हाइलाइट्स
तब सरकार ने 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था. इस पर 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया
इसके बाद भारत सरकार ने दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया, जो मैसूर और बंगाल में खोली गई
90 साल पहले भारत में पहली करेंसी प्रिंटिंग प्रेस नासिक में शुरू हुई थी. तब अंग्रेजों ने यहीं करेंसी छापनी शुरू की
क्या आपको मालूम है कि 08 मई 1997 वो दिन था, जब एक खास फैसला लिया गया. इतने गुपचुप तरीके से देश को लंबे समय तक इसकी भनक ही नहीं लगी. जब मालूम हुआ तो हैरान रह गए. पहली बार सरकार ने भारतीय करेंसी को विदेश में छपवाने का फैसला किया था. उसके बाद सालों तक भारतीय करेंसी बाहर से छपकर आती रही.
दरअसल 1997 में भारतीय सरकार ने महसूस किया कि ना केवल देश की आबादी बढ़ने लगी है बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ गई हैं. इससे निपटने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह के लिए ज्यादा करेंसी की जरूरत है. भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी थे.
1996 में देश में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी. एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने. देवेगौडा ने इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला लिया. आजादी के बाद ये पहला और आखिरी मौका था जब भारतीय करेंसी विदेश में छपने की नौबत आई.
90 के दशक के आखिर में जब भारत में बाजार फैलने लगा और आबादी भी बढ़ी तो नोटों की डिमांड भी बढ़ी. तब हमारे पास केवल दो ही छापेखाने थे. बाद में दो नए नोट प्रिंटिंग छापेखाने भारत में खोले गए. (news18)
महंगा सौदा था ये
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मंत्रणा करने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से भारतीय नोटों को छपवाने का फैसला किया. कई साल तक भारतीय नोटों का एक बड़ा हिस्सा बाहर से छपकर आता रहा. ये बहुत मंहगा सौदा था. भारत को इसके एवज में कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.
इसकी आलोचना हुई
बताते हैं कि तब सरकार तब 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था. इस पर 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था. इसकी बहुत आलोचना हुई थी. देश की करेंसी की सुरक्षा के भी जोखिम में पड़ने आशंका जाहिर की जाने लगी. लिहाजा बाहर नोट छपवाने का काम जल्दी ही खत्म कर दिया गया.

भारतीय करेंसी छापने वाला देवास का छापाखाना, जिसकी क्षमता पिछले कुछ सालों में बढ़ाई गई है. (news18)
खोली गईं दो नई करेंसी प्रेस
भारत सरकार ने दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया. 1999 में मैसूर में करेंसी छापाखाना खोला गया तो वर्ष 2000 में सालबोनी (बंगाल) में. इससे भारत में नोट छापने की क्षमता बढ़ गई.
कहां से आता है करेंसी का कागज
करेंसी के कागजों की मांग पूरी करने के लिए देश में ही 1968 में होशंगाबाद में पेपर सेक्यूरिटी पेपर मिल खोली गई, इसकी क्षमता 2800 मीट्रिक टन है, लेकिन इतनी क्षमता हमारे कुल करेंसी उत्पादन की मांग को पूरा नहीं करती, लिहाजा हमें बाकी कागज ब्रिटेन, जापान और जर्मनी से मंगाना पड़ता था.
खास होता है नोटों का कागज
इसके बाद बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए होशंगाबाद में नई प्रोडक्शन लाइन डाली गई. मैसूर में दूसरे छापेखाने ने काम शुरू किया. अब करेंसी के लिए कागज की सारी मांग यहीं से पूरी होती है. हमारे हाथों में 500 रुपए के जो नोट छपकर आते हैं, उनका कागज भारत में ही निर्मित होता है. 2000 के बंद हो रहे नोट के खास कागज भी यहीं बनते थे. कुछ समय पहले तक भारतीय नोटों में इस्तेमाल होने वाला कागज का बड़ा हिस्सा जर्मनी और ब्रिटेन से आता था.

अब नोटों में काम आने वाले कागज से लेकर स्याही के उत्पादन का काम भारत में ही होता है. (news18)
हालांकि इस खास कागज का उत्पादन कहां होता है, इसका खुलासा आरबीआई ने नहीं किया. नोट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला खास वाटरमार्क्ड पेपर जर्मनी की ग्रिसेफ डेवरिएंट और ब्रिटेन की डेला रूई कंपनी से आता था, जो अब भारत में ही तैयार हो रहा है.
अब नोट में इस्तेमाल स्याही से सबकुछ देश में ही बनता है
90 साल पहले भारत में पहली करेंसी प्रिंटिंग प्रेस नासिक में शुरू हुई थी. तब अंग्रेजों ने यहीं करेंसी छापनी शुरू की थी. आजादी के बाद यहीं से भारत की सारी नोटों का मुद्रण होता था. करेंसी के कागज से लेकर स्याही तक का एक बड़ा हिस्सा हम विदेश से आयातित करते थे लेकिन अब सरकार का दावा है कि इन सब जरूरी सामान का उत्पादन देश में ही होने लगा है.
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Tags: 2000 note, Indian currency, RBI
FIRST PUBLISHED : May 24, 2023, 13:36 IST