसे अन्य विपक्षी दल इस उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेंगे. ये पार्टियां काफी लंबे समय से बीजेपी के करीब चल रही हैं और टीडीपी निश्चित रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में फिर से शामिल होने की उम्मीद में बीजेपी के करीब आ रही है.

यह नया संसद भवन सरकार और विपक्ष के बीच कटुता एक नई इमारत के रूप में खुल रहा है. ऐसे ​संकेत है कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक यह दरार और चौड़ी हो सकती है.

Tags: BJP, Congress, Parliament



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